Tuesday, March 6, 2012

अद्भुत व चमत्कारी गोमती चक्र अद्भुत व चमत्कारी गोमती चक्र



BY MR. MANISH JAIN ON FACE BOOK

होली पर अथवा ग्रहण काल में साधक को चाहिए कि गोमती चक्र अपने सामने रखे लें और उस पर 


निम्न मन्त्र की 11 माला फेरें :-


मन्त्रः-


“ॐ वं आरोग्यानिकरी रोगानशेषा नमः”


इस प्रकार जब 11 मालाएँ सम्पन्न हो जायें तब साधक को वह गोमती चक्र सावधानी-पूर्वक अपने पास 


रखना चाहिये । इस सिद्ध गोमती चक्र का प्रभाव तीन वर्ष रहता है ।



इसका प्रयोग किसी भी बिमारी के लिये किया जा सकता है । एक ताँबे के पात्र में यह सिद्ध गोमती चक्र 


स्थापन कर जल से भर कर उपरोक्त मन्त्र का 21 बार उच्चारण करें, तत्पश्चात् गोमती चक्र को निकाल कर 


तथा वह जल रोगी को पीने के लिये दें ।



गोमती चक्र के कुछ अन्य उपयोग निम्न प्रकार हैं-

१॰ यदि इस गोमती चक्र को लाल सिन्दूर की डिब्बी में घर में रखे, तो घर में सुख-शान्ति बनी रहती है ।



२॰ यदि घर में भूत-प्रेतों का उपद्रव हो, तो दो गोमती चक्र लेकर घर के मुखिया के ऊपर से घुमाकर आग में 


डाल दे, तो घर से भूत-प्रेत का उपद्रव समाप्त हो जाता है ।



३॰ यदि घर में बिमारी हो या किसी का रोग शान्त नहीं हो रहा हो तो एक गोमती चक्र लेकर उसे चाँदी में 


पिरोकर रोगी के पलंग के पाये पर बाँध दें, तो उसी दिन से रोगी का रोग समाप्त होने लगता है ।



४॰ व्यापार वृद्धि के लिए दो गोमती चक्र लेकर उसे बाँधकर ऊपर चौखट पर लटका दें, और ग्राहक उसके नीचे 


से निकले, तो निश्चय ही व्यापार में वृद्धि होती है ।



५॰ प्रमोशन नहीं हो रहा हो, तो एक गोमती चक्र लेकर शिव मन्दिर में शिवलिंग पर चढ़ा दें, और सच्चे मन से 


प्रार्थना करें । निश्चय ही प्रमोशन के रास्ते खुल जायेंगे ।



६॰ पति-पत्नी में मतभेद हो तो तीन गोमती चक्र लेकर घर के दक्षिण में “हलूं बलजाद” कहकर फेंक दें, 


मतभेद समाप्त हो जायेगा ।



७॰ पुत्र प्राप्ति के लिए पाँच गोमती चक्र लेकर किसी नदी या तालाब में “हिलि हिलि मिलि मिलि चिलि चिलि हुं

” पाँच बार बोलकर विसर्जित करें ।



८॰ यदि बार-बार गर्भ नष्ट हो रहा हो, तो दो गोमती चक्र लाल कपड़े में बाँधकर कमर में बाँध दें ।



९॰ यदि शत्रु अधिक हो तथा परेशान कर रहे हो, तो तीन गोमती चक्र लेकर उन पर शत्रु का नाम लिखकर 


जमीन में गाड़ दें ।



१०॰ कोर्ट-कचहरी में सफलता पाने के लिये, कचहरी जाते समय घर के बाहर गोमती चक्र रखकर उस पर 


अपना दाहिना पैर रखकर जावें ।



११॰ भाग्योदय के लिए तीन गोमती चक्र का चूर्ण बनाकर घर के बाहर छिड़क दें ।



१२॰ राज्य-सम्मान-प्राप्ति के लिये दो गोमती चक्र किसी ब्राह्मण को दान में दें ।



१३॰ तांत्रिक प्रभाव की निवृत्ति के लिये बुधवार को चार गोमती चक्र अपने सिर के ऊपर से उबार कर चारों 


दिशाओं में फेंक दें ।



१४॰ चाँदी में जड़वाकर बच्चे के गले में पहना देने से बच्चे को नजर नहीं लगती तथा बच्चा स्वस्थ बना 


