Friday, March 28, 2014

अद्भुत है पारद-शिवलिंग ( या इसे रसलिंग भी कहते है) की पूजा

                                                     आलेख - आशुतोष जोशी 

पारद शिवलिंग शिव जी को अत्यन्त प्रिय है. पारद शिवलिंग की पूजा विशेष फलदायी मानी गई है. विशेष रुप से यह पूजा सुख सम्रद्धी और शांती के लिए की जाती रही है और घर में सकारात्मक उर्जा के सतत प्रवाह के लिए हर घर में पारद शिवलिंग रखा जा सकता है. किंतु पारद शिवलिंग का आकार बहुत बडा नही होना चाहिये.


                                                                      "पारदसंहिता"


केदारादीनि लिंगानी पृथ्वियं यानि कानिचित

तानि दृष्टिवाच यत्पुण्य तत्पुण्यं रसदर्शनात।।


इस पृथ्वी पर केदारनाथ से लेकर जितने भी महादेव जी के लिंग (प्रतिमा) है, उन सबसे दर्शन से जो पुण्य होता है, वह पुण्य केवल इस के  ( या इसे रसलिंग भी कहते है) दर्शन करने मात्र से ही मिल जाता है।


 

गोध्नाश्चैव कृतघ्नाश्चैव वीरहा भ्रूणहापि वा
शरणागतघातीच मित्रविश्रम्भघातकः
दुष्टपापसमाचारी मातृपितृप्रहापिवा
अर्चनात रसलिङ्गेन् तक्तत्पापात प्रमुच्यते |

अर्थात् गौ का हत्यारा , कृतघ्न , वीरघती गर्भस्थ शिशु का हत्यारा, शरणगत का हत्यारा, मित्रघाती, विश्वासघाती, दुष्ट, पापी अथवा माता-पिता को मारने वाला भी यदि पारद शिवलिंग की पूजन करता है तो वह भी तुरंत सभी पापों से मुक्त हो जाता है |

पारद शिवलिंग की पूजा में जल, ढुध , दही या कोई अन्य तरल पदार्थ को शिवलिंग के ऊपर अर्पित नही करना चाहिये क्योकि शिवलिंग के खंडित होने की सम्भावना अधिक होती है. 

बिल्पत्र, पुष्प, मिश्री , अक्षत ( चावल) , नाग्केसर, रुद्राक्ष, कलम गत्ते, गोमती चक्र आदि पर अर्पित करके पारद शिवलिंग की पूजा करना हमेशा ही लाभदायी होता है.

पारद शिवलिंग की पूजा का महत्व इसलिए भी है क्योकि यह पूजा, वास्तु दोष और अशुभ-तंत्रो के प्रभावो को दूर कर देती है तथा साधक की रक्ष करती है.

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Thursday, March 27, 2014

कार्तिक महीने का सबसे ज्यादा महत्व है


Collection from -( Writer - स्वर्गपति दास -)  http://hindi.webdunia.com

भगवान कृष्ण के लिए कार्तिक महीने का सबसे ज्यादा महत्व है। उन्होंने इस महीने में सबसे ज्यादा लीलाएं इस धराधाम पर कीं। 

भगवान विष्णु और राधारानी को भी यह महीना सबसे अधिक पसंद है। भगवान विष्णु ने इसमें मस्य अवतार लिया था और राधारानी को यह महीना इसलिए पसंद है क्योंकि इसमें भगवान कृष्ण ने विलक्षण लीलाएं की हैं। तुलसी महारानी के लिए भी यह महीना बेहद महत्व रखता है। तुलसी महारानी का प्राकट्य धराधाम पर कार्तिक की शरद पूर्णिमा के दिन ही हुआ था। 

कार्तिक की शरद पूर्णिमा सबसे अधिक महत्व इसलिए है क्योंकि इस पावन दिवस पर भगवान कृष्ण ने महारास रचाया था। इस दिन वैसे भी चांद की किरणों की शोभा निराली होती है। चांद का यौवन और शीतलता अद्भुत होती है। इस रात्रि वैष्णव भक्त खीर बनाकर उसे चंद्रमा की किरणों से आपुरित करके अगले दिन यह अमृत प्रसाद पाते हैं। 


ND
कार्तिक पूर्णिमा के दिवस पर स्वयं भगवान श्रीकृष्ण तुलसी महारानी की पूजा निम्नलिखित मंत्र से करते हैं :-

वृंदावनी, वृंदा, विश्वपूजिता, पुष्पसार।
नंदिनी, कृष्णजीवनी, विश्वपावनी, तुलसी। 

इस मंत्र से पूर्णिमा के दिन जो भी श्रद्धालु तुलसी महारानी की पूजा करता है वह जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर गोलोक वृंदावन जाने का अधिकारी बनता है। 

पद्म पुराण के अनुसार कार्तिक महीने में कई कल्पों को एकत्रित करते हुए पाप दामोदर कृष्ण को दीपदान करने से समाप्त हो जाते हैं। पद्म पुराण में कृष्ण और सत्यभामा के बीच संवाद से कार्तिक महीने में दीपदान के अद्भुत फलों का रहस्य खुलता है। पूरे कार्तिक महीने भगवान कृष्ण को (जो कि दामोदार भाव में होने चाहिए) दीया दिखाने से अश्वमेघ यज्ञ के फल से भी अधिक लाभ मिलता है। 



ND
दामोदर भाव वाले कृष्ण यशोदा के द्वारा ऊखल से बांधे गए थे, लेकिन अपने भक्तों के दीपदान से वे उनको सांसारिक सभी बंधनों से छुटकारा दिला देते हैं। पद्म पुराण के अनुसार कार्तिक में दीपदान करने वाले श्रद्धालु के पितर और अन्य परिजन कभी नरक का मुंह नहीं देखते। पूरे महीने दीपदान करके कोई भी श्रद्धालु अपनी संपत्ति दान देने के बराबर फल प्राप्त कर सकता है। जो श्रद्धालु किसी अन्य व्यक्ति को दीपदान के लिए अगर प्रेरित करता है तो उसे अग्निस्तोम यज्ञ का फल मिलता है। 

गंगा या पुष्कर में स्नान करने के भी कार्तिक में बहुमूल्य लाभ हैं। इस स्थानों में स्नान करने से श्रद्धालुओं को अनगिनत पुण्य की प्राप्ति होती है।

स्कन्द पुराण में ब्रह्मा जी और नारद के बीच कार्तिक मास में दीपदान की महिमा को लेकर खासी चर्चा हुई है। उनके अनुसार ज्येष्ठ-आषाढ़ के जल दान या फिर पूरा अन्न दान के बराबर फल केवल दीपदान से मिल जाता है। इसके अतिरिक्त ब्रह्मा जी ने दीपदान को राजसुय यज्ञ और अश्वमेघ यज्ञ के समान बताया गया है। पूरे साल भर में तपस्या और भक्ति के लिए निर्दिष्ट चार महीनों यानी चातुर्मास के तीन महीनों का फल अकेले कार्तिक मास में भगवान की सेवा करके प्राप्त किया जा सकता है। 

विशेष कर कार्तिक माह के आखिरी पांच दिनों, जो कि भीष्म पंचक कहलाता है उसमें की गई तपस्या का फल पूरे साल की तपस्या के बराबर है। 


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एकादशी व्रत का धार्मिक महत्व

Information collected by - Ashutosh Joshi 

From 
Bhaskar dot com 

 http://hi.bharatdiscovery.org 

 http://hi.wikipedia.org



एकादश्यां यथोद्दिष्टा विश्वेदेवाः प्रपूजिताः।
प्रजां पशुं धनं धान्यं प्रयच्छन्ति महीं तथा।।


एकादशी पूजा मंत्र!

