Monday, October 8, 2012

शाबर मन्त्र साधना” के तथ्य


BY ASTROLOGER SHREE ASHU BAHUGUNA ON FACE BOOK 

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शाबर मन्त्र साधना” के तथ्य

१॰ इस साधना को किसी भी जाति, वर्ण, आयु का पुरुष या स्त्री कर सकती है।

२॰ इन मन्त्रों की साधना में गुरु की इतनी आवश्यकता नहीं रहती, क्योंकि इनके प्रवर्तक स्वयं सिद्ध साधक रहे हैं। इतने पर भी कोई निष्ठावान् साधक गुरु बन जाए, तो कोई आपत्ति नहीं क्योंकि किसी होनेवाले विक्षेप से वह बचा सकता है।

३॰ साधना करते समय किसी भी रंग की धुली हुई धोती पहनी जा सकती है तथा किसी भी रंग का आसन उपयोग में लिया जा सकता है।

४॰ साधना में जब तक मन्त्र-जप चले घी या मीठे तेल का दीपक प्रज्वलित रखना चाहिए। एक ही दीपक के सामने कई मन्त्रों की साधना की जा सकती है।

५॰ अगरबत्ती या धूप किसी भी प्रकार की प्रयुक्त हो सकती है, किन्तु शाबर-मन्त्र-साधना में गूगल तथा लोबान की अगरबत्ती या धूप की विशेष महत्ता मानी गई है।

६॰ जहाँ ‘दिशा’ का निर्देश न हो, वहाँ पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके साधना करनी चाहिए। मारण, उच्चाटन आदि दक्षिणाभिमुख होकर करें। मुसलमानी मन्त्रों की साधना पश्चिमाभिमुख होकर करें।

७॰ जहाँ ‘माला’ का निर्देश न हो, वहाँ कोई भी ‘माला’ प्रयोग में ला सकते हैं। ‘रुद्राक्ष की माला सर्वोत्तम होती है। वैष्णव देवताओं के विषय में ‘तुलसी’ की माला तथा मुसलमानी मन्त्रों में ‘हकीक’ की माला प्रयोग करें। माला संस्कार आवश्यक नहीं है। एक ही माला पर कई मन्त्रों का जप किया जा सकता है।

८॰ शाबर मन्त्रों की साधना में ग्रहण काल का अत्यधिक महत्त्व है। अपने सभी मन्त्रों से ग्रहण काल में कम से कम एक बार हवन अवश्य करना चाहिए। इससे वे जाग्रत रहते हैं।

९॰ हवन के लिये मन्त्र के अन्त में ‘स्वाहा’ लगाने की आवश्यकता नहीं होती। जैसा भी मन्त्र हो, पढ़कर अन्त में आहुति दें।

१०॰ ‘शाबर’ मन्त्रों पर पूर्ण श्रद्धा होनी आवश्यक है। अधूरा विश्वास या मन्त्रों पर अश्रद्धा होने पर फल नहीं मिलता।

११॰ साधना काल में एक समय भोजन करें और ब्रह्मचर्य-पालन करें। मन्त्र-जप करते समय स्वच्छता का ध्यान रखें।

१२॰ साधना दिन या रात्रि किसी भी समय कर सकते हैं।

१३॰ ‘मन्त्र’ का जप जैसा-का-तैसा करं। उच्चारण शुद्ध रुप से होना चाहिए।

१४॰ साधना-काल में हजामत बनवा सकते हैं। अपने सभी कार्य-व्यापार या नौकरी आदि सम्पन्न कर सकते हैं।

१५॰ मन्त्र-जप घर में एकान्त कमरे में या मन्दिर में या नदी के तट- कहीं भी किया जा सकता है।

१६॰ ‘शाबर-मन्त्र’ की साधना यदि अधूरी छूट जाए या साधना में कोई कमी रह जाए, तो किसी प्रकार की हानि नहीं होती।

१७॰ शाबर मन्त्र के छः प्रकार बतलाये गये हैं- (क) सवैया, (ख) अढ़ैया, (ग) झुमरी, (घ) यमराज, (ड़) गरुड़ा, तथा (च) गोपाल शाबर।.................................

