Thursday, May 1, 2014

अक्षय तृतीया पर 2 मई को 11 साल बाद खरीदी का महासंयोग

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अक्षय तृतीया पर 2 मई को 11 साल बाद खरीदी का महासंयोग बन रहा है। इस दिन अबूझ मुहूर्त में पांच ग्रह उच्च राशि में रहकर खरीदी में वृद्धि करेंगे। यह शुभ संयोग खरीदी के अलावा पूजन-अर्चन व कोई भी शुभ कार्य की शुरुआत को चीर स्थायित्व प्रदान करने वाला रहेगा।


पंचांगकर्ता एवं ज्योतिषाचार्य पं. श्यामनारायण व्यास ने कहा अक्षय तृतीया को सूर्य उच्च राशि मेष, चंद्रमा वृष, शुक्र मीन, शनि और राहू तुला में रहकर इसकी शुभता को कई गुना बढ़ाएंगे। शनि और राहू की युति 186 वर्ष बाद उच्च राशि में एक साथ बनना भी खास माना जा रहा है।
सूर्य-चंद्रमा आभूषण, शुक्र सजावटी सामान और शनि-राहू इलेक्ट्रानिक आइटम की खरीदी के लिए शुभ है। इस तरह का संयोग पूर्व में वर्ष 2003 में बना था जब पांच ग्रह एक साथ उच्च राशि में थे।


खरीदी के शुभ चौघडि़ए

लाभ- सुबह 7.15 से 8.45 तक / अमृत- सुबह 8.45 से 9.15 तक / शुभ- दोपहर 12.15 से 1.45 तक /  चर- शाम 5.15 से 6.51 तक 

राशि वार कौन-क्या खरीदें


राशि खरीदें

मेष - सोना / वृषभ - इलेक्ट्रॉनिक /  मिथुन - व्हीकल / कर्क - स्थायी संपत्ति / सिंह - सजावटी उपकरण /  कन्या - आभूषण / तुला - भवन / वृश्चिक - उच्च धातु / धनु - वाहन / मकर - इलेक्ट्रॉनिक / कुंभ- स्थायी संपत्ति / मीन - वाहन-

नोट- सभी राशि वाले कोई भी सामग्री की खरीद कर सकते हैं, लेकिन राशि अनुसार सामग्री की खरीदी श्रेष्ठ है।


नक्षत्रों के साथ रवियोग खास संयोग



अक्षय तृतीया पर सुबह 11.19 बजे तक रोहिणी नक्षत्र रहेगा। इसके बाद मृगशिरा नक्षत्र लगेगा। चंद्रमा के उच्च राशि में रहने के कारण दोनों नक्षत्र इस दिन की महत्ता को बढ़ाएंगे। तृतीया के दिन सुबह से दोपहर तक राजयोग रहेगा तथा सुबह 11.20 से अगले दिन 3 मई की दोपहर 1.09 बजे तक रवि योग का योग भी बन रहा है। यह सभी संयोग खरीदारी, शुभ कार्य और पूजा में अक्षय फल प्राप्ति करेंगे।


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, उनका अक्षय फल मिलता है।[1] इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है।[2] वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है, किंतु वैशाखमाह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है। भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है, सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है।[3] भगवान विष्णु ने नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था।[4][5] ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था।[2] इस दिन श्री बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन किए जाते हैं। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं। वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं।[5][6] जी.एम. हिंगे के अनुसार तृतीया ४१ घटी २१ पल होती है तथा धर्म सिंधु एवं निर्णय सिंधु ग्रंथ के अनुसार अक्षय तृतीया ६ घटी से अधिक होना चाहिए। पद्म पुराण के अनुसा इस तृतीया को अपराह्न व्यापिनी मानना चाहिए।[1] इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था।[2] ऐसी मान्यता है कि इस दिन से प्रारम्भ किए गए कार्य अथवा इस दिन को किए गए दान का कभी भी क्षय नहीं होता। मदनरत्न के अनुसार:

अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं। तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया॥
उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः। तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव॥

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अक्षय तृतीया पर क्या करें दान...

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पुराणों के अनुसार अक्षय तृतीया पर दान-धर्म करने वाले व्यक्ति को वैकुंठ धाम में जगह मिलती है। इसीलिए इस दिन को दान का महापर्व भी माना जाता है। 


इस दिन नए कार्य शुरू करने के लिए इस तिथि को शुभ माना गया है। भगवान विष्णु को सत्तू का भोग लगाया जाता है और प्रसाद में इसे ही बांटा जाता है।



अक्षय तृतीया के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस दिन स्नान करके जौ का हवन, जौ का दान, सत्तू को खाने से मनुष्य के सब पापों का नाश होता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति पर चंदन या इत्र का लेपन भी किया जाता है। 
अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर समुद्र या गंगा स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की शांत चित्त होकर विधि विधान से पूजा करने से मनोकामना पूर्ण होती है। नैवेद्य में जौ या गेहूं या सत्तू, ककडी और चने की दाल अर्पित की जाती है। तत्पश्चात फल, फूल, बर्तान तथा वस्त्र आदि दान कर दक्षिणा देने की मान्यता है। इस दिन ग्रीष्म का प्रारंभ माना जाता है इसलिए इस दिन जल से भरे घड़े, कुल्हड़, सकोरे, पंखे, खड़ाऊं, छाता, चावल, नमक, घी, खरबूजा, ककडी, चीनी, साग, इमली, सत्तू आदि गर्मी के मौसम में लाभ देने वाली वस्तुओं का दान किया जाता है। इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा सफेद अथवा पीले गुलाब से करना चाहिए।
अक्षय तृतीया के दिन तिल, जौ और चावल का दान का विशेष महत्व है।


* गरीबों को चावल, नमक, घी, फल, वस्त्र, मिष्ठान्न आदि का दान करना चाहिए और व्रत रखना चाहिए। 

* अक्षय तृतीया के दिन गरीब, असहाय लोगों को भोजन अवश्य कराएं।
* अक्षय तृतीया के दिन खरबूजा और मटकी का दान करने का भी महत्व है।


* जप, दान, होम तथा पितरों का श्राद्ध इस दिन करने से अक्षय पुण्य फल प्राप्त होता है।
* मिट्टी या तांबे के दो घड़ों को जल से भरकर एक घड़े में अक्षत तथा दूसरे में तिल्ली डालकर इन घड़ों को ब्रह्मा, विष्णु, शिवस्वरूप में ही पूजा करके ब्राह्मणों को दान किया जाना चाहिए। 


ऐसा करने से हमारे पूर्वज तथा पितृ तृप्त होकर हमारी सारी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

* बद्रीनाथ को अक्षय चावल चढ़ाने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

अक्षय तृतीया का दिन भारत भर में बेहद खास माना गया है। आपकी पत्रिका के अनुसार नवग्रहों की दशा के चलते अगर किसी व्यक्ति के विवाह का दिन नहीं निकल रहा हो तो इस दिन बिना मुहूर्त के उसका विवाह किया जा सकता है।