Sunday, October 6, 2013

स्वस्थ तथा अस्वस्थ हाथ

मानसश्री गोपाल राजू (वैज्ञानिक)
थोड़े से अभ्यास के बाद आप एक स्वस्थ तथा अस्वस्थ हाथ में स्वयं ही अंतर स्पष्ट करने लगेंगे। मात्र 20-30 हाथों का धैर्य से अध्ययन करने के बाद आप इस वक्तव्य को स्वीकार कर लेंगे। आवश्यकता केवल इतनी है कि आप अपने में संयम तथा लगन पैदा करके हस्त रेखा विषय के प्रति गंभीर बन जाएं। अध्ययन करें और विषय का खूब मनन-गुनन करके उसको विभिन्न हाथों के ऊपर व्यवहार में लाएं। आप देखेंगे कि रेखाएं आप से स्वयं ही बोलने लगेंगी और आप उन रेखाओं की भाषा को समझकर सटीक फलादेश करने लगेंगे।
     सामान्यतः एक स्वस्थ हाथ वो है जो पूर्णतया सुदृढ़ हो तथा उसका कोई भी भाग कहीं से भी असामान्य रुप से विकसित न हो। हाथ लचीलापन लिए हो तथा स्पष्ट रेखाओं वाला हो। नमी की अपेक्षा उसमें शुष्कता हो।