 

अश्वक्रान्ते रथक्रान्ते विष्णुक्रान्ते वसुन्धरे।
मृत्तिके हर मे पापं जन्मकोटयां समर्जितम्॥

This MANTRA is taken from 
www.onlineprasad.com 


शास्त्रों के अनुसार हिन्दू वर्ष के बारह माह बताए गए हैं और हर माह में दो एकादशी आती हैं क्योंकि प्रत्येक माह में दो पक्ष बताए गए हैं। एक है कृष्ण पक्ष और दूसरा है शुक्ल पक्ष। दोनों ही पक्षों में एकादशी व्रत का गहरा धार्मिक महत्व है।

मूलत: एकादशी व्रत भगवान श्रीहरि को समर्पित है। जो भक्त यह व्रत रखता है उसे भगवान विष्णु की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है। ऐसे लोगों को जीवन के दुख-दर्द नहीं सताते हैं। साथ ही व्यक्ति सदैव निरोगी और स्वस्थ रहता है।

एकादशी व्रत का धार्मिक महत्व है साथ ही यह मानसिक एवं शारीरिक पवित्रता के लिए भी महत्वपूर्ण है। निरोग रहने में यह व्रत श्रेष्ठ उपाय है। यह मन को संयम का भाव सिखाता है। शरीर को नई ऊर्जा प्रदान करता है।

प्रतिदिन चन्द्रमा के घटने और बढऩे का सीधा प्रभाव सभी जीवों और वनस्पतियों पर पड़ता है।  हिन्दू पंचांग तिथियों पर आधारित होता है। इन तिथियों और चन्द्रमा क स्थितियों में गहरा संबंध है।  उसका असर भी शरीर पर वैसा ही पडता है। हर मास में दो एकादशी होती है और इन दोनों तिथियों पर आहार संयम रखा जाए तो यह हमारी पाचन क्रिया को बल प्रदान करता है। शरीर निरोगी बना रहता है।
 नाममासपक्ष
कामदा एकादशीचैत्रशुक्ल
वरूथिनी एकादशीवैशाखकृष्ण
मोहिनी एकादशीवैशाखशुक्ल
अपरा एकादशीज्येष्ठकृष्ण
निर्जला एकादशीज्येष्ठशुक्ल
योगिनी एकादशीआषाढ़कृष्ण
देवशयनी एकादशीआषाढ़शुक्ल
कामिका एकादशीश्रावणकृष्ण
पुत्रदा एकादशीश्रावणशुक्ल
अजा एकादशीभाद्रपदकृष्ण
परिवर्तिनी एकादशीभाद्रपदशुक्ल
इंदिरा एकादशीआश्विनकृष्ण
पापांकुशा एकादशीआश्विनशुक्ल
रमा एकादशीकार्तिककृष्ण
देव प्रबोधिनी एकादशीकार्तिकशुक्ल
उत्पन्ना एकादशीमार्गशीर्षकृष्ण
मोक्षदा एकादशीमार्गशीर्षशुक्ल
सफला एकादशीपौषकृष्ण
पुत्रदा एकादशीपौषशुक्ल
षटतिला एकादशीमाघकृष्ण
जया एकादशीमाघशुक्ल
विजया एकादशीफाल्गुनकृष्ण
आमलकी एकादशीफाल्गुनशुक्ल
पापमोचिनी एकादशीचैत्रकृष्ण
पद्मिनी एकादशीअधिकमासशुक्ल
परमा एकादशीअधिकमासकृष्ण

एकादशी व्रत करने की इच्छा रखने वाले मनुष्य को दशमी के दिन से कुछ अनिवार्य नियमों का पालन करना पड़ेगा। इस दिन मांस, प्याज, मसूर की दाल आदि का निषेध वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा भोग-विलास से दूर रहना चाहिए।
एकादशी के दिन प्रात: लकड़ी का दातुन न करें, नींबू, जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और उँगली से कंठ साफ कर लें, वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी ‍वर्जित है। अत: स्वयं गिरा हुआ पत्ता लेकर सेवन करें। यदि यह संभव न हो तो पानी से बारह बार कुल्ले कर लें। फिर स्नानादि कर मंदिर में जाकर गीता पाठ करें या पुरोहितजी से गीता पाठ का श्रवण करें। प्रभु के सामने इस प्रकार प्रण करना चाहिए कि 'आज मैं चोर, पाखंडी और दुराचारी मनुष्यों से बात नहीं करूँगा और न ही किसी का दिल दुखाऊँगा। रात्रि को जागरण कर कीर्तन करूँगा।'
'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' इस द्वादश मंत्र का जाप करें। राम, कृष्ण, नारायण आदि विष्णु के सहस्रनाम को कंठ का भूषण बनाएँ। भगवान विष्णु का स्मरण कर प्रार्थना करें कि- हे त्रिलोकीनाथ! मेरी लाज आपके हाथ है, अत: मुझे इस प्रण को पूरा करने की शक्ति प्रदान करना।

यदि भूलवश किसी निंदक से बात कर भी ली तो भगवान सूर्यनारायण के दर्शन कर धूप-दीप से श्री‍हरि की पूजा कर क्षमा माँग लेना चाहिए। एकादशी के दिन घर में झाड़ू नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि चींटी आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है। इस दिन बाल नहीं कटवाना चाहिए। न नही अधिक बोलना चाहिए। अधिक बोलने से मुख से न बोलने वाले शब्द भी निकल जाते हैं।
इस दिन यथा‍शक्ति दान करना चाहिए। किंतु स्वयं किसी का दिया हुआ अन्न आदि कदापि ग्रहण न करें। दशमी के साथ मिली हुई एकादशी वृद्ध मानी जाती है। वैष्णवों को योग्य द्वादशी मिली हुई एकादशी का व्रत करना चाहिए। त्रयोदशी आने से पूर्व व्रत का पारण करें।
फलाहारी को गाजर, शलजम, गोभी, पालक, कुलफा का साग इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए। केला, आम, अंगूर, बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करें। प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करना चाहिए। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को मिष्ठान्न, दक्षिणा देना चाहिए। क्रोध नहीं करते हुए मधुर वचन बोलना चाहिए।
इस व्रत में स्वाध्याय की सहज वृत्ति अपनाकर ईश आराधना में लगना और दिन-रात केवल ईश चितंन की स्थिति में रहने का यत्न एकादशी का व्रत करना माना जाता है। स्वर्ण दान, भूमि दान, अन्नदान, गौ दान, कन्यादान आदि करने से जो पुण्य प्राप्त होता है एवं ग्रहण के समय स्नान-दान करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, कठिन तपस्या, तीर्थयात्रा एवं अश्वमेधादि यज्ञ करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, इन सबसे अधिक पुण्य एकादशी व्रत रखने से प्राप्त होता है।

