Wednesday, December 21, 2011

सफलता का नशा अक्सर परमात्मा से दूर कर देता है

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From DAINIK BHASKAR 

सीता की खोज करते-करते राम और लक्ष्मण पहले हनुमान से मिले। हनुमान ने उनकी मुलाकात सुग्रीव से 


कराई। सुग्रीव को उसके बड़े भाई बाली ने अपने राज्य से निकाल दिया था। उसकी पत्नी रोमा को भी अपने 


पास ही रख लिया था। 

राम ने सुग्रीाव को मदद का भरोसा दिलाया। राम ने अपना वादा निभाया। राम ने बाली को मार कर  


किष्किंधा का राजा सुग्रीव को बना दिया। सुग्रीव को बरसों बाद राज्य और स्त्री का संग मिला। वो पूरी तरह 


राज्य को भोगने और स्त्री सुख में लग गया। तब वर्षा ऋतु भी शुरू हो चुकी थी। भगवान राम और लक्ष्मण 


एक पर्वत पर गुफाओं में निवास कर रहे थे।

वर्षा ऋतु निकल गई। आसमान साफ हो गया। राम को इंतजार था कि सुग्रीव आएंगे और सीता की खोज 



शुरू हो जाएगी। लेकिन सुग्रीव पूरी तरह से राग-रंग में डूबे हुए थे। उन्हें यह याद भी नहीं रहा कि भगवान 


राम से किया वादा पूरा करना है।

जब बहुत दिन बीत गए तो राम ने लक्ष्मण को सुग्रीव के पास भेजा। लक्ष्मण ने सुग्रीव पर क्रोध किया तब 



उन्हें अहसास हुआ कि विलासिता में आकर उससे कितना बड़ा अपराध हो गया है। सुग्रीव को अपने वचन 


भूलने और विलासिता में भटकने के लिए सबसे सामने शर्मिंदा होना पड़ा, माफी भी मांगनी पड़ी।


इसके बाद सीता की खोज शुरू की गई। यह प्रसंग सिखाता है कि थोड़ी सी सफलता के बाद अगर हम कहीं 


ठहर जाते हैं तो मार्ग से भटकने का डर हमेशा ही रहता है। कभी भी छोटी-छोटी सफलताओं को अपने ऊपर 


हावी ना होने दें। अगर हम छोटी या प्रारंभिक सफलताओं में उलझकर रह जाएंगे तो कभी बड़े लक्ष्यों को 


हासिल नहीं कर पाएंगे।


सफलता का नशा अक्सर परमात्मा से दूर कर देता है। जिस भगवान के भरोसे हमें वो कामयाबी मिली है, 




उसके नशे में कामयाबी दिलाने वाले को ही भूला दिया जाता है। क्षणिक सफलता परमात्मा तक पहुंचने की 


सीढ़ी हो सकती है, कभी लक्ष्य नहीं हो सकती। जब भी कोई सफलता मिले तो सबसे पहले परमात्मा के और 


निकट पहुंचने के प्रयास किए जाने चाहिए, सफलता के जश्र में उसे भूलना नहीं चाहिए।

Saturday, December 17, 2011

घरेलु समाधान

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BY VEEJ ASTRO ON FACEBOOK






1 .शुद्ध शहद में सुरमे की पांच डलिया डाल कर घर में अथवा व्यवसायिक स्थान पर रखे कारोबार में वृदि होगी 



शत्रुता कम होगी


२. जो बच्चे रात को डर कर अथवा चोंक कर उठते है उनके सिरहाने के नीचे लोहे की छोटी सी पत्ती (सब्जी 


काटने वाली छुरी) रखे ||


३.अगर कोई बड़ा व्यक्ति रात को डर कर उठता है तो उसके सिरहाने के नीचे हनुमान चालीसा रखे और सोने से 


पहले हाथ पैर अच्छे ढंग से धोकर सोये||


४.घर में अथवा व्यवसायिक स्थान पर नमक मिले पानी का पोचा लगाये तो घर में नकारत्म्कता कम होगी||

५. नकारत्मक सोच वाले लोगो के पास ज्यादा देर मत बैठे अपितु उनसे कोई भी नई योजना सम्बन्धी विचार 