     समस्त हथेली का रंग समता लिए हुए होना चाहिए। हथेली में अवांछित रेखाओं का जाल, अधिक उथली अथवा कटी-फटी तथा देाष चिन्हों से युक्त रेखाएं अस्वस्थता का लक्षण हैं। हथेली अथवा रेखाओं पर दुर्भाग्यपूर्ण चिन्ह जैसे क्रास, जाली, द्वीप, काले तिल आदि विभिन्न रोगों के द्योतक हैं। हथेली की त्वचा का असमान्य रंग, उस पर लाल, नीले अथवा सफेदी लिए हुए धब्बे भी अस्वस्थता के प्रतीक हैं। हथेली को छूकर उसका तापमान अनुभव किया जा सकता है। हथेली न तो अधिक गर्म होना अच्छी है और न ही अधिक ठंडी। जिसकी हथेली पसीजी सी लगती है, उस पर नसों का नीला अथवा लाल उभार स्पष्ट दिखाई देता है। वह व्यक्ति निःसंदेह अस्वस्थ होता है। रेखाओं का एक सीमा तक गहरापन शक्ति दर्शाता है, परंतु रेखाएं इतनी अधिक गहरी भी न हो जाएं कि गाढ़े रंग की दिखाई देने लगें। इसका अर्थ होता है कि उस रेखा विशेष पर अत्यधिक तनाव पड़ रहा है। धूमिल अथवा क्षीण पड़ गयी रेखा अस्वस्थता दर्शाती हैं। सीढ़ीदार अथवा छोटे-छोटे टुकड़ों से बनी जीवन रेखा जीवन में निरंतर कोई न कोई रोग देती हैं। जीवन रेखा का दोषपूर्ण तरीके से अंत वृद्धावस्था में शारीरिक कष्ट देता है। टेड़ी-मेड़ी रेखाएं तथा अप्राकृतिक रुप से विकसित बेडौल हथेली अथवा उंगलियां किसी न किसी बीमारी का प्रतीक हैं। अत्यधिक मांसल हथेली तथा बहुत नरम अथवा नमीं लिए हुए हाथ की त्वचा बीमारी दर्शाती है।
दोनों हाथ की उंगलियां सुडौल तथा नाखून चमकीले, गुलाबी अथवा ताम्र रंग के होने चाहिए। वह नाखून जो प्राकृतिक चमक खोकर कठोर अथवा भंगुर हो गए हों, बीमारी के प्रतीक हैं। नाखून पर सफेद, नीले, पीले आदि रंग के धब्बे भी बीमारी के लक्षण हैं। नाखून में खुरदरापन, भंगुरता तथा मटमैले पन का दोष नहीं होना चाहिए। नाखून की जड़ में सुन्दरता से विकसित अर्धचंद्र स्वस्थ शरीर का प्रतीक है। इसके विपरीत उनकी अनुपस्थिति विभिन्न बीमारियों का संकेत है। सूखी सी, टेड़ी-मेड़ी, मोटी तथा मिलाने पर बीच में छिद्र बनाती उंगलियॉ बीमारियां देती हैं। उंगलियों के पर्व कोमल तथा मांस रहित होना ही स्वस्थ शरीर का लक्षण हैं। चिकनी, सीधी तथा आपस में मिली हुई उंगलियां निरोगी काया देती हैं। हाथ का वाह्य आकार अस्वस्थता काल में प्रायः अनियमित हो जाता है।
हस्तरेखा से बीमारियों का अध्ययन करने में पर्वतों का मुख्य स्थान होता है। इनके स्वभाव, गुण, स्थिति आदि के ज्ञान के बिना हस्तरेखा का ज्ञान अधूरा है। विभिन्न उंगलियों के मूल में स्थित पर्वत सामान्यतः उन्हीं सूर्य, चंद्रादि ग्रहों के अनुरुप बीमारियों को जन्म देते हैं जिनके कि वह पर्वत कारक हैं। हथेली पर स्थित विभिन्न पर्वतों का सामान्य होना भी स्वस्थ शरीर के लिए आवश्यक है। स्वस्थ शरीर के लिए शनि पर्वत का दोषरहित होना परमावश्यक है।
मुख्य रेखाओं के साथ-साथ हाथ में निम्न रेखाएं बीमारी सम्बंधी गणनाओं में विशेष भूमिका निभाती हैं। पहला है शुक्र वलय जो धनुषाकार रुप में पहली और दूसरी उंगली के मध्य से प्रारंभ हो कर तीसरी अथवा चौथी उंगली के मध्य समाप्त होता है। शुक्र वलय वाले लोग स्नायविक दुर्बलता तथा विक्षिप्तता आदि रोगों से पीड़ित होते हैं। शुक्र वलय जिस रेखा को बढ़कर काट देता है उस रेखा संबंधी रोग से व्यक्ति को हानि पहुंचाता है। शुक्र वलय वाले व्यक्ति मानसिक रति में सुखद आनंद अनुभव करते हैं।
     दूसरे स्थान पर आती हैं प्रभावक रेखाएं। यह रेखाएं हथेली में विभिन्न स्थानों से प्रारंभ हो कर सूर्य शुक्र आदि पर्वतों को प्रभावित करती हैं। जो रेखाएं पर्वतों तक पूर्णतया पहुंचती हैं, बलवान कहलाती हैं और परंतु जो रेखा बीच में ही समाप्त हो जाती हैं, कटी-फटी अथवा किसी रेखा द्वारा अकस्मात् रुक जाती हैं, ऐसी प्रभावक रेखाएं अशुभ रेखाओं की श्रेणी में आती हैं।
तीसरे स्थान पर हाथ तथा कलाई के जोड़ पर स्थित एक-दूसरे के लगभग समानान्तर मणिबंध रेखाएं स्वास्थ्य में वृद्धि करती हैं। स्पष्ट रुप से बनी रेखा स्वास्थ्य तथा दीर्घ आयुष्य का प्रतीक है। जितनी संख्या में तथा जितनी स्पष्टता से मणिबंध रेखाएं कलाई में स्थित होती हैं उन्हीं के अनुरुप रोग रहित लंबे जीवन को इंगित करती हैं।
मृत्यु से कुछ दिन पूर्व व्यक्ति की उंगलियों में विशेष रुप से मध्यमा के नाखून में पड़ी धारियां स्पष्ट रुप से दृष्टिगोचर होने लगती हैं तथा उनका रंग भी धूमिल पड़ने लगता है। अंगूठा शक्तिहीन होकर हथेली की तरफ गिरता सा दिखाई देने लगता है।
लेख की प्रस्तुति का उददेश्य मात्र रेखाओं से रोग परीक्षण का परिचय मात्र देना है। यदि इससे जिज्ञासु पाठकों के मन में थोड़ी सी भी जिज्ञासा तथा लगन उत्पन्न होती है तो रोग विषयक सामग्री के लिए हस्त रेखाओं से संबंधित अन्य पुस्तकें देख सकते हैं। लेखक की विषय पर पुस्तक, ‘हस्त रेखओं से रोग परीक्षण’ भी प्रबुद्ध पाठकों के लिए अत्यंत उपयोगी तथा ज्ञानवर्धक सिद्ध हो सकती हैं।
मानसश्री गोपाल राजू (वैज्ञानिक)
(राजपत्रित अधिकारी) अ.प्रा.