तथ्य

  • सूर्य से चन्द्र का अन्तर जब 121° से 132° तक होता है, तब शुक्ल पक्ष की एकादशी और 301° से 312° तक कृष्ण एकादशी रहती है।
  • एकादशी को ‘ग्यारस या ग्यास’ भी कहते हैं।
  • एकादशी के स्वामी विश्वेदेवा हैं।
  • एकादशी का विशेष नाम ‘नन्दा’ है।
  • एकादशी सोमवार को होने से 'क्रकच योग' तथा 'दग्ध योग' का निर्माण करती है, जो शुभ कार्यों (व्रत उपवास को छोड़कर) में वर्जित है।
  • रविवार तथा मंगलवार को एकादशी मृत्युदा तथा शुक्रवार को सिद्धिदा होती है।
  • एकादशी की दिशा आग्नेय है।
  • चन्द्रमा की इस ग्यारहवीं कला के अमृत का पान उमा देवी करती है।
  • भविष्य पुराण के अनुसार एकादशी को विश्वेदेवा की पूजा करने से धन-धान्य, सन्तति, वाहन, पशु तथा आवास आदि की प्राप्ति होती है।

पद्म पुराण के अनुसार

देवाधिदेव महादेव ने नारद को उपदेश देते हुए कहा- 'एकादशी महान पुण्य देने वाली है। श्रेष्ठ मुनियों को भी इसका अनुष्ठान करना चाहिए।' विशेष नक्षत्रों के योग से यह तिथि जया, विजया, जयन्ती तथा पापनाशिनी नाम से जानी जाती है। शुक्ल पक्ष की एकादशी यदि पुनर्वसु नक्षत्र के सुयोग से हो तो 'जया' कहलाती है। उसी प्रकार शुक्ल पक्ष की ही द्वादशी को श्रवण नक्षत्र हो तो 'विजया' कहलाती है और रोहिणी नक्षत्र होने पर तिथि 'जयन्ती' कहलाती है। पुष्य नक्षत्र का सुयोग होने पर 'पापनाशिनी' तिथि बनती है। एकादशी व्रतों का जहाँ ज्योतिष गणना के अनुसार समय-दिन निर्धारित होता है, वहीं उनका नक्षत्र आगे-पीछे आने वाली अन्य तिथियों के साथ संबध व्रत की महत्ता बढ़ाता है।

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Wednesday, March 26, 2014

रमल से जानें अपने अभीष्ट प्रश्नों का हल

GOOD ARTICLE FROM - 

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स्नानादि से निवृत्त होकर अपने इष्टदेव का ध्यान करें तथा निम्न मन्त्र का यथासंभव या १०८ बार जप करें- 
“ॐ नमो भगवति देवी कूष्माण्डिनि सर्वकार्यप्रसाधिनि सर्वनिमित्तप्रकाशिनि एहि एहि त्वर त्वर वरं देहि लिहि मातंगिनि लिहि सत्यं ब्रूहि ब्रूहि स्वाहा।।”

मन्त्र जप के पश्चात अपने अभीष्ट प्रश्न का विचार करें तथा १६ कोष्ठकों वाले यंत्र के किसी एक कोष्ठक पर 
अपनी अंगुली रख दें। तथा सम्बन्धित प्रश्न का उत्तर प्राप्त करें।

१॰ लह्यान (खारिज) २ कब्जुल (दाखिल) ३॰ कब्जुल (खारिज़) ४॰ जमात (साबित)

५॰ फरहा (मुंकलिब) ६॰ उक़ला (मुंकलिब) ७॰ अंकीस (दाखिल) ८॰ हुमरा (साबित)

९॰ बयाज (साबित) १० नस्त्रुल (खारिज़) ११॰ नस्त्रुल (दाखिल) १२॰ अतवे (खारिज)

१३॰ नकी (मुंकलिब) १४॰ अवते (दाखिल) १५इज्जतमा (साबित) १६॰ तरीक (मुंकलिब)
दाम्पत्य जीवन कैसा रहेगा?

१॰ लह्यान (खारिज)-जीवनसाथी प्रेम का दिखावा करेगा, वास्तविक प्रेम नहीं।
२॰ कब्जुल (दाखिल)-जीवनसाथी बहुत प्यार करेगा।
३॰ कब्जुल (खारिज़)-जीवनसाथी प्रेम का दिखावा करेगा, वास्तविक प्रेम नहीं।
४॰ जमात (साबित)-परेशानियों एवं दिक्कतों के बाद दाम्पत्य सुख मिलेगा।
५॰ फरहा (मुंकलिब)-दाम्पत्य जीवन उतार-चढ़ावपूर्ण होगा।
६॰ उक़ला (मुंकलिब)-दाम्पत्य जीवन उतार-चढ़ावपूर्ण होगा।
७॰ अंकीस (दाखिल)-जीवनसाथी बहुत प्यार करेगा।
८॰ हुमरा (साबित)-विवाह के काफी समय बाद सुख मिलेगा। स्थायित्व है।
९॰ बयाज (साबित)-विवाह के काफी समय बाद सुख मिलेगा। स्थायित्व है।
१०॰ नस्त्रुल (खारिज़)-जीवनसाथी प्रेम का दिखावा करेगा, वास्तविक प्रेम नहीं।
११॰ नस्त्रुल (दाखिल)-जीवनसाथी बहुत प्यार करेगा।
१२॰ अतवे (खारिज)-जीवनसाथी प्रेम का दिखावा करेगा, वास्तविक प्रेम नहीं।
१३॰ नकी (मुंकलिब)-दाम्पत्य जीवन उतार-चढ़ावपूर्ण होगा।
१४॰ अवते (दाखिल)-जीवनसाथी बहुत प्यार करेगा।
१५॰ इज्जतमा (साबित)-विवाह के काफी समय बाद सुख मिलेगा। स्थायित्व है।
१६॰ तरीक (मुंकलिब)-दाम्पत्य जीवन उतार-चढ़ावपूर्ण होगा।
विवाह होगा या नहीं?

१॰ लह्यान (खारिज)-विवाह शीघ्र तथा अवश्य होगा एवं दाम्पत्य जीवन सुखमय रहेगा।
२॰ कब्जुल (दाखिल)-विवाह शीघ्र तथा अवश्य होगा एवं दाम्पत्य जीवन सुखमय रहेगा।
३॰ कब्जुल (खारिज़)-विवाह विघ्न एवं परेशानियों के उपरान्त ही संभव होगा।
४॰ जमात (साबित)-विवाह में अभी विलम्ब है।
५॰ फरहा (मुंकलिब)-अनेक विवाह प्रस्तावों के आने के बाद विवाह तय होगा।
६॰ उक़ला (मुंकलिब)-विवाह तय होते ही टूटेगा तथा दूसरा विवाह सफल होगा।
७॰ अंकीस (दाखिल)-विवाह शीघ्र तथा अवश्य होगा एवं दाम्पत्य जीवन सुखमय रहेगा।
८॰ हुमरा (साबित)-विवाह विलम्ब से होने की सम्भावना है।
९॰ बयाज (साबित)-विवाह में अभी विलम्ब है।
१०॰ नस्त्रुल (खारिज़)-विवाह शीघ्र तथा अवश्य होगा एवं दाम्पत्य जीवन सुखमय रहेगा।
११॰ नस्त्रुल (दाखिल)-विवाह शीघ्र होने वाला है।
१२॰ अतवे (खारिज)-विवाह इसी वर्ष होने वाला है।
१३॰ नकी (मुंकलिब)-विवाह होना असंभव है।
१४॰ अवते (दाखिल)-विवाह शीघ्र तथा अवश्य होगा एवं दाम्पत्य जीवन सुखमय रहेगा।
१५॰ इज्जतमा (साबित)-विवाह में अभी विलम्ब है।
१६॰ तरीक (मुंकलिब)-अनेक विवाह प्रस्तावों के आने के बाद विवाह तय होगा।
लड़का होगा या लड़की?

