Wednesday, December 21, 2011

सफलता का नशा अक्सर परमात्मा से दूर कर देता है

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From DAINIK BHASKAR 

सीता की खोज करते-करते राम और लक्ष्मण पहले हनुमान से मिले। हनुमान ने उनकी मुलाकात सुग्रीव से 


कराई। सुग्रीव को उसके बड़े भाई बाली ने अपने राज्य से निकाल दिया था। उसकी पत्नी रोमा को भी अपने 


पास ही रख लिया था। 

राम ने सुग्रीाव को मदद का भरोसा दिलाया। राम ने अपना वादा निभाया। राम ने बाली को मार कर  


किष्किंधा का राजा सुग्रीव को बना दिया। सुग्रीव को बरसों बाद राज्य और स्त्री का संग मिला। वो पूरी तरह 


राज्य को भोगने और स्त्री सुख में लग गया। तब वर्षा ऋतु भी शुरू हो चुकी थी। भगवान राम और लक्ष्मण 


एक पर्वत पर गुफाओं में निवास कर रहे थे।

वर्षा ऋतु निकल गई। आसमान साफ हो गया। राम को इंतजार था कि सुग्रीव आएंगे और सीता की खोज 



शुरू हो जाएगी। लेकिन सुग्रीव पूरी तरह से राग-रंग में डूबे हुए थे। उन्हें यह याद भी नहीं रहा कि भगवान 


राम से किया वादा पूरा करना है।

जब बहुत दिन बीत गए तो राम ने लक्ष्मण को सुग्रीव के पास भेजा। लक्ष्मण ने सुग्रीव पर क्रोध किया तब 



उन्हें अहसास हुआ कि विलासिता में आकर उससे कितना बड़ा अपराध हो गया है। सुग्रीव को अपने वचन 


भूलने और विलासिता में भटकने के लिए सबसे सामने शर्मिंदा होना पड़ा, माफी भी मांगनी पड़ी।


इसके बाद सीता की खोज शुरू की गई। यह प्रसंग सिखाता है कि थोड़ी सी सफलता के बाद अगर हम कहीं 


ठहर जाते हैं तो मार्ग से भटकने का डर हमेशा ही रहता है। कभी भी छोटी-छोटी सफलताओं को अपने ऊपर 


हावी ना होने दें। अगर हम छोटी या प्रारंभिक सफलताओं में उलझकर रह जाएंगे तो कभी बड़े लक्ष्यों को 


हासिल नहीं कर पाएंगे।


सफलता का नशा अक्सर परमात्मा से दूर कर देता है। जिस भगवान के भरोसे हमें वो कामयाबी मिली है, 




उसके नशे में कामयाबी दिलाने वाले को ही भूला दिया जाता है। क्षणिक सफलता परमात्मा तक पहुंचने की 


सीढ़ी हो सकती है, कभी लक्ष्य नहीं हो सकती। जब भी कोई सफलता मिले तो सबसे पहले परमात्मा के और 


निकट पहुंचने के प्रयास किए जाने चाहिए, सफलता के जश्र में उसे भूलना नहीं चाहिए।