रहता है ।



१५॰ दीपावली के दिन पाँच गोमती चक्र पूजा-घर में स्थापित कर नित्य उनका पूजन करने से निरन्तर 


उन्नति होती रहती है ।



१६॰ रोग-शमन तथा स्वास्थ्य-प्राप्ति हेतु सात गोमती चक्र अपने ऊपर से उबार कर किसी ब्राह्मण या फकीर 


को दें ।



१७॰ 11 गोमती चक्रों को लाल पोटली में बाँधकर तिजोरी में अथवा किसी सुरक्षित स्थान पर सख दें, तो 


व्यापार उन्नति करता जायेगा ।



होली का त्यौहार आया है,

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दोस्तों,
होली का त्यौहार आया है,
आनंद और प्यार लाया है,
मस्ती मै झूम लो,
बस्ती मै घूम लो,
रंग से खेलो पर,
भंग से दूर रहो.
जल अमुल्य है,
जल को बचाना है.
सूखे रंगों से ही अब,
अपना प्यार जताना है.
आशुतोष जोशी

Monday, March 5, 2012

शिखा का महत्त्व

REQUEST KINDLY READ AND COMMENT

AN ARTICLE BY TAPAN SENGUPTA ON FACE BOOK

मृत्यु के समय आत्मा शरीर के द्वारों से निकलती है .ये द्वार है-->  दो आँख ,दो कान ,दो नासिका छिद्र ,दो निचे के द्वार ,एक मुंह और दसवा द्वार है सहस्रार चक्र .इसी स्थान पर शिखा होती है . 


जब प्राण इस द्वार से निकले तो मुक्ति निश्चित है . शिखा रखने से इस स्थान से ही प्राण निकलते है .शिखा रखने से मनुष्य सभी योगिक क्रियाओं को ठीक ठीक कर सकता है . इससे उसकी नेत्र ज्योति बढती है और शरीर ठीक ढंग से कार्य करता है .शिखा का आकार गाय के पैर के खुर के बराबर होना चाहिए . यही आकार सहस्रार चक्र का है . इस पर शिखा का हल्का सा दबाव होने से यह जागृत हो जाता है और मस्तिष्क में रक्त प्रवाह ठीक रहता है .इससे शरीर , बुद्धि और मन नियंत्रण में रहता है .

मानव उत्क्रांति का सर्वोच्च पड़ाव आत्म साक्षात्कार है। यह साक्षात्कार सुषुम्ना के माध्यम से होता है। सुषुम्ना नाड़ी अपान मार्ग से होती हुई मस्तक के जरिए ब्रह्मरंध्र में विलीन हो जाती है। ब्रह्मरंध्र ज्ञान, क्रिया और इच्छा इन तीनों शक्तियों की त्रिवेणी है। मस्तक के अन्य भागों की अपेक्षा ब्रह्मंध्र को अधिक ठंडापन स्पर्श करता है। इसलिए उतने भाग में केश होना बहुत आवश्यक है। बाहर ठंडी हवा होने पर भी यही केशराशि ब्रह्मरंध्र में पर्याप्त ऊष्णता बनाए रखती है। 


यजुर्वेद में शिखा को इंद्रयोनि कहा गया है। कर्म, ज्ञान और इच्छा प्रवर्तक ऊर्जा, ब्रह्मरंध्र के माध्यम से इंद्रियों को प्राप्त होती है। दूसरे शब्दों में शिखा मनुष्य का एंटेना है। जिस तरह दूरदर्शन या आकाशवाणी में प्रक्षेपित तरंगों को पकडऩे के लिए एंटेना का उपयोग किया जाता है, उसी प्रकार ब्रह्मांडीय ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए शिखा का प्रयोग करते हैं। 


धार्मिक अनुष्ठान के समय शिखा को गांठ मारनी चाहिए। इसका कारण है कि गांठ मारने से मंत्र स्पंदनों के जरिए उत्पन्न होने वाली ऊर्जा शरीर में एकत्रित होती है। अन्य मर्म स्थानों की अपेक्षा ब्रह्मरंध्र अति महत्वपूर्ण और कोमल है। शिखा ग्रंथि में चामुंडा देवी का अधिष्ठान माना गया है। चामुंडा ध्वनि और प्रदूषण रोकती हैं। अत: 'तिष्ठ देवि शिखा बंधे' प्रार्थना उनके लिए की जाती है।