१॰ लह्यान (खारिज)-गर्भ में लड़का है।
२॰ कब्जुल (दाखिल)-गर्भ में लड़की है।
३॰ कब्जुल (खारिज़)-गर्भ में लड़का है।
४॰ जमात (साबित)-गर्भ में लड़की है।
५॰ फरहा (मुंकलिब)-गर्भ में लड़का है।
६॰ उक़ला (मुंकलिब)-गर्भपात आदि से संतान हानि संभव है।
७॰ अंकीस (दाखिल)-गर्भ में लड़की है।
८॰ हुमरा (साबित)-गर्भ में लड़का है।
९॰ बयाज (साबित)-गर्भ में लड़की है।
१०॰ नस्त्रुल (खारिज़)-गर्भ में लड़का है।
११॰ नस्त्रुल (दाखिल)-गर्भ में लड़की है।
१२॰ अतवे (खारिज)-गर्भ में लड़का है।
१३॰ नकी (मुंकलिब)-गर्भपात आदि से संतान हानि संभव है।
१४॰ अवते (दाखिल)-गर्भ में लड़की है।
१५॰ इज्जतमा (साबित)-गर्भ में लड़का है।
१६॰ तरीक (मुंकलिब)-गर्भ में लड़की है।
अमुक व्यक्ति मुझसे प्रेम करता है या नहीं?

१॰ लह्यान (खारिज)-प्रेम कम करता है।
२॰ कब्जुल (दाखिल)-बहुत प्रेम करता है।
३॰ कब्जुल (खारिज़)-प्रेम दिखावा है।
४॰ जमात (साबित)-बहुत समय के बाद प्रेम करेगा।
५॰ फरहा (मुंकलिब)-प्रेम स्थायी नहीं है।
६॰ उक़ला (मुंकलिब)-प्रेम दिखावा है।
७॰ अंकीस (दाखिल)-नहीं करता है।
८॰ हुमरा (साबित)-बहुत समय के बाद प्रेम करेगा।
९॰ बयाज (साबित)-बहुत समय के बाद प्रेम करेगा।
१०॰ नस्त्रुल (खारिज़)-प्रेम कम करता है।
११॰ नस्त्रुल (दाखिल)-बहुत प्रेम करता है।
१२॰ अतवे (खारिज)-प्रेम दिखावा है।
१३॰ नकी (मुंकलिब)-नहीं करता है।
१४॰ अवते (दाखिल)-बहुत प्रेम करता है।
१५॰ इज्जतमा (साबित)-बहुत समय के बाद प्रेम करेगा।
१६॰ तरीक (मुंकलिब)-प्रेम स्थायी नहीं है।
चोरी गया धन वापस मिलेगा या नहीं?

१॰ लह्यान (खारिज)-वापस नहीं मिलेगा।
२॰ कब्जुल (दाखिल)-चोर से भी दूर जा चुका है।
३॰ कब्जुल (खारिज़)-वापस नहीं मिलेगा।
४॰ जमात (साबित)-वापस शीघ्र मिलेगा।
५॰ फरहा (मुंकलिब)-वापस कुछ मात्रा में ही मिलेगा।
६॰ उक़ला (मुंकलिब)-वापस नहीं मिलेगा।
७॰ अंकीस (दाखिल)-वापस कुछ मात्रा में ही मिलेगा।
८॰ हुमरा (साबित)-वापस कुछ मात्रा में ही मिलेगा।
९॰ बयाज (साबित)-वापस शीघ्र मिलेगा।
१०॰ नस्त्रुल (खारिज़)-वापस नहीं मिलेगा।
११॰ नस्त्रुल (दाखिल)-वापस शीघ्र मिलेगा।
१२॰ अतवे (खारिज)-चोर से भी दूर जा चुका है।
१३॰ नकी (मुंकलिब)-वापस कुछ मात्रा में ही मिलेगा।
१४॰ अवते (दाखिल)-वापस शीघ्र मिलेगा।
१५॰ इज्जतमा (साबित)-वापस शीघ्र मिलेगा।
१६॰ तरीक (मुंकलिब)-वापस कुछ मात्रा में ही मिलेगा।
मुझे किस व्यवसाय से लाभ होगा?

१॰ लह्यान (खारिज)-धोखेबाजी, चोरी एवं अनैतिक व्यक्तियों की सहायता से।
२॰ कब्जुल (दाखिल)-वस्त्र, सौन्दर्यप्रसाधन एवं कृषि आदि से।
३॰ कब्जुल (खारिज़)-धोखेबाजी, चोरी एवं अनैतिक व्यक्तियों की सहायता से।
४॰ जमात (साबित)-पशुपालन तथा चिकित्सा से जुड़े कार्यों से।
५॰ फरहा (मुंकलिब)-कलाकारी, पंसारी, जड़ी-बूटी तथा विनोदपूर्ण कार्यों से।
६॰ उक़ला (मुंकलिब)-ठगी विद्या, धोखेबाजी, चोरी जानवरों के क्रय-विक्रय से।
७॰ अंकीस (दाखिल)-सोना-चाँदी, वकालत एवं वस्तुओं को कूटने-पीसने के कार्य से।
८॰ हुमरा (साबित)-पत्रवाहक के कार्य तथा भिक्षावृत्ति से।
९॰ बयाज (साबित)-पत्रवाहक के कार्य तथा भिक्षावृत्ति से।
१०॰ नस्त्रुल (खारिज़)-धोखेबाजी, चोरी एवं अनैतिक व्यक्तियों की सहायता से।
११॰ नस्त्रुल (दाखिल)-विद्या के द्वारा।
१२॰ अतवे (खारिज)-कृषि कार्य, दलाली, दुकानदारी से।
१३॰ नकी (मुंकलिब)-वस्त्र-विक्रेता, ज्योतिष, क्रय-विक्रय से।
१४॰ अवते (दाखिल)-वस्त्र, सौन्दर्यप्रसाधन एवं कृषि आदि से।
१५॰ इज्जतमा (साबित)-संगीत, गायन, वादन, किसी विद्या के प्रशिक्षण से।
१६॰ तरीक (मुंकलिब)-ड्राइक्लीनर्स, मेवा व्यवसाय एवं गुप्तचरी से।
मुझे विदेश यात्रा से लाभ होगा या हानि?
१॰ लह्यान (खारिज)-विदेश जाने का कोई लाभ नहीं होगा।
२॰ कब्जुल (दाखिल)-विदेश यात्रा से लाभ होगा।
३॰ कब्जुल (खारिज़)-विदेश यात्रा से शारीरिक कष्ट होगा।
४॰ जमात (साबित)-विदेश जाने का कोई लाभ नहीं होगा।
५॰ फरहा (मुंकलिब)-विदेश में मित्र से लाभ होगा।
६॰ उक़ला (मुंकलिब)-विदेश यात्रा से शारीरिक कष्ट होगा।
७॰ अंकीस (दाखिल)-विदेश में मित्र से लाभ होगा।
८॰ हुमरा (साबित)-विदेश यात्रा से शारीरिक कष्ट होगा।
९॰ बयाज (साबित)-विदेश यात्रा से लाभ होगा।
१०॰ नस्त्रुल (खारिज़)-विदेश में मित्र से लाभ होगा।
११॰ नस्त्रुल (दाखिल)-विदेश यात्रा से लाभ होगा।
१२॰ अतवे (खारिज)-विदेश यात्रा से शारीरिक कष्ट होगा।
१३॰ नकी (मुंकलिब)-विदेश में मित्र से लाभ होगा।
१४॰ अवते (दाखिल)-विदेश जाने का कोई लाभ नहीं होगा।
१५॰ इज्जतमा (साबित)-विदेश यात्रा से लाभ होगा।
१६॰ तरीक (मुंकलिब)-विदेश में मित्र से लाभ होगा।
अमुक कैदी छूटेगा या नहीं?