विमर्श मत करे||

६. कोर्ट कचहरी में जज के समक्ष कभी भी छाती नंगी और मस्तक ढांक कर पेश न होवे||

७. सप्ताह में एक बार पोधो वाले स्थान पर गुड अथवा मीठी चीज बिखेर देवें ||

८. चलते जल में ताम्बे के सिक्के डाले ||

९. घर में देवी देवतायो के कम से कम चित्र लगाए |

१०. किसी भी भी देवी देवता का खंडित चित्र अथवा प्रतिमा मत रखे||

११. रात को घर में बने पूजा स्थल को विधिवत पर्दे से ढांप कर रखे ||

१२. घर में जगह जगह दवाईया एक बक्से में रखे जगह जगह दवाए रखनी घर में बीमारी को बुलावा देने के 


सामान है||


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DONATION - दान -

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by VEEJ ASTRO ON FACEBOOK

DONATION - दान - हमारी भारतीय संस्कृति की एक महत्वपूरण प्रथा .. जो युगों युगों से चलती आ रही है ..

कहा जाता है कि हम अपनी नेक कमाई में से दसवा हिस्सा जिसको दसवंध कहते हैं .. जरुर निकालें .. ता कि 



जो लोग गरीबी और भुखमरी में रह रहे हैं उनको अन्न की प्राप्ति हो सके ..

पर कई बार इस भलाई के काम में किसी का नुक्सान भी हो जाता है ...

हम कई बार उन का दान कर जाते हैं जो हमारी कुंडली के हिसाब से योगकारी होती हैं .. और जब हम उन का 



दान करते हैं तो हमें कोई न कोई नुक्सान होने लगता है .. जिसका दोष हम दान विध को देते हैं .. और इस के 


कारण हमारा दान से विशवास उठ जाता है ..

हमेशा अपनी कुंडली के हिसाब से ही दान करना चाहिए ..

जैसे ---

मेष , सिंह , वृश्चिक राशी -वाले कभी भी पीली चीज का दान न करें .. जैसे चने की दाल , हल्दी , गुड , शक्कर 



इत्यादि ..ये लोग सिर्फ काले माह { उड़द } , चाय पत्ती , काली मिर्च का दान कर सकते हैं ..



वृष और तुला राशी वाले { जिनका स्वामी शुक्र है } अगर देसी घी की जोत घर में जलाते हैं तो उनकी गृहस्थी में 



कटुता आ सकती है और घर से लक्ष्मी का वास ख़तम हो सकता है .. ये लोग गुड , चने की दाल , हल्दी इत्यादि 


का दान कर सकते हैं ..



कर्क राशी वाले { जिनका स्वामी चंद्रमा है } अगर दूध का दान करेंगे तो उनकी सेहत में खराबी आ सकती है ..



कन्या राशी और मिथुन राशी वाले { जिनका स्वामी बुध है } अगर गाय को हरा चारा डालते हैं तो उनका व्योपार 



ख़तम हो सकता है और उनके अपने पिता के साथ सम्बन्ध बिगड़ सकते हैं ..



मकर और कुम्भ राशी वाले कभी काली चीज का दान न करें .. कभी काले माह { उड़द } किसी गरीब को न दे .. 



ये सिर्फ चने की दाल लंगर में या गरीब को दे सकते हैं ..



धनु मीन राशी वाले { जिनका स्वामी ब्रहस्पति है } अगर चने की दाल किसी लंगर में दान करेंगे तो उनकी खुद 



की सेहत और उनकी माता की सेहत खराब हो सकती है ...ये लोग सिर्फ काले माह { उड़द } , चाय पत्ती , काली 


मिर्च का दान कर सकते हैं ..



इसी तरह बारह की बारह राशी वालों को हमेशा दान अपनी कुंडली के अनुसार ही करना चाहिए .....Veejastro



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THE AGE OF GEM STONES

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BY MR. VEEJ ASTRO ON FACEBOOK

The age of Gem stones is different.Means for how many years we should keep wearing Gemstones, or how long Gemstone is effective? This tells about the effectiveness of the stones.

Manik or Ruby:-This is the ratna of Surya.It's age is 4 years and 4 months.

Moti or Pearl:-This is the ratna of Chandra.It's age is 2 years and 2 months.

Moonga or Red Coral:-This is the ratna of Mangal.It's age is 3 years and 3 months.

