Monday, October 1, 2012

श्राद्ध में इन 10 चीजों का दान देता है तरक्की व सफलता


FROM DAINIK BHASKAR DOT COM


हिन्दू धर्म में दान को धर्म पालन का अहम और जरूरी अंग माना गया है। खासतौर पर पितरों की प्रसन्नता के लिए श्राद्धपक्ष में किए जाने वाले सोलह श्राद्ध के श्राद्धकर्म के साथ किए जाने वाले दान न केवल पितृदोष खत्म करते हैं बल्कि घर-परिवार की तरक्की व खुशहाली में आ रही सारी रुकावटों को दूर करते हैं। पितृपक्ष में खासतौर पर दस दान महादान माने गए हैं। तस्वीरों के साथ जानिए ये दान और उनके फल - 

  1. तिल का दान - श्राद्ध के हर कर्म में तिल का महत्व है। इसी तरह श्राद्ध में दान की दृष्टि से काले तिलों का दान संकट, विपदाओं से रक्षा करता है।
  2. घी का दान - श्राद्ध में गाय के घी का एक पात्र में रखकर दान परिवार के लिए शुभ और मंगलकारी माना जाता है।
  3. सोने का दान - सोने का दान कलह का नाश करता है। किंतु अगर सोने का दान संभव न हो तो सोने के दान के निमित्त यथाशक्ति धन दान भी कर सकते हैं।
  4. अनाज का दान - अन्नदान में गेंहू, चावल का दान करना चाहिए। इनके अभाव में कोई दूसरा अनाज भी दान किया जा सकता है। यह दान संकल्प सहित करने पर मनोवांछित फल देता है।
  5. वस्त्रों का दान - इस दान में धोती और दुपट्टा सहित दो वस्त्रों के दान का महत्व है। यह वस्त्र नए और स्वच्छ होना चाहिए।
  6. चाँदी का दान - पितरों के आशीर्वाद और संतुष्टि के लिए चाँदी का दान बहुत प्रभावकारी माना गया है।
  7. भूमि दान - अगर आप आर्थिक रुप से संपन्न है तो श्राद्ध पक्ष में किसी कमजोर या गरीब व्यक्ति को भूमि का दान आपको संपत्ति और संतति लाभ देता है। किंतु अगर यह संभव न हो तो भूमि के स्थान पर मिट्टी के कुछ ढेले दान करने के लिए थाली में रखकर किसी ब्राह्मण को दान कर सकते हैं।
  8. गुड़ का दान - गुड़ का दान पूर्वजों के आशीर्वाद से कलह और दरिद्रता का नाश कर धन और सुख देने वाला माना गया है।
  9. गाय का दान - धार्मिक दृष्टि से गाय का दान सभी दानों में श्रेष्ठ माना जाता है। लेकिन श्राद्ध पक्ष में किया गया गाय का दान हर सुख और ऐश्वर्य देने वाला माना गया है।
  10. नमक का दान - पितरों की प्रसन्नता के लिए नमक का दान बहुत महत्व रखता है। इस दान के पहले यथाशक्ति ब्राह्मण भोजन कराएं और उसके बाद दान करते समय यह श्लोक बोलकर भगवान विष्णु से श्राद्धकर्म की शुभ फल की प्रार्थना करें - यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु। न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम्।।

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