१॰ लह्यान (खारिज)-कैदी बन्धन से मुक्त हो जायेगा।
२॰ कब्जुल (दाखिल)-कैदी मुक्त नहीं होगा।
३॰ कब्जुल (खारिज़)-कैदी बन्धन से मुक्त हो जायेगा।
४॰ जमात (साबित)-काफी समय तक बंधन में कष्ट भोगने के बाद छूटेगा।
५॰ फरहा (मुंकलिब)-कैदी बंधन में अत्यधिक कष्ट भोगेगा तथा अधिक विलम्ब से छूटने की सम्भावना है।
६॰ उक़ला (मुंकलिब)-कैदी बंधन में अत्यधिक कष्ट भोगेगा तथा अधिक विलम्ब से छूटने की सम्भावना है।
७॰ अंकीस (दाखिल)-कैदी मुक्त नहीं होगा।
८॰ हुमरा (साबित)-काफी समय तक बंधन में कष्ट भोगने के बाद छूटेगा।
९॰ बयाज (साबित)-काफी समय तक बंधन में कष्ट भोगने के बाद छूटेगा।
१०॰ नस्त्रुल (खारिज़)-कैदी बन्धन से मुक्त हो जायेगा।
११॰ नस्त्रुल (दाखिल)-कैदी मुक्त नहीं होगा।
१२॰ अतवे (खारिज)-कैदी बन्धन से मुक्त हो जायेगा।
१३॰ नकी (मुंकलिब)-कैदी बंधन में अत्यधिक कष्ट भोगेगा तथा अधिक विलम्ब से छूटने की सम्भावना है।
१४॰ अवते (दाखिल)-कैदी मुक्त नहीं होगा।
१५॰ इज्जतमा (साबित)-काफी समय तक बंधन में कष्ट भोगने के बाद छूटेगा।
१६॰ तरीक (मुंकलिब)-कैदी बंधन में अत्यधिक कष्ट भोगेगा तथा अधिक विलम्ब से छूटने की सम्भावना है।
अमुक स्थान पर गड़ा धन है या नहीं ?

१॰ लह्यान (खारिज)-नहीं है।
२॰ कब्जुल (दाखिल)-है।
३॰ कब्जुल (खारिज़)-नहीं है।
४॰ जमात (साबित)-मेहनत व्यर्थ जाएगी।
५॰ फरहा (मुंकलिब)-थोड़ा है।
६॰ उक़ला (मुंकलिब)-है।
७॰ अंकीस (दाखिल)-है।
८॰ हुमरा (साबित)-मेहनत व्यर्थ जाएगी।
९॰ बयाज (साबित)-मेहनत व्यर्थ जाएगी।
१०॰ नस्त्रुल (खारिज़)-नहीं है।
११॰ नस्त्रुल (दाखिल)-है।
१२॰ अतवे (खारिज)-नहीं है।
१३॰ नकी (मुंकलिब)-होना चाहिए।
१४॰ अवते (दाखिल)-है।
१५॰ इज्जतमा (साबित)-मेहनत व्यर्थ जाएगी।
१६॰ तरीक (मुंकलिब)-होना चाहिए।
मुकदमे में हार होगी या जीत?

१॰ लह्यान (खारिज)-जीत अवश्य होगी।
२॰ कब्जुल (दाखिल)-जीत अवश्य होगी।
३॰ कब्जुल (खारिज़)-विरोधी पक्ष प्रबल है।
४॰ जमात (साबित)-विरोधी से समझौता करना होगा।
५॰ फरहा (मुंकलिब)-जीत अवश्य होगी।
६॰ उक़ला (मुंकलिब)-विरोधी पक्ष प्रबल है।
७॰ अंकीस (दाखिल)-विरोधी पक्ष प्रबल है।
८॰ हुमरा (साबित)-विरोधी पक्ष प्रबल है। जीत नहीं होगी।
९॰ बयाज (साबित)-जीत अवश्य होगी।
१०॰ नस्त्रुल (खारिज़)-जीत अवश्य होगी।
११॰ नस्त्रुल (दाखिल)-जीत अवश्य होगी।
१२॰ अतवे (खारिज)-विरोधी पक्ष प्रबल है।
१३॰ नकी (मुंकलिब)-विरोधी पक्ष प्रबल है।
१४॰ अवते (दाखिल)-जीत अवश्य होगी।
१५॰ इज्जतमा (साबित)-विरोधी से समझौता होगा।
१६॰ तरीक (मुंकलिब)-जीत अवश्य होगी।
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Wednesday, March 19, 2014