Panna or Emarald:-This is the ratna of Budh.It's age is 3 years and 3 months.
Pukhraj or Yellow Sapphire:-This is the ratna of Guru.It's age is 4 years and 4 months.
Heera or Diamond:-This is the ratna of Shukra.It's age is 7 years and 7 months.
Neelam or Blue Sapphire:-This is the ratna of Shani.It's age is 5 years and 5 months.
Gomed:-This is the ratna of Rahu.It's age is 3 years and 3 months.
Lehsuniya or Cats Eye:-This is the ratna of Ketu.It's age is 3 years and 3 months.....

तन्त्र-यन्त्र की परिभाषा

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BY MR.PARAS KALA ON FACE BOOK


यन्त्र की परिभाषा 


यन्त्र वह नाम है जिसका उद्देश्य संसार के जितने भी जीव जन्तु स्त्री पुरुष हैं उनकी सहायता के 

लिये किया जाये,वह सहायता पैदा करने से मारने तक के कामो मे ली जा सकती है.पृथ्वी खुद एक 

यन्त्र है,जमीन की सहायता रहने के लिये और घर बनाकर निवास करने से लेकर चलने और अपना 

फ़ैलाव करने तक के काम आती है,जो भी जमीन से पैदा होता है,उसी से अपना उदर पोषण भी 

किया जाता है,जो भूख मिटाये वह अन्न भी यन्त्र ही कहा जायेगा,जो प्यास बुझाये वह पानी भी 

यन्त्र कहा जायेगा,जिससे शरीर की अग्नि की शान्ति हो,वह जीवन साथी भी एक यन्त्र ही 

कहलायेगा, लेकिन केवल चार रेखायें बनाकर केवल एक ताम्र पत्र और स्वर्ण पत्र को ही यन्त्र नही 

कहा जा सकता है, वैदिक यन्त्र का उद्देश्य केवल कुछ लाइनो और त्रिभुज चतुर्भुज और बिन्दु के 


द्वारा स्थिति विषेष की तरफ़ ध्यान देकर उसे समझने के द्वारा ही माना जा सकता है. हिन्दी भाषा 


के सभी अक्षर भी यन्त्र की भांति काम करते है,अगर पट्टी,पत्थर या किसी भी धातु पर किसी 


अक्षर को लिख दिया जायेगा तो वह भी अपने में उसी अक्षर का बोध करवायेगा.कारण जो गति पूर्व 


से नियुक्त की गयी है,उससे परे कुछ भी नही कहा जा सकता है,हवाई जहाज भी यन्त्र है तो एक 

साइकिल भी यन्त्र का रूप माना जा सकता है.

तन्त्र की परिभाषा 

कार है और चलाने का मन्त्र भी आता है,यानी शुद्ध आधुनिक भाषा मे ड्राइविन्ग भी आती है,रास्ते मे 

जाकर कार किसी आन्तरिक खराबी के कारण खराब होकर खडी हो जाती है,अब उसके अन्दर का 

तन्त्र नही आता है,यानी कि किस कारण से वह खराब हुई है और क्या खराब हुआ है,तो यन्त्र यानी 

कार और मन्त्र यानी ड्राइविन्ग दोनो ही बेकार हो गये,किसी भी वस्तु,व्यक्ति,स्थान,और समय का 

अन्दरूनी ज्ञान रखने वाले को तान्त्रिक कहा जाता है,तो तन्त्र का पूरा अर्थ इन्जीनियर या मैकेनिक 

से लिया जा सकता है जो कि भौतिक वस्तुओं का और उनके अन्दर की जानकारी रखता है,शरीर 

और शरीर के अन्दर की जानकारी रखने वाले को डाक्टर कहा जाता है,और जो पराशक्तियों की 

अन्दर की और बाहर की जानकारी रखता है,वह ज्योतिषी या ब्रह्मज्ञानी कहलाता है,जिस प्रकार से 

बिजली का जानकार लाख कोशिश करने पर भी तार के अन्दर की बिजली को नही दिखा 

सकता,केवल अपने विषेष यन्त्रों की सहायता से उसकी नाप या प्रयोग की विधि दे सकता है,उसी 

तरह से ब्रह्मज्ञान की जानकारी केवल महसूस करवाकर ही दी जा सकती है,जो वस्तु जितने कम 

