Tuesday, February 22, 2011

Mahashivratri Vishesh - 3



महादेव शिव शंकर से सम्बंधित अद्भुत शास्त्रोक्त तथ्य


आलेख - आशुतोष जोशी



१. भगवान शंकर को उनके विचित्र स्वभाव व विचित्र अवतरण के कारण त्रिलोचन, महेश्वर, शत्रुहंता, महाकाल, वृषभध्वज, नक्षत्रसाधक, त्रिकालधृष, जटाधर, गंगाधर, नीलकंठ, त्र्यंबकं आदि अनेक नामों से जाना जाता है। 
२. शास्त्रों के अनुसार ज्योतिष शास्त्र व वास्तु शास्त्र की उत्पत्ति महादेव के द्वारा ही की गई है।
३. श्री शिव शंकर का निवास स्थान उत्तर में हिमालय पर्वत पर स्थित होने की वजह से उत्तर दिशा को पूर्व दिशा की तरह ही उत्तम माना गया है। उत्तर दिशा को कुबेर की दिशा भी कहा जाता है।
४. शास्त्रों के अनुसार मंत्रो में प्रमुख महामत्युंजय मंत्र, जो भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए है, को अनिष्ट ग्रहों के दुष्प्रभाव को समाप्त करने तथा मृत्यु को टालने के लिए अचूक माना जाता हैं। यह महामंत्र विधि - विधान से यथा शक्ति जपने से साधक अपने जीवन में निरोगी रहकर लंबी आयु की भावना को प्रबल बना सकता है।
५. पौराणिक कथाओं में जिस प्रकार भगवान विष्णु के दस अवतारों की कथा आती हैं, उसी प्रकार भगवान शिव भी समय - समय पर अवतार लीलाऐं करते आए हैं जिनमें प्रमुख है :- नंदिश्वर अवतार, हनुमान अवतार, यक्षावतार, कालभैरव अवतार, दुर्वासा अवतार, तथा पिप्पलाद अवतार। इसके अलावा ऐसी मान्यता हैं कि बाबा बालकनाथ, शिर्डी के सांई बाबा तथा शंकराचार्य भी शिवजी के ही अवतार थे।
६. यहां यह स्पष्ट कर देना लाभदायक होगा कि भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए ग्रहों के अनुसार उपयुक्त नवरत्नों से बने शिवलिंगो की पूजा अर्चना करने से उस संबंधित ग्रह की अनुकूलता बढ जाती है। उदाहरण के लिए यदि बुध ग्रह पत्रिका में कमजोर है, तो पन्ना रत्न से बने शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। यदि रत्नों से निर्मित शिवलिंग उपलब्ध न हो, तो सात या ग्यारह कैरेट के रत्न की शिवपूजा भी लाभदायक रहती है।
७. इसके अलावा दीर्घायु के लिए चंदन से बने शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए तथा रोगनिवारण के लिए मिश्री से बने शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। गुड या किसी भी अन्न से बनाये शिवलिंग की पूजा करने से सुख - समृद्धि व कृषि वृद्धि में लाभ होता है। 
८. सोने, चांदी, पारे आदि से बने शिवलिंग की पूजा का भी सुख - समृद्धि व शांति प्राप्ति हेतु विशेष महत्व है।
. शास्त्रों के अनुसार मोक्ष पाने के लिए आँवलें से बने शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए।
१०. महादेव शिव को पंचमुखी तथा दशभुजाओं से युक्त माना जाता है अर्थात्‌ पंचतत्वों के रुप में पांचों मुखों की अवधारणा मानी गयी हैं। इन्ही पंचतत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) के द्वारा संपूर्ण चराचर संसार का प्रादुर्भाव हुआ माना गया हैं।

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Mahashivratri Vishesh - 2



प्राणियों के प्राणदाता - भोले शंकर 


आलेख - आशुतोष जोशी

गिरीशम गणेशम गले नीलवर्णम्‌
गजेंद्राधिरुढं गणातीत रुपम।

भवं भास्करं भस्मनां भूषितांगम्‌
भवानी कलत्रं भजे पंचवक्त्रम्‌।

अर्थात्‌ जो कैलाशनाथ है, गणनाथ है, नीलकंठ है, वृषभ पर बैठे हैं, अगणित रुप वाले हैं, संसार के आदिकारण हैं, प्रकाश स्वरुप है, शरीर में भस्म लगाए हुए और मां शक्ति जगद्‌जननी जिनकी अर्द्धांगिनी है, उन पंचमुखी महादेव विश्वनाथ का मैं स्मरण करता हूँ। 

देवों के देव महादेव ही ऐसे अद्‌भूत तथा विलक्षण देव हैं, जो ब्रह्माण्ड में निहित उर्जा का स्त्रोंत हैं तथा अन्य देवताओं के संकट के क्षणों में महादेव ही रुद्र रुप धरकर संकट निवारण करते आये हैं। भोले शंकर महादेव का एक और अद्‌भूत स्वभाव हैं, कि वे अपने भक्तों के प्रति अपार प्रेम रखते हुये तुलनात्मक रुप से जल्दी संतुष्ट व प्रसन्न हो जाते है। इसलिये महादेव का दूसरा नाम आशुतोष हैं। 

शास्त्रों के अनुसार हर प्रकार की दुविधा या संकट के समय भगवान भोलेनाथ की पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास के साथ पूजा अर्चना करने से वे प्रसन्न होते हैं तथा अपने भक्तों की सहायता करते हैं। महादेव का स्वभाव बहुत सरल व कृपालु हैं इसलिये विधि - विधान से पूजा करने वाले भक्तों के अलावा मस्तमौला औघड बाबा जो कई दिनों तक स्नान तक नहीं करते तथा मांस मदिरा, जिनका भोजन होता हैं, वे भी भगवान शिव के द्वारा लाभ प्राप्त करते हैं। 