ज्योतिष के प्रमुख 12 प्रकार-

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1. कुंडली ज्योतिष :- यह कुंडली पर आधारित विद्या है। इसके तीन भाग है- सिद्धांत ज्योतिष, संहिता ज्योतिष और होरा शास्त्र। इस विद्या के अनुसार व्यक्ति के जन्म के समय में आकाश में जो ग्रह, तारा या नक्षत्र जहाँ था उस पर आधारित कुंडली बनाई जाती है। बारह राशियों पर आधारित नौ ग्रह और 27 नक्षत्रों का अध्ययन कर जातक का भविष्य बताया जाता है। उक्त विद्या को बहुत से भागों में विभक्त किया गया है, लेकिन आधुनिक दौर में मुख्यत: चार माने जाते हैं। ये चार निम्न हैं- नवजात ज्योतिष, कतार्चिक ज्योतिष, प्रतिघंटा या प्रश्न कुंडली और विश्व ज्योतिष विद्या।
2. लाल किताब की विद्या :- यह मूलत: उत्तरांचल, हिमाचल और कश्मीर क्षेत्र की विद्या है। इसे ज्योतिष के परंपरागत सिद्धांत से हटकर 'व्यावहारिक ज्ञान' माना जाता है। इसे बहुत ही कठिन विद्या माना जाता है। इसके अच्‍छे जानकार बगैर कुंडली को देखे उपाय बताकर समस्या का समाधान कर सकते हैं। उक्त विद्या के सिद्धांत को एकत्र कर सर्वप्रथम इस पर एक ‍पुस्तक प्रकाशित की थी जिसका नाम था 'लाल किताब के फरमान'। मान्यता अनुसार उक्त किताब को उर्दू में लिखा गया था इसलिए इसके बारे में भ्रम उत्पन्न हो गया।
3. गणितीय ज्योतिष :- इस भारतीय विद्या को अंक विद्या भी कहते हैं। इसके अंतर्गत प्रत्येक ग्रह, नक्षत्र, राशि आदि के अंक निर्धारित हैं। फिर जन्म तारीख, वर्ष आदि के जोड़ अनुसार भाग्यशाली अंक और भाग्य निकाला जाता है।
4. नंदी नाड़ी ज्योतिष :- यह मूल रूप से दक्षिण भारत में प्रचलित विद्या है जिसमें ताड़पत्र के द्वारा भविष्य जाना जाता है। इस विद्या के जन्मदाता भगवान शंकर के गण नंदी हैं इसी कारण इसे नंदी नाड़ी ज्योतिष विद्या कहा जाता है।
5. पंच पक्षी सिद्धान्त :- यह भी दक्षिण भारत में प्रचलित है। इस ज्योतिष सिद्धान्त के अंतर्गत समय को पाँच भागों में बाँटकर प्रत्येक भाग का नाम एक विशेष पक्षी पर रखा गया है। इस सिद्धांत के अनुसार जब कोई कार्य किया जाता है उस समय जिस पक्षी की स्थिति होती है उसी के अनुरूप उसका फल मिलता है। पंच पक्षी सिद्धान्त के अंतर्गत आने वाले पाँच पंक्षी के नाम हैं गिद्ध, उल्लू, कौआ, मुर्गा और मोर। आपके लग्न, नक्षत्र, जन्म स्थान के आधार पर आपका पक्षी ज्ञात कर आपका भविष्य बताया जाता है।
6. हस्तरेखा ज्योतिष :- हाथों की आड़ी-तिरछी और सीधी रेखाओं के अलावा, हाथों के चक्र, द्वीप, क्रास आदि का अध्ययन कर व्यक्ति का भूत और भविष्य बताया जाता है। यह बहुत ही प्राचीन विद्या है और भारत के सभी राज्यों में प्रचलित है।
7. नक्षत्र ज्योतिष :- वैदिक काल में नक्षत्रों पर आधारित ज्योतिष विज्ञान ज्यादा प्रचलित था। जो व्यक्ति जिस नक्षत्र में जन्म लेता था उसके उस नक्षत्र अनुसार उसका भविष्य बताया जाता था। नक्षत्र 27 होते हैं।
8. अँगूठा शास्त्र :- यह विद्या भी दक्षिण भारत में प्रचलित है। इसके अनुसार अँगूठे की छाप लेकर उस पर उभरी रेखाओं का अध्ययन कर बताया जाता है कि जातक का भविष्य कैसा होगा।
9. सामुद्रिक विद्या:- यह विद्या भी भारत की सबसे प्राचीन विद्या है। इसके अंतर्गत व्यक्ति के चेहरे, नाक-नक्श और माथे की रेखा सहित संपूर्ण शरीर की बनावट का अध्ययन कर व्यक्ति के चरित्र और भविष्य को बताया जाता है।
10. चीनी ज्योतिष :- चीनी ज्योतिष में बारह वर्ष को पशुओं के नाम पर नामांकित किया गया है। इसे ‘पशु-नामांकित राशि-चक्र’ कहते हैं। यही उनकी बारह राशियाँ हैं, जिन्हें 'वर्ष' या 'सम्बन्धित पशु-वर्ष' के नाम से जानते हैं। यह वर्ष निम्न हैं- चूहा, बैल, चीता, बिल्ली, ड्रैगन, सर्प, अश्व, बकरी, वानर, मुर्ग, कुत्ता और सुअर। जो व्यक्ति जिस वर्ष में जन्मा उसकी राशि उसी वर्ष अनुसार होती है और उसके चरित्र, गुण और भाग्य का निर्णय भी उसी वर्ष की गणना अनुसार माना जाता है।
11. वैदिक ज्योतिष :- वैदिक ज्योतिष अनुसार राशि चक्र, नवग्रह, जन्म राशि के आधा‍र पर गणना की जाती है। मूलत: नक्षत्रों की गणना और गति को आधार बनाया जाता है। मान्यता अनुसार वेदों का ज्योतिष किसी व्यक्ति के भविष्य कथक के लिए नहीं, खगोलीय गणना तथा काल को विभक्त करने के लिए था।
12. टैरो कार्ड :- टैरो कार्ड में ताश की तरह पत्ते होते हैं। जब भी कोई व्यक्ति अपना भविष्य या भाग्य जानने के लिए टैरो कार्ड के जानकार के पास जाता है तो वह जानकार एक कार्ड निकालकर उसमें लिखा उसका भविष्य बताता है।

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Saturday, March 15, 2014

होली पर्व पर राशि अनुसार विशेष उपाय​ :

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आलेख - पं. कंदर्प आचार्य


गुरुकृपा, जैन मंदीर के पास,
मु.पो.- लिमडी, ता- झालोद, जि- दाहोद.
पिन कोड- 389180 ( गुजरात )  
मो: 09724452512, 09724452616