समय के प्रति अपनी जीवन क्रिया को रखती है वह उतनी ही अच्छी तरह से दिखाई देती है और 

अपना प्रभाव जरूर कम समय के लिये देती है मगर लोग कहने लगते है,कि वे उसे जानते है,जैसे 

कम वोल्टेज पर वल्व धीमी रोशनी देगा,मगर अधिक समय तक चलेगा,और जो वल्व अधिक 

रोशनी अधिक वोल्टेज की वजह से देगा तो उसका चलने का समय भी कम होगा,उसी तरह से जो 

क्रिया दिन और रात के गुजरने के बाद चौबीस घंटे में मिलती है वह साक्षात समझ मे आती है कि 

कल ठंड थी और आज गर्मी है,मगर मनुष्य की औसत उम्र अगर साठ साल की है तो जो जीवन का 

दिन और रात होगी वह उसी अनुपात में लम्बी होगी,और उसी क्रिया से समझ में आयेगा.जितना 

लम्बा समय होगा उतना लम्बा ही कारण होगा,अधिकतर जीवन के खेल बहुत लोग समझ नही 

पाते,मगर जो रोजाना विभिन्न कारणों के प्रति अपनी जानकारी रखते है वे तुरत फ़ुरत में अपनी 

सटीक राय दे देते है.यही तन्त्र और और तान्त्रिक का रूप कहलाता है.

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Friday, December 16, 2011

SPIRITUAL TIPS

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BY ASTRO VIND GOEL - FROM FACEBOOK


शिव के यह त्रिगुण स्वरूप भैरव अवतार -



शिव की रज, तम व सत्व गुणी शक्तियों के आधार पर भैरव स्वरूप कौन है व उनकी साधना किन 


इच्छाओं को पूरा करती है - 



बटुक भैरव - यह भैरव का सात्विक व बाल स्वरूप है। जिनकी उपासना सभी सुख, आयु, निरोगी 


जीवन, पद, प्रतिष्ठा व मुक्ति प्रदान करने वाला माना गया है। 


काल भैरव - यह भैरव का तामस किन्तु कल्याणकारी स्वरूप माना गया है। इनको काल का 


नियंत्रक भी माना गया है। इनकी उपासना काल भय, संकट, दु:ख व शत्रुओं से मुक्ति देने वाली मानी 


गई है।

आनंद भैरव - भैरव का यह राजस स्वरूप माना गया है। दश महाविद्या के अंतर्गत हर शक्ति के साथ 



भैरव उपासना ऐसी ही अर्थ, धर्म, काम की सिद्धियां देने वाली मानी गई है। तंत्र शास्त्रों में भी ऐसी 


भैरव साधना के साथ भैरवी उपासना का भी महत्व बताया गया है।




शनि के अशुभ प्रभावों को कम करने -



शनिवार के दिन एक काले कपड़े में काले उड़द, काले तिल और लोहे की वस्तु बांध लें। शनिदेव को 


अर्पित करें और पूजा करें। इसके बाद किसी ब्राह्मण, किसी जरूरतमंद व्यक्ति को काले कपड़े में बंधी 


तीनों चीजें दान कर दें। ऐसा हर शनिवार को किया जाना चाहिए। कुछ ही दिनों में इसके 


सकारात्मक परिणाम प्राप्त होने लगेंगे।


ऐसे पता चलता है, शनि परेशानियों से देख रहा है-

- अगर भूमि, वाहन या अन्य सम्पत्ति से संबंधित विवाद या परेशानियां आने लगती है तो समझ 



लेना चाहिए शनि की टेढ़ी नजर आपको परेशान कर रही है।

- कर्ज लेनी की स्थिति भी तब ही बनती है जब शनि की टेढ़ी नजर आपको परेशान करती है।

- अगर आपको कमर दर्द रहने लगा हो या कमर झुकने लगी हो तो समझ लें आप पर शनि की टेढ़ी नजर है।