यदि भगवान शिव के विभिन्न स्वरुपों की भावार्थ के साथ व्याखया करें तो हम देखते हैं कि मस्तक पर विराजमान चन्द्रमा और गंगाजल की धारा शीतलता का प्रतीक मानी जाती है। भगवान शिव के नीलकंठ में विराजमान नाग, भयमुक्त वातावरण का प्रतीक है। समुद्र मंथन के द्वारा प्राप्त विषपान करने का अर्थ हैं, कि हमें संसार में निहित सभी दुर्गुणों रुपी विष को पचाकर पूरे विश्व में अमृत रुपी सद्‌गुणों का प्रचार करना चाहिए।

शिवजी के परिवार में सभी जीव - जंतु (शेर, चीता, भालू, बैल, मोर, चूहा आदि) एक साथ रहकर सद्‌भाव का परिचय देते हैं। भगवान शिव जहां एक ओर उत्तर में हिमालय पर्वत पर विराजमान हैं वहीं उनका एक स्वरुप शमशान में भी निहित हैं अर्थात्‌ कोई भी कार्य अच्छा या बुरा नहीं होता और मंदिर हो या शमशान आपकी पवित्र भावना तथा श्रद्धा आपको जीवन में सफल बनाती है।

महादेव को भोलेशंकर या भोलेनाथ इसलिये कहा हैं क्योंकि वे आकार एवं निराकार स्वरुप में सर्वोच्च पद पर आसीन सर्वशक्तिमान होते हुये भी अहंकार से दूर अपने सच्चे भक्तों को प्रेम व शरण देते है। इसी वजह से भूतप्रेत, राक्षस, पशु - पक्षी, देवता, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, मनुष्य आदि सभी प्राणियों के लिए भोलेनाथ एक समान है।

महादेव के मस्तक स्थित तीसरा नेत्र एक अद्‌भूत शक्ति का प्रतीक है। जिसका प्रयोग केवल घोर संकट में किया जाता है। अर्थात्‌ हर प्राणी में एक अद्‌भूत शक्ति होती है, जिसको महसूस करके या जाग्रत करके संकट के समय उपयोग की जा सकती है। 


आदिगुरु शंकराचार्य जी ने भगवान भोले शंकर की स्तुति करते हुये मानव समाज को यह संदेश दिया हैं कि हर मनुष्य को अपनी पशुता को नष्ट करके मानवता का सद्‌व्यवहार करते हुये अपना अमूल्य जीवन बिताना चाहिए।

शंभो महेश करुणामय शूलपाणे,
गौरीपते पशुपते पशुपाशनासिन्‌।


Mahashivratri (02.03.2011) - Warship of God Shiv - Shankar for health & Wealth


शिवमहिमा का महत्व 
(२ मार्च, महाशिवरात्रि पर विशेष)

आलेख - आशुतोष जोशी


इस वर्ष महाशिवरात्रि का पर्व २ मार्च को आ रहा हैं, यह वह पर्व हैं जब हम सब देवों के देव महादेव याने भोले शंकर भगवान की पूजा अर्चना करके अपने जीवन को सुख - समृद्ध बनाने की प्रार्थना करते है। शास्त्रों में निहित पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ही ऐसे देव हैं जो अन्य देवताओं के संकटों को भी हर लेते है। अतः उन्हें महादेव कहा जाता हैं। महादेव शिव सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के सृष्टिकर्ता हैं। आज इस पावन पर्व पर भगवान भोलेनाथ के संबंध में मुखय बातें नीचे दी जा रही है। जिसके द्वारा भगवान शंकर के भक्तजन विशेष पर्व पर विशेष लाभ ले सकें।


इस वर्ष २ मार्च को प्रातः काल स्नान आदि के बाद शिवलिंग पूजा व उपवास का सर्वकार्य सिद्धि हेतु विशेष महत्व है। बेल पत्र, दूध मिश्रित जल, धतूरे का फल, सफेद पुष्प, सफेद मिठाई या मिश्रि, रुद्राक्ष, सफेद चंदन, भांग, गाय का घी आदि शिवलिंग पूजा में विशेष महत्व रखते है क्योंकि यह सब महादेव को अत्यंत प्रिय हैं।

महाशिवरात्रि के दिन गाय के कंडे को प्रज्जवलित करके घी व मिश्री के द्वारा पंचाक्षर मंत्र से हवन करके हवन की धुनी को संपूर्ण घर में घुमाने से सुख - समृद्धि शांति व सद्‌भावना में वृद्धि होती है।

यदि कन्या के विवाह में अनावश्यक विलंब हो रहा हो तो कन्या के माता - पिता मंदिर में जाकर १०८ बेल पत्रों से शिवलिंग की पूजा करें तथा उसके बाद ४० दिन तक घर में शिव आराधना करें, तो कन्या का विवाह जल्दी व अच्छे परिवार में होना  निश्चित है।

शास्त्रों के अनुसार काल - सर्प दोष निवारण हेतु महाशिवरात्रि के दिन प्रातः चांदी या तांबे से बने नाग व नागिन के जोडे को शिवलिंग पर अर्पित कर दें।

महाशिवरात्रि क्रे दिन प्रातः पीपल के पेड की सरसों के तेल द्वारा प्रज्जवलित दिये से पूजा अर्चना करने से शनि दोष दूर होता है।

महाशिवरात्रि के दिन उपवास रखकर चारों पहर पंचाक्षर मंत्र की एक रुद्राक्ष माला का जाप करने से दरिद्रता मिट जाती हैं। (अष्टदरिद्र विनाशितलिंगम्‌ तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्‌। )

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