 हमारे प्राचीन मनीषियों ने फाल्गुन पूर्णिमा को विशेष महत्त्व देते हुए उस दिन गेहूंजौ आदि की बालियां होलिका में भून कर नवान्नेष्टि करने का निर्देश दिया है और एक-दूसरे को मिष्टान सहित बांट कर खाने-खिलाने को लाभप्रद बताया है। पूजा-पाठ व साधना की दृष्टि से भी होली की रात्रि को अति महत्त्वपूर्ण बताया गया है जिसमें संकल्प लेकर किए जाने वाले उपायों का लाभ अवश्य प्राप्त होता है। द्वादश राशि के जातक-जातिकाएं होली के दिन क्या उपाय करें कि उनके घर में खुशहाली आएकारोबार में वृध्दि होधन लाभ हो और आस पास का सम्पूर्ण वातावरण मंगलमय हो।
होली पर्व पर राशि अनुसार विशेष उपाय​ :
मेष राशि :
1. इस राशि के जातक-जातिकाओं को किसी भी प्रकार की कारोबारीपारिवारिक या स्वास्थ्य सम्बंधी परेशानी हो या इसका हमेशा भय बना रहता हैमेहनत का उचित फल नहीं मिलता हो। तो होलिका दहन के समय एक तांबे की कटोरी में चमेली का तेलपांच लौंग और आंवले के पेड़ के पांच पत्तेथोड़ा सा गुड़। यह सभी समान कटोरी में रख दें। मंगल गायत्री का 108 बार जाप करते हुए समस्त सामग्री को होलिका दहन के समय होलिका में अर्पित कर देना चाहिए। प्रात: काल सुबह होली की थोड़ी सी राख लेकर आएं और उस राख को चमेली के तेल में मिला कर अपने शरीर पर मालिश करें। किसी भी तरह की समस्या होगी उसका निवारण होगा। एक घंटे बाद हल्के गरम पानी से स्नान कर लें।
2. दूसरे दिन ब्रह्ममुर्हूत्त में जहाँ होली जली थी वहाँ की सात चुटकी राखसात तांबे के छेद वाले सिक्केलाल कपड़े में बांधकर अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान के मुख्य द्वार पर टांग दें या इस सामग्री को अपनी तिजोरी में रख दें। धन लाभ अवश्य होगा।
वृष राशि:
1. इस राशि के जातक-जातिकाओं को यदि व्यापारिक समस्या होघर में सुख शांति न होलेन-देन के मसलों से परेशानी होस्वास्थ्य अनुकूल न रहता होकारोबार से लाभ न मिल रहा हो तो चाँदी की कटोरी ले लें और उसमें थोड़ा सा दूधपांच चुटकी चावल डाल देंगुलमोहर के पांच पत्ते डाल दें। थोड़ा पांच चुटकी शक्करइन सारे सामानों को होलिका दहन के समय शिव गायत्री का 108 बार जाप करके अग्नि को समर्पित कर दें। कैसी भी व्यापारिक समस्या होगी उसका निवारण हो जाएगा।
2. होली के प्रात:काल सफेद कपड़े में 11 चुटकी होलिका दहन की राख और एक सिक्का चाँदी का बांध लें। इस सामग्री को अपनी तिजोरी में रख दें। कारोबारी सारी समस्याओं का निवारण होगा।
मिथुन राशि:
1. अनावश्यक कलहव्यापार में घाटाअपनों का विरोधमानसिक अस्थिरताइन सारी समस्याओं के निवारण के लिए होलिका दहन के समय कांसे की कटोरी में 50 ग्राम हरे धनिया का रस, 108 दाने साबूत मूंग केपीपल के पांच पत्तेकोई भी हरे रंग की मिठाई – इन सारी सामग्रियों को अपने हाथ में रख कर ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे का 108 बार जाप करके इस सामग्री को होलिका दहन के समय अग्नि को समर्पित कर दें। सारी समस्याओं का निवारण हो जाएगा।
2. हरे कपड़े में 3 चुटकी होलिका दहन की राख, 3 हरे हकीक के पत्थर बांधकर अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान के मुख्य द्वार पर बांध लें या इस सामग्री को तिजोरी में रख दें। कारोबारी समस्या का निवारण अवश्य होगा।
कर्क राशि :
1. मानसिक अस्थिरता रहेकाम में रुचि नहीं रहेअपनों से धोखा मिला करेकाम बदलने की प्रवृत्ति बढ़ेतो ऐसी अवस्था में सभी समस्याओं के समाधान के लिए एक कटोरी ले लें और उसमें थोड़ा सा दही रख लेंफिर उसमें पांच चुटकी चावल भी डाल लेंअशोक के सात पत्ते और सफेद पेठा की मिठाई ले लें। इन सबको कटोरी में रख कर अपने हाथ में रख लें। महामृत्युंजय का 108 बार जाप करके अग्नि को समर्पित कर दें। इससे सारी समस्याओं का निवारण हो जाएगा।
2. प्रात:काल सफेद कपड़े में होलिका दहन की राख 7 चुटकी, 7 गोमती चक्र बांधकर दुकानव्यापारिक प्रतिष्ठान या घर के मुख्य द्वार पर लटका दें अथवा अपनी तिजोरी में रख दें। महालक्ष्मी की कृपा अवश्य होगी।
सिंह राशि:
1. यदि कारोबार में सफलता नहीं मिल रही होस्वास्थ्य अनुकूल नहीं होकार्यों में अप्रत्याशित बाधा आ रही हो तो होलिका दहन के दिन कांसे की कटोरी में थोड़ा सा घी ले लेंपांच चुटकी गेहूंपांच चुटकी देसी खाण्डअशोक वृक्ष के पांच पत्तेकटोरी में रखकर अपने हाथ में ले लें और सूर्य गायत्री का 108 बार जाप करके समस्त सामग्री को होलिका को समर्पित कर दें। सारी समस्याओं का समाधान हो जाएगा।
2. सुनहरे कपड़े में 5 चुटकी होलिका दहन की राखतांबे के पत्र पर खुदा हुआ सूर्य यंत्रपांच तांबे के पुराने सिक्के बांधकर जहाँ धन रखते हैंयदि वहाँ रख दिया जाए तो व्यावसायिक प्रतिकूलताओं का शमन होगा। एक बात का ध्यान अवश्य रखेंसूर्य यंत्र को खोल कर घी का दिया व धूप अवश्य दिखाएं।
कन्या राशि:
1. किसी काम में स्थिरता नहीं बनती होदिए हुए पैसे वापस नहीं मिल रहे होंअपनों की वजह से हमेशा परेशानी झेलनी पड़ रही हो या कारोबारी या कानूनी समस्या हो तो ताम्बे की कटोरी में आंवले का थोड़ा सा तेल ले लें और पांच पत्ते नीमपांच इलायचीनारियल से बनी मिठाईइन सारी सामग्री को कटोरी में डाल कर अपने हाथ में रख लें और 108 बार बुध के बीज मंत्र का जाप करते हुए सारी सामग्री को हालिका में दहन कर दें। सारी समस्याओं का निवारण हो जाएगा।
2. हरे कपड़े में 11 चुटकी होलिका दहन की राख, 11 बलास्त (बीता) हरा धागाछेद वाले तांबे के सात सिक्के बांध कर दुकानव्यापारिक प्रतिष्ठान आदि के मुख्य द्वार पर टांग दें या अपने तिजोरी में रखने से कारोबार में वृध्दि होगी और सारी समस्याओं का निवारण हो जाएगा।
तुला राशि:
1. यदि व्यापारिकशारीरिक या पारिवारिक समस्याओं से जूझना पड़ रहा हो अथवा अनावश्यक कार्य बाधा आ रही हो तो इन्हें चाँदी की कटोरी में पांच छोटी चम्मच गाय के दूध की खीर ले लेंपांच पत्ते शीशम केगेंदा के पांच फूलइन सारी सामग्रियों को अपने हाथ में रख कर शिव षडाक्षरी मंत्र यानी ॐ नम: शिवाय का 108 बार जाप करके होलिका दहन के समय यह समस्त सामग्री अग्नि को समर्पित कर दें। सारी समस्याओं का निवारण हो जाएगा।