- जोड़ों में दर्द होना भी शनि की टेढ़ी नजर के कारण होता है।

- अगर आपके घर में कलेश हो रहो हो तो समझें आप पर शनि की टेढ़ी नजर हैं।

- मित्रों और रिश्तेदारों से विवाद होना भी शनि के कारण होता है।

- जूते-चप्पल का बार-बार टूटना, गुम होना शनि के विपक्ष में होने का संकेत है।

- आपका व्हीकल खराब रहने लगे तो समझना चाहिए शनि की टेढ़ी नजर परेशान कर रही है।

- अगर व्यवसाय में आपका पार्टनर गबन कर दें या धोखा दे तो समझें शनि के कारण ऐसा हो रहा है।

- शनि के कारण ही दिन-ब-दिन ऋण, लोन, उधार बढ़ता जाता है ।

भक्ति के 9 प्रकार - नवधा भक्ति

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BY MR NEERAJ MITTAL- FROM FACEBOOK 


प्राचीन शास्त्रों में भक्ति के 9 प्रकार बताए गए हैं जिसे नवधा भक्ति कहते हैं।

श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् ।
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥

श्रवण (परीक्षित), कीर्तन (शुकदेव), स्मरण (प्रह्लाद), पादसेवन (लक्ष्मी), अर्चन (पृथुराजा), वंदन (अक्रूर), 



दास्य (हनुमान), सख्य (अर्जुन), और आत्मनिवेदन (बलि राजा) - इन्हें नवधा भक्ति कहते हैं ।

श्रवण: ईश्वर की लीला, कथा, महत्व, शक्ति, स्त्रोत इत्यादि को परम श्रद्धा सहित अतृप्त मन से निरंतर सुनना।

कीर्तन: ईश्वर के गुण, चरित्र, नाम, पराक्रम आदि का आनंद एवं उत्साह के साथ कीर्तन करना।

स्मरण: निरंतर अनन्य भाव से परमेश्वर का स्मरण करना, उनके महात्म्य और शक्ति का स्मरण कर उस 


पर मुग्ध होना।

पाद सेवन: ईश्वर के चरणों का आश्रय लेना और उन्हीं को अपना सर्वस्य समझना।

अर्चन: मन, वचन और कर्म द्वारा पवित्र सामग्री से ईश्वर के चरणों का पूजन करना।

वंदन: भगवान की मूर्ति को अथवा भगवान के अंश रूप में व्याप्त भक्तजन, आचार्य, ब्राह्मण, गुरूजन, माता-



पिता आदि को परम आदर सत्कार के साथ पवित्र भाव से नमस्कार करना या उनकी सेवा करना।

दास्य: ईश्वर को स्वामी और अपने को दास समझकर परम श्रद्धा के साथ सेवा करना।

सख्य: ईश्वर को ही अपना परम मित्र समझकर अपना सर्वस्व उसे समर्पण कर देना तथा सच्चे भाव से 


अपने पाप पुण्य का निवेदन करना।







आत्म निवेदन: अपने आपको भगवान के चरणों में सदा के लिए समर्पण कर देना और कुछ भी अपनी 


स्वतंत्र सत्ता न रखना। यह भक्ति की सबसे उत्तम अवस्था मानी गई 





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BY ASTRO VIND GOEL- VASTU TIPS


बाँसुरी की जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका.. 

बाँसुरी को शान्ति, शुभता एवं स्थिरता का प्रतीक माना जाता है. यह उन्नति, प्रगति एवं 

सकारात्मक गुणों की वृद्धि की सूचक भी होती है. बाँसुरी का निर्माण बाँस के ताने से होता है. सभी 

वनस्पतियों में बाँस सबसे तेज गति से बढ़ने वाला पौधा होता है.इसी कारण से यह विकास का 

प्रतीक है.और किसी भी वातावरण में यह अपना अस्तित्व बनाए रखने की क्षमता इसमें होती है. 

अशुभ निर्माण संबंधी वास्तु दोषों में बाँसुरी का प्रयोग होता है. ग्रह दोषों के अंतर्गत शनि, राहू आदि 

पाप ग्रहों से सम्बन्धित दोषों के निवारण में बाँसुरी का कोई विपरीत प्रभाव नहीं होता है. लेकिन 

बाँसुरी के प्रयोग में एक सावधानी अवश्य रखनी चाहिए वह यह है कि, जहां कहीं भी इसे लगाया 

जाए, वहां इसे बिलकुल सीधा नहीं लगा कर थोड़ा तिरछा लगाना चाहिए तथा इसका मुंह नीचे की 

तरफ होना चाहिए.

