Sunday, November 4, 2012

तिलक लगाने का महत्व :-



BY ASTROLOGER 

"SHRI KAUSHAL PANDEY" 

ON FACE BOOK


हिंदुत्व की असली पहचान है तिलक , तिलक लगाने से समाज में मस्तिस्क हमेशा गर्व से ऊँचा होता है , 

समाज में अपनी एक अलग पहचान बनानी हो तो करे आज से ही माथे पर तिलक और दूसरों को भी 

उत्साहित करे ,क्योंकी ये हमारे प्राचीन धर्म का गौरव है .. साथ ही हमारेवैष्णव संप्रदाय में तिलक को लगाने 

की परंपरा के पीछे यह बताया जाता है कि वैष्णव लोग तो श्री हरि के पदचिहों को अपने मस्तक पर धारण 


करते हैं। उनके मत में तिलक और कुछ नहीं, विष्णु के चरण चिन्ह ही हैं। तिलक का आकार अलग-अलग 

संप्रदायों ने अलग-अलग ढंग से प्रकट किया है, इसलिए कैसे भी तिलक करे लेकिन अवश्य करे ..

इसके पीछे आध्यात्मिक महत्व है। दरअसल, हमारे शरीर में सात सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र होते हैं, जो अपार शक्ति के 

भंडार हैं। इन्हें चक्र कहा जाता है। माथे के बीच में जहां तिलक लगाते हैं, वहां आज्ञाचक्र होता हैयह चक्र हमारे 

शरीर का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है, जहां शरीर की प्रमुख तीन नाडि़यां इड़ा, पिंगला व सुषुम्ना आकर मिलती 

हैं, इसलिए इसे त्रिवेणी या संगम भी कहा जाता है। यह गुरु स्थान कहलाता है। यहीं से पूरे शरीर का संचालन 

होता है। यही हमारी चेतना का मुख्य स्थान भी है। इसी को मन का घर भी कहा जाता है। इसी कारण यह 

स्थान शरीर में सबसे ज्यादा पूजनीय है। योग में ध्यान के समय इसी स्थान पर मन को एकाग्र किया जाता है.

तिलक हिंदू संस्कृति में एक पहचान चिन्ह का काम करता है। तिलक केवल धार्मिक मान्यता नहीं है बल्कि 


इसके कई वैज्ञानिक कारण भी हैं हिंदू धर्म में जितने संतों के मत हैं, जितने पंथ है, संप्रदाय हैं उन सबके अपने 

अलग-अलग तिलक होते हैं। तंत्र शास्त्र में पंच गंध या अस्ट गंध से बने तिलक लगाने का बड़ा ही महत्व है , 

तंत्र शास्त्र में शरीर के तेरह  भागों पर तिलक करने की बात कही गई है, लेकिन समस्त शरीर का संचालन 

मस्तिष्क करता है, इसलिए इस पर तिलक करने की परंपरा अधिक प्रचलित है। तिलक लगाने में सहायक 

हाथ की अलग-अलग  अंगुलियों का भी अपना महत्व है।



क्या है मस्तक पर तिलक लगाने का महत्व..?


हमारे दोनों भोहों के मध्य में आज्ञाचक्र होता है, इस चक्र में सूक्ष्म द्वार होता है जिससे इष्ट और अनिष्ट दोनों ही

शक्ति प्रवेश कर सकती है, यदि इस सूक्ष्म प्रवेश द्वार को हम सात्त्विक पदार्थ का लेप एक विशेष रूप में दें तो 

इससे ब्रह्माण्ड में व्याप्त इष्टकारी शक्ति हमारे पिंड में आकृष्ट होती है और इससे हमारा अनिष्टकारी शक्तियों से 

रक्ष भी होती है | बिना तिलक धारण किए कोई भी पूजा-प्रार्थना शुरू नहीं होती है। मान्यताओं के अनुसार सूने 

मस्तक को शुभ नहीं माना जाता। माथे पर चंदन, रोली, कुमकुम, सिंदूर या भस्म का तिलक लगाया जाता है।



किस अंगुली से लगाये माथे पर तिलक :-


अनामिका शांति दोक्ता, मध्यमायुष्यकरी भवेत्।

अंगुष्छठ:पुष्टिव:प्रोत्त, तर्जनी मोक्ष दायिनी।।

अर्थात्,  तिलक धारण करने में अनामिका अंगुली मानसिक शांति प्रदान करती है, मध्यमा अंगुली मनुष्य की 

आयु वृद्धि करती है, अंगूठा प्रभाव, ख्याति और आरोग्य प्रदान करता है, इसलिए विजयतिलकअंगूठेसे ही 

करने की परम्परा है। तर्जनी मोक्ष देने वाली अंगुली है। इसलिए मृतक को तर्जनी से तिलक लगाते हैं।

सामुद्रिकशास्त्र के अनुसार, अनामिका और अंगूठा तिलक करने में सदा शुभ माने गए हैं। अनामिका अंगुली 

सूर्य का प्रतिनिधित्व करती है। इसका अर्थ यह है कि साधक सूर्य के समान दृढ, तेजस्वी, निष्ठा-प्रतिष्ठा और 

सम्मान वाला बने। दूसरा अंगूठा है, जो हाथ में शुक्र क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है। शुक्र ग्रह जीवनी शक्ति का 

प्रतीक है। इससे साधक के जीवन में शुक्र के समान ही नव जीवन का संचार होने की मान्यता है।

स्त्रीयों को गोल और पुरुषों को लम्बवत तिलक धारण करना चाहिए। तिलक लगाने से मन शांत रहता है। 

अनिष्टकारी शक्तियों से रक्षण होने के कारण और सात्विकता एवं देवत्व आकृष्ट होने के कारण हमारे चारों ओर 

सूक्ष्म कवच का निर्माण होता है। 



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