2. क्रीम रंग के कपड़े में 7 चुटकी होलिका दहन की राख, 7 कोड़ियां पीली धारी वाली बांधकर अपनी तिजोरी में रख दें। अवश्य लाभ होगा।
वृश्चिक राशि:
1. इस राशि के जातक-जातिका यदि कार्य सफलता के लिए जूझना पड़ रहा हो और तब भी कार्य सफलता न मिल रही होकारोबार में लाभ न मिल रहा हो तो इन्हें तांबे की कटोरी में चमेली का तेल डाल करपांच साबूत लाल मिर्चएक बुंदी का लड्डूपांच गूलर के पत्तेइन समस्त सामग्री को अपने हाथ में रखकर ॐ हं पवननन्दनाय स्वाहा का 108 बार जाप करके सारी सामग्री अग्नि को समर्पित कर दें। सारी समस्याओं का निवारण हो जाएगा।
2. लाल कपड़े में 17 चुटकी होलिका दहन की राख, 1 लाल मूंगा बांधकर अपनी तिजोरी में रख दें। कारोबार सम्बंधित सारी समस्या का निवारण होगा।
धनु राशि:
1. यदि व्यापारिकशारीरिक या पारिवारिक समस्याओं से जूझना पड़ रहा हो अथवा अनावश्यक कार्य बाधा आ रही हो तो इन्हें एक पीतल की कटोरी में देसी गाय का थोड़ा सा घीथोड़ा सा गुड़पांच चुटकी चने की दालपांच आम के पत्ते डाल अपने हाथ में रख लें फिर बृहस्पति गायत्री मंत्र का 108 बार जाप करके इन समस्त सामग्रियों को होलिका दहन के समय अग्नि को समर्पित कर दें। सारी समस्याओं का निवारण हो जाएगा।
2. पीले कपड़े में 9 चुटकी होलिका दहन की राख एवं 11 पीली कोड़ियां बांधकर अपनी तिजोरी में रख लें। कारोबार सम्बंधी कष्टों से छुटकारा मिल जाएगा।
मकर राशि:
1. यदि व्यापारिकशारीरिक या पारिवारिक समस्याओं से जूझना पड़ रहा होअथवा अनावश्यक कार्य बाधा आ रही हो तो इन्हें एक लोहे की कटोरी में सरसों का तेल थोड़ा सा लेंउसमें पांच चुटकी काली तिलपांच बरगद के पत्तेएक काला गुलाब जामुन मिठाईइन समस्त सामग्रियों को अपने हाथ में लेकर ॐ शं शनैश्चराय नम: इस मंत्र का 108 बार जाप करके इस समस्त सामग्री को हालिका दहन के समय अग्नि में समर्पित कर दें। सारी समस्याओं का निवारण हो जाएगा।
2. नीले कपड़े में 11 चुटकी राख, 11 छोटी लोहे की कील बांधकर घर या व्यापारिक संस्था के मुख्य द्वार पर लटका दें। सारी समस्याओं का निवारण हो जाएगा।
कुम्भ राशि:
1. यदि व्यापारिकशारीरिक या पारिवारिक समस्याओं से जूझना पड़ रहा होअथवा अनावश्यक कार्य बाधा आ रही हो तो इन्हें एक स्टील की कटोरी में तिल का तेल, 108 दानें साबूत उड़द केखेजड़ी (झण्डी) के पांच पत्ते या कदंब के पांच पत्तेपांच काली मिर्चकोई भी काले रंग की एक मिठाईइन समस्त सामग्री को अपने हाथ में रख कर मंगलकारी शनि मंत्र की 108 बार जाप करके होलिका दहन के समय अग्नि को समर्पित कर दें। सारी समस्याओं का निवारण हो जाएगा।
2. काले कपड़े में 11 चुटकी होलिका दहन की राख, 7 काजल की डिब्बी बांधकर कारोबारी प्रतिष्ठान के मुख्य द्वार पर लटका दें। सारी समस्याओं का निवारण हो जाएगा।
मीन राशि:
1. यदि व्यापारिकशारीरिक या पारिवारिक समस्याओं से जूझना पड़ रहा हो अथवा अप्रत्याशित कार्य बाधा आ रही हो तो इन्हें कांसे की कटोरी में बादाम का तेल थोड़ा सा उसमें 108 जोड़े चने की दाल केकोई भी थोड़ी सी पीली मिठाईआम के पांच पत्तेएक गांठ हल्दीइन समस्त सामग्री को अपने हाथ में लेकर ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं गुरवे नम: मंत्र का 108 बार जाप करके इन समस्त सामग्रियों को हालिका दहन के दिन अग्नि को समर्पित कर दें। सारी समस्याओं का निवारण हो जाएगा।
2. पीले कपड़े में 7 चुटकी होलिका दहन की राखतांबे के 7 सिक्के और 11 कौड़ी बांधकर घरदुकानव्यापारिक प्रतिष्ठान के मुख्य द्वार पर लटका दें। सारी व्यावसायिक पीड़ाओं से छुटकारा मिलेगा।
किस  राशि  वाले किस रंग से होली खेले :
(1) मेष लाल- (2) वृष नीला- (3) मिथुन हरा- (4) कर्क गुलाबी- (5) सिंह आंरेन्ज
(6) कन्या हरा- (7) तुला नीला- (8) वृश्चिक मैरून- (9) धनु पीला- (10) मकर नीला
(11) कुम्भ परपल- (12) मीन पीला-
आप चाहें तो अपने रंगों अबीर गुलाल में खुशबू मिला सकते है |
किस राशि वाले कौन सी खुशबू  मिलायें |
(1) मेष गुलाब- (2) वृष चमेली- (3) मिथुन चम्पा- (4)  कर्क लवैन्डर- -(5) सिंह कस्तूरी-(6) कन्या नाग चम्पा- (7) तुला -बेला - (8) वृश्चिक रोज मैरी- (9) धनु -- केसर- (10) मकर -मुश्कम्बर- (11) कुम्भ चन्दन- (12) मीन लैमन ग्रास
1) होली के दिन क्या करें और क्या न करें :- सबसे पहली बात तो यह है कि रंग जरुर खेले इस दिन रंग खेलने से जीवन में खुशियों के रंग आते है और मनहूसियत दूर भाग जाती है | अगर आप घर से बाहर  जा कर होली नहीं खेलना  चाहते हैं तो घर पर ही  होली खेलिये लेकिन खेलिये जरुर |
(2) सुबह सुबह पहले भगवान को रंग चढ़ा कर ही होली खेलना शुरू कीजिये |
(3) एक दिन पहले जब होली जलाई जाये तो उसमे जरुर भाग लें | अगर किसी वजह से आप रात में होलीं जलाने के वक्त शामिल न हो पायें तो अगले दिन सुबह सूरज निकलने से पहले जलती हुई होली के निकट जाकर तीन परिक्रमा करें | होली में अलसी , मटर ,चना गेंहू कि बालियाँ और गन्ना इनमे से जो कुछ भी मिल जाये उसे होली की आग में जरुर   डालें |
(4) परिवार के सभी सदस्यों के पैर के अंगूठे से लेकर हाथ को सिर से ऊपर पूरा ऊँचा करके कच्चा सूत नाप कर होली में डालें |
(5) होली की विभूति यानि भस्म (राखघर जरुर लायें पुरुष इस भस्म को मस्तक पर और महिला अपने गले में लगायेइससे एश्वर्य बढ़ता है |
(6) घर के बीच में एक चौकोर टुकड़ा साफ कर के उसमे कामदेव का पूजन करें |
(7) होली के दिन दाम्पत्य भाव से अवश्य रहें |
(8) होली के दिन मन में किसी के प्रति शत्रुता का भाव न रखें,  इससे साल भर आप शत्रुओं पर विजयी होते रहेंगे |
( 9 ) घर आने वाले मेहमानों को सौंफ और मिश्री जरुर खिलायेंइससे प्रेम भाव बढ़ता है |

We wish all of you a very happy and colorful HOLI-2014- Ashutosh - Blogger