घर की शान्ति -शंख और घंटी तथा बाँसुरी 

भारत में ध्वनि द्वारा घर तथा वातावरण को शुद्ध करने की परम्परा कई सदियों से चली आ रही है. 

शंख के बारे में शोध किया गया और यह निष्कर्ष निकला कि शंख की आवाज से आसपास के सूक्ष्म 

कीटाणुओं में भारी कमी आ जाती है, इसी प्रकार घंटी व घंटे की आवाज से कुछ अदृश्य बुरी शक्तियां 

दूर होती है. चीन में इस सिंगिंग बाउल का प्रयोग परिवार के सदस्यों के बीच आपसी लगाव में 

सुधार लाने के लिए भी किया जाता है. इसकी ध्वनि येंग व यिन ऊर्जा में संतुलन लाती है.यदि 

आपको लगता है या महसूस हो रहा है कि घर-परिवार में कुछ अशांति हो रही है, तो इसका 

नियमित प्रयोग करने से घर की ऊर्जा शुद्ध हो जायेगी. चीन या फेंगशुई में इस ऊर्जा को ची कहा 

जाता है.

घर में छुपी ये चीजें - रोक देती है पैसा 

- अगर आपके घर में बहुत दिनों से बंद घड़ी है तो उसे हटा दें बंद घड़ी घर में आते हुए पैसों को रोक 

देती है।

- आपके घर में टूटी हुई चेयर या टेबल पड़ी है तो उसे तुरंत घर से हटा दें। ये आपके पैसों और 

तरक्की को रोक देती है।

- पुराने या टूटे हुए जूते-चप्पल आपको आगे बढऩे से रोक देते हैं। इन्हे घर से निकाल दें।

- पूजा में चढ़े हुए और मुरझाए हुए फूल घर में नहीं रखें इनसे अशुभ फल मिलता है।

- घर में बनने वाले मकड़ी के जाले तुरंत हटा दें इनसे आपके अच्छे दिन बुरे दिनों में बदल सकते 

हैं।

फैक्टरी की मशीनें बार-बार खराब -उपाय

काली हल्दी को पीसकर केसर तथा गंगाजल मिलाकर शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार को मशीनों पर 

स्वस्तिक का चिह्न बना दें। यह करने से आपकी फैक्टरी की मशीनें खराब नहीं होंगी।

एक वस्तु - कौडिय़ां- समस्या का समाधान-

यह समुद्र से निकलती हैं और सजावट के काम भी आती हैं। तंत्र शास्त्र के अंतर्गत धन प्राप्ति के लिए 

किए जाने वाले अनेक टोटकों में इसका प्रयोग किया जाता है। कौडिय़ों के कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं-

1- यदि प्रमोशन नहीं हो रहा है तो 11 कौडिय़ां लेकर किसी लक्ष्मी मंदिर में अर्पित कर दें। आपके 

प्रमोशन का रास्ते खुल जाएंगे।

2- यदि दुकान में बरकत नहीं हो रही है तो दुकान के गल्ले में 7 कौडिय़ां रखें और सुबह-शाम 

इनकी पूजा करें। निश्चित ही बरकत होने लगेगी।

3- यदि आप नया घर बनवा रहे हैं तो उसकी नींव में 21 कौडिय़ां डाल दें। ऐसा करने से आपके घर 

में कभी पैसों की कमी नहीं रहेगी और घर में सुख-शांति भी बनी रहेगी।

4- अगर आपने नया वाहन खरीदा है तो उस पर 7 कौडिय़ां एक काले धागे में पिरोकर बांध दें। 

इससे वाहन के दुर्घटनाग्रस्त होने की संभावना कम हो जाएगी।

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Tuesday, December 13, 2011

21 नाम- मंगलकारी है मंगल देव -

WRITTEN BY MR VIND GOEL - ASTROLOGER FROM DELHI-


21 नाम- मंगलकारी है मंगल देव -

शास्त्रों में बताया गया है कि ब्रह्मांड में स्थित नवग्रह मानवीय जीवन पर अपना अलग-अलग प्रभाव छोड़ते हैं। इन नवग्रहों में एक है मंगल। मंगल को नवग्रहों का सेनापति भी माना गया है।
अलग-अलग पौराणिक मान्यताओं में मंगल का जन्म भगवान शिव के रक्त, आंसू या तेज से माना गया है। वहीं मंगल का पालन-पोषण पृथ्वी द्वारा किया गया। यही कारण है कि मंगल को भूमिपुत्र भी कहा जाता है। शिव की कृपा से ही मंगल ग्रह के रूप में आकाश में स्थित हुआ।

