Wednesday, October 3, 2012

रोग नाश हेतु करे धनतेरस का व्रत एवं पूजा


BY MR. VAGHA RAM PARIHAR ON FACE BOOK

परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
मु. पो. आमलारी, वाया- दांतराई
जिला- सिरोही (राज.) 307512



कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को रोग नाश हेतु व्रत किया जाता है। इस दिन आम जन धन तेरस एवं चिकित्सा क्षेत्र से संबंधित लोग धन्वन्तरी जयंति के रूप में मनाते है। इस दिन धन्वन्तरी की पुजा करते हुए व्रत किया जाता है। इसके लिए सर्वप्रथम सूर्योदय से पूर्व उठकर नहा धोकर पवित्र होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करे। फिर सूर्य देव एवं धन्वन्तरी को प्रणाम करते हुए रोग नाश की प्रार्थना करते हुए संकल्प कर व्रत प्रारंभ करे। इस दिन भगवान धन्वंतरी की कथा का वाचन अथवा श्रवण करे।

देवताओ ने सागर मंथन का महत्व बताकर दानवो को भी अपने साथ मिला दिया। क्योकि अकेले देवताओं मे सागर मंथन करने की सामथ्र्य नही थी । इस पर देव और दानवो ने मिलकर समुद्र मंथन प्रारंभ कर दिया। इस कार्य हेतु अनेक औषधियो को सागर मे डालकर मन्दरांचल को मथानी एवं वासुकि नाग को रस्सी बनाकर सागर मंथन प्रारंभ किया लेकिन मन्दरांचल का कोई आधार नही होने से वह समुद्र में धसने लगा। तब भगवान श्री हरि ने कुर्म रूप धारण कर मन्दरांचल को अपनी पीठ पर धारण कर लिया। एवं स्वयं ने अदृश्य रूप से सागर मंथन मे सहयोग भी किया। इस मंथन से हलाहल,कामधेनु,ऐरावत,उच्चैश्रवा, अश्व,अप्सराएं,कौस्तुभमणि,वारूणी,शंख,कल्पवृक्ष,चंद्रमा,लक्ष्मी जी और कदली वृक्ष प्रकट हो चुके थे। इसके पश्चात अमृत प्राप्ति के लिए पुनः समुद्र मंथन होने लगा और अंत मे हाथ मे अमृत कलश धारण किए भगवान धन्वन्तरी प्रकट हुए। भगवान धन्वन्तरी कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को प्रकट हुए थे। इसलिए इस दिन भगवान धन्वन्तरी के निमित व्रत कर पुजा की जाती है।

भगवान धन्वन्तरी कलश लेकर प्रकट हुए थे। इसीलिए इस दिन बर्तन खरीदने की परंपरा चल पडी जो वर्तमान मे सोना,चांदी एवं अन्य वस्तुओ की खरीद भी की जाती है। उसी प्रकार धन की पुजा अर्चना भी की जाने लगी। इसी कारण इसे धन तेरस के नाम से भी प्रचलित हो गया। भगवान धन्वन्तरी ने जब भगवान विष्णु से कहा कि देवलोक मे मेरा स्थान और भाग भी निश्चित कर दे। इस पर भगवान विष्णु ने कहा कि देवो के बाद आने के कारण तुम ईश्वर नही हो। परंतु तुम्हे अगले जन्म मे सिद्धिया प्राप्त होकर तुम लोक मे प्रसिद्ध होंगे उसी शरीर से तुम्हे देवत्व प्राप्त होगा। फिर इन्द्र के अनुरोध पर देववैद्य का पद स्वीकार किया। फिर कुछ समय पश्चात जब पृथ्वी पर अनेक रोग फैलने लगे। तब इन्द्र की प्रार्थना पर भगवान दिवोदास के रूप मे प्रकट हुए। हरिवंश पुराण के अनुसार काशिराज धन्व की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने उनके पुत्र रूप मे जन्म लेकर धन्वंतरी नाम धारण किया। इस प्रकार इस दिन भगवान धन्वन्तरी का जन्म हुआ।
धनतेरस के व्रत मे एक बार फलाहार कर शाम को पुजन कर निम्न मंत्र का जाप करना चाहिए। जिससे आपका रोग नष्ट हो जाए।

1 ओम धन्वंतरये नमः
2 ओम नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतरायैः ,
अमृत कलश हस्ताय सर्वभय विनाशाय सर्वरोग निवारणाय।
त्रिलोकपथाय त्रि लोक नाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप ,
श्री धन्वंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषध चक्र नारायणाय नमः।।
3 धनतेरस के दिन संध्याकाल मे दक्षिण की तरफ मुख रखते हुए यम से प्रार्थना कर दीपक जलाए तो अकाल मृत्यु का भय नही रहता है।
4 धनतेरस के दिन रोगी व्यक्ति के सिर से लेकर पांव तक के नाप का काला धागा ले। इसे सुखे जटा नारियल पर लपेटे। नारियल को हरे कपडे मे बांधकर जल प्रवाह करे। जल प्रवाह करते समय रोगी व्यक्ति के नाम का गौत्र सहित उच्चारण करते हुए उसके शीघ्र सवस्थ होने की कामना करे तो रोगी व्यक्ति के स्वास्थ्य मे सुधार होने लगता है।
आप भी यदि किसी रोग से ग्रसित है या परिवार मे कोई रोग ग्रस्त है तो इस दिन व्रत रखकर उपरोक्त उपाय करने से अवश्य ही स्वास्थ्य लाभ होता है।

परिहार ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
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