Sunday, April 24, 2016

राहु के शुभ और अशुभ प्रभाव


राहु के शुभ और अशुभ प्रभाव




राहु सामान्यतः कुंडली के 3/6/9/10/11 भावों में ही शुभ फल दे पाता है यदि इन भावों में राहु मित्र राशि में हो और शुभ ग्रहों की दृष्टि भी हो. राहु और शनि दोनों ही विछेदक ग्रह है और इनके स्वभाव में अलगाव की प्रवृति होती है. सामान्यतः अशुभ स्थिति में भी यदि शुभ ग्रह की युति या दृष्टि राहु के साथ हो तो अशुभता कम हो जाती है.

शास्त्रों के अनुसार राहु अपनी महादशा / अंतेर्दशा में विदेश-यात्राये करवाता है, परिवार से दूर् कर सकता है, और वाहन आदि से दुर्घटना का योग भी संभव है.  

कुंडली के 1/4/7/8/12 भावों में राहु अशुभ होता है, किन्तु यदि शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो अशुभता कम हो जाती है. 

(1) -प्रथम भाव याने लग्न में राहु  पुरुष याने विषम राशियों में दो विवाह का योग बनाता है. साथ ही जातक कुसंगति में पड़कर जीवन में धन और सम्मान खोने लगता है.

(2)- कुंडली के दुसरे स्थान पर राहु हो तो भी धन प्रवाह को रोकता है किन्तु विदेश जाने के योग हो सकते है.

(3)- कुंडली के तीसरे भाव में राहु, छोटे भाई-बहनों से लड़ाई करवा देता है, किन्तु जातक को विद्वान और व्यापार में उन्नति देता है

(4)- चौथे भाव में राहु हो तो जातक, कपटी और माता के लिए चिन्ता का कारण होता है. भूमि, वाहन और मकान के लाभ को कम कर सकता है. यहा राहु दशम स्थान को भी सीधी दृष्टि से देखता है अतः व्यापार में लाभ भी दे सकता है.

(5)- कुंडली के पंचम स्थान पर राहु हो तो भी सट्टे / लाटरी / शेयर्स आदी से अल्प लाभ दे सकता है. यदि बलवान बुध से सम्बन्ध हो ( युति या दृष्टि) तो लाभ ज्यादा हो किन्तु कमजोर बुध से सम्बन्ध हो तो कमाया पैसे जातक अचानक खो भी देता है. जातक उदर रोगी भी हो सकता है.
वृहत-पाराशर में पंचम स्थान पर राहु संतान बाधा की ओर भी सम्भाव्नाये दर्शाता है. यहा यदि केन्द्र ( भाव- 1/4/7/10) या त्रिकोण ( भाव-5/9)के स्वामी ग्रहों के साथ हो तो अशुभ्ता में कुछ कमी आ सक्ती है. ( संतान बाधा हो तो शास्त्रों में सर्प-पूजा का उपाय बताया गया है)
(6) कुंडली के षष्ट याने 6 वे भाव में राहु हो तो जातक, निरोगी, शत्रुओं पर जीतने वाला, शास्त्र में रूचि रखने वाला तथा पराक्रमी हो सकता है. इस भाव में राहु होने से केतु द्वादश याने 12 वे भाव में होगा जो शुभ होता है और जातक को धार्मिक बनाता है.  राहु की 12 वे भाव पर दृष्टि होने के कारण जातक विदेश यात्राये भी करता है .

(7)-कुंडली के सातवें भाव में राहु अशुभ होता है . यह भाव विवाह का और पत्नी का ( या पति का ) भाव है अतः राहु, पत्नी से कष्ट , विच्छेद या तलाक करवा सकता है. शास्त्रों के अनुसार इस भाव में राहु होने पर जातक को विवाह के पहले भेली-विवाह ( कन्या हो तो कुंभ-विवाह) जरूर करवा लेना चाहिये. ( राहु की ये स्थिति यदि लग्न में ना होकर नवाश में हो तो भी ) 
पाराशर और जेमिनी दोनों ही ज्योतिष पद्धति में सप्तम भाव में होने पर महादशा / अंतेर्दशा  में राहु परेशान कर सकता है. राहु जातक को अवैध-व्यापार या अवैध-संबंधों के जाल में फँसा देता है, और फिर अपमान करवा सकता है. 

(8)- अष्टम भाव में राहु हो तो जातक मोटा हो सकता है, पेट के रोग हो सकते है, मिथ्या-भाषी, अधिक बोलने वाला, कामुक और क्रोधी हो सकता है. 

(9)- नवम् भाव में राहु हो तो जातक, प्रवासी, भाग्य-हीन, धार्मिक यात्राओं में रूचि रखने वाला, कपटी, हो सकता है.

(10) दशम भाव में राहु हो तो, जातक को व्यवसाय या धन कमाने में बाधा देता है. किन्तु यदि चन्द्र का पराभव हो तो यह राहु शुभ भी होता है. नवम् और दशम दोनों स्थानों पर राहु, पिता से दूर् करता है और पिता से अनबन भी कर देता है. जातक आलसी हो जाता है और व्यय अधिक होने लगता है. शत्रो के अनुसार शुभ ग्रहों की दृष्टि होने पर और मित्र राही या कन्या / मिथुन राशि मेंहोने पर यह राहु शुभ पराभव देता है, विशेष कर शुभ-गौचर में और दशा/अंतेर्दशा में.  

(11). ग्यारहवें भाव में राहु हो तो जातक को मंद मति बना देता है, तथा लाभ कं कर देता है. जातक परिश्रमी, अल्प संततियुक्त, किन्तु यह राहु अरिष्ट नाशक एवं सफल कार्य करने वाला भी होता है। राहु की पंचम भाव पर कुदृष्टि, संतान को हानि  पँहुचा सक्ती है.

(12). बारहवें भाव में राहु हो तो जातक विदेश यात्राये करता है, किन्तु अस्पताल और जेल से संबंधित परेशानी भी देता है. शास्त्रों के अनुसार लगान, या नवांश कुंडली में या फिर गौचर में यदि राहु जातक के 12 वे स्थान पर हो तो जातक को रोग से और ग़लत कामों से, दुर्घटना आदि से सावधान रहना ही चाहिये. यहा राहु जातक को विवेकहीन, मतिमंद, मूर्ख, परिश्रमी, सेवक, व्ययी, चिंतनशील एवं कामी बनाता है.


राहु का दिन- बुधवार और शनिवार 
राहु की धातु- अभ्रक 
राहु का रत्न- गोमेद 
अशुभ राहु से होने वाले रोग और  - दाँतों के रोग, उदर के रोग, अनिद्रा-रोग, मानसिक तनाव, 
अशुभ राहु की पहचान- विपरीत लिंग वाले लोगो से अनबन, परिवार से अलगाव, और जातक का बार बार यूरिन वाली जगह पर यदि हाथ जाता है तो राहु अशुभ है,
 
(उपाय- हठ में चांदी का कडा या चांदी के गले में माला पहने. गोमेद / काले वस्त्र / या काली वस्तु का 7 शनिवार तक दान करे. सफेद चंदन का टीका लगाए, राहु गायताड़ी मंत्र का रोज़ 11 बार जाप करे, दुर्गा पूजा से रहु नियंत्रित होता है क्योकि राहु की देवि दुर्गा देवि है. )