ज्योतिष विज्ञान के मुताबिक मंगल क्रूर ग्रह है, किंतु इसका शुभ प्रभाव व्यक्ति का साहस, पराक्रम, ताकत और उदारता को नियत करता है। व्यावहारिक जीवन में विवाह, संतान सुख, यश, कर्ज और रोगों से मुक्ति भी मंगल ग्रह के शुभ प्रभाव से मिलती है। किंतु मंगल दोष होने पर खून, नेत्र और गले की बीमारियां भी होती है। जीवनसाथी के जीवन पर संकट आता है। वैवाहिक समस्याएं पैदा होती है।भूमि पुत्र होने से मंगल भूमि और भार्या या पत्नी का रक्षक होता है। जिससे इसका नाम भौम हुआ। 

शास्त्रों में मंगल के ऐसे ही मंगलकारी और कल्याणकारी स्वरूप और स्वभाव को उज़ागर करते 21 नाम बताए गए हैं। जिनका ध्यान जगत के लिए संकटमोचक और मंगलकारी बताया गया है -
- मंगल 
- भूमिपुत्र
- ऋणहर्ता
- धनप्रदा
- स्थिरासन
- महाकाय 
- सर्वकामार्थ साधक
- लोहित
- लोहिताक्ष
- सामगानंकृपाकर
- धरात्मज
- कुजा
- भूमिजा
- भूमिनंदन 
- अंगारक 
- भौम
- यम
- सर्वरोगहारक
- वृष्टिकर्ता
- पापहर्ता 
- सर्वकामफलदाता

Monday, December 12, 2011

मणिबंध की रेखाएं -स्वास्थ्य, धन, आयु और प्रतिष्ठा की सूचक


DB - TODAY-जीवन और मृत्यु ऐसे विषय हैं जिनके लिए सभी की जिज्ञासा हमेशा ही जागृत रहती हैं। सभी जानना चाहता हैं कि उनका जीवन कितने वर्षों का है। वैसे तो जीवन और मृत्यु पर किसी भी व्यक्ति का नियंत्रण नहीं है लेकिन ज्योतिष के अनुसार किसी भी व्यक्ति की संभावित आयु देखने की कई विद्याएं प्रचलित हैं।

हस्तरेखा भी एक ऐसा ही माध्यम से जिससे किसी भी व्यक्ति की संभावित आयु की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। हस्तज्योतिष के अनुसार कलाई के अंत में दिखाई देने वाली तीन-चार रेखाएं मणिबंध भी व्यक्ति के जीवन और भाग्य को बहुत अधिक प्रभावित करती हैं। कलाई के अंत में दिखाई देने वाली रेखाएं मणिबंध रेखाएं कहलाती हैं।

साभी लोगों के हाथों में अलग-अलग मणिबंध की रेखाएं होती हैं। कुछ लोगों के हाथों में दो मणिबंध रेखाएं होती है, तो किसी के हाथों में चार मणिबंध रेखाएं भी देखी गई हैं। ये रेखाएं स्वास्थ्य, धन और प्रतिष्ठा की सूचक होती हैं।

हस्तरेखा ज्योतिष के अनुसार यदि कलाई पर चार मणिबंध रेखाएं हो तो उसकी आयु पूरी सौ वर्ष की होती है। जिसके हाथ में तीन मणिबंध रेखाएं होती है। उसकी आयु 75 वर्ष की होती है। दो रेखाएं होने पर 50 वर्ष और एक मणिबंध होने पर उसकी आयु 25 वर्ष होती है।

यदि मणिबंध रेखाएं टूटी हुई हो या छिन्न-भिन्न हो तो उस व्यक्ति के जीवन में बराबर बाधाएं आती रहती है। इसके विपरित यदि ये रेखाएं निर्दोष और सपष्ट हो तो उसका प्रबल भाग्योदय होता है।