शाबर मन्त्रों का आशयः-
स्व॰ वामन शिवराम आप्टे ने सन् १९४२ ई॰ में अपने ‘संस्कृत-कोष’ में ‘शाबर’ शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार दी है;‘शब (व)-र-अण्-शाबरः, शावरः, शाबरी।’

अर्थ में ‘जंगली जाति’ या ‘पर्वतीय’ लोगों द्वारा बोली जानीवाली ‘भाषा’ बताया गया है। वह एक प्रकार का मन्त्र भी है, इसका वहँ कोई उल्लेख नहीं है।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने ‘श्रीरानचरितमानस’ (संवत् १६३१) में शाबर मन्त्रों का महत्त्व स्वीकार किया है, यह भी रहस्योद्घाटन भी किया है कि इस ‘साबर-मन्त्र-जाल’ के स्रष्टा भी शिव-पार्वती ही हैं।

कलि बिलोकि जग-हित हर गिरिजा, ‘साबर-मन्त्र-जाल’ जिन्ह सिरिजा।
अनमिल आखर अरथ न जापू, प्रगट प्रभाव महेश प्रतापू।।

आधुनिक काल में महा-महोपाध्याय स्व॰ पण्डित गोपीनाथ कविराज जी ने अपने प्रसिद्ध ‘तान्त्रिक-साहित्य’ ग्रन्थ के पृष्ठ ६२३-२४ में ‘शाबर’- सम्बन्धी पाँच पाण्डुलिपियों का उल्लेख किया हैः

१॰ शाबर-चिन्तामणि पार्वती-पुत्र आदिनाथ विरचित, २॰ शाबर तन्त्र गोरखनाथ विरचित, ३॰ शाबर तन्त्र सर्वस्व, शाबर मन्त्र, तथा ५॰ शाबर मन्त्र चिन्तामणि।

उक्त पाँच पाण्डुलिपियों में सा प्रथम पाण्डुलिपि एशियाटिक सोसाइटी बंगाल के सूचीपत्र में संख्या ६१०० से सम्बन्धित है। द्वितीय पाण्डुलिपि की चार प्रतियों का उल्लेख कविराज जी ने किया है। पहली उक्त सोसाइटी की सूची-पत्र ६०९९ से सम्बन्धित है, दूसरी म॰म॰ हरप्रसाद शास्त्री के विवरण की सं॰ १।३५९ है। तीसरी प्रति डेकन कालेज, पूना सूचीपत्र ५८० है। चौथी प्रति की तीन पाण्डुलिपियों का उल्लेख है, जो संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के सूचीपत्र की संख्या २३८६७, २४८१५ और २४५७९ पर वर्णित है। ये तीनों अपूर्ण है। तृतीय पाण्डुलिपि ‘शाबर-तन्त्र-सर्वस्व’ के सम्बन्ध में अपुष्ट कथन लिखा है।

चतुर्थ पाण्डुलिपि की तीन प्रतियों का उल्लेख हुआ है। पहली प्रति एशियाटिक सोसाइटी के सूचीपत्र की संख्या ६५५८ है। दूसरी प्रति बड़ौदा पुस्तकालय के अकारादि सूचीपत्र की संख्या ५६१४ पर है। तीसरी प्रति की दो पाण्डुलिपियां संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के सूचीपत्र की संख्या २३८५६ और २६२३२ से सम्बद्ध है। पञ्चम पाण्डुलिपि एशियाटिक सोसाइटी के सूचीपत्र की संख्या ६१०० पर उल्लिखित है।

‘उ॰प्र॰ हिन्दी संस्थान’ द्वारा प्रकाशित ‘हिन्दू धर्म कोश’ में सम्पादक डा‌॰ चन्द्रबली पाण्डेय ने ‘शाबर’ शब्द को अपने ‘कोश’ में स्थान तक नहीं दिया है-जबकि ‘शबर-शंकर-विलास’, ‘शबर-स्वामी’, ‘शाबर-भाष्य’ जैसे शब्दों को उन्होनें सम्मिलित किया है।

श्रीतारानाथ तर्क-वाचस्पति भट्टाचार्य द्वारा संकलित एवं चौखम्भा संस्कृत सीरीज आफिस, वाराणसी द्वारा प्रकाशित प्रख्यात ‘वृहत् संस्कृताभिधानम्’ (कोश) में भी ‘शबर’ या ‘शाबर’ शब्द का उल्लेख नहीं है।

उक्त विश्लेषण के पश्चात भी शाबर विद्या सर्वत्र भारत में अपना एक विशिष्ट अस्तित्व तथा प्रभाव रखती है। वस्तुतः देखा जाये तो समस्त विश्व में शाबर विद्या या समानार्थी विद्या प्रचलन में है। ज्ञान की संज्ञा भले ही बदल जाये मूल भावना तथा क्रिया वही रहती है।......................................

सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र-

ॐ गं गणपतये नमः। सर्व-विघ्न-विनाशनाय, सर्वारिष्ट निवारणाय, सर्व-सौख्य-प्रदाय, बालानां बुद्धि-प्रदाय, नाना-प्रकार-धन-वाहन-भूमि-प्रदाय, मनोवांछित-फल-प्रदाय रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।

ॐ गुरवे नमः, ॐ श्रीकृष्णाय नमः, ॐ बलभद्राय नमः, ॐ श्रीरामाय नमः, ॐ हनुमते नमः, ॐ शिवाय नमः, ॐ जगन्नाथाय नमः, ॐ बदरीनारायणाय नमः, ॐ श्री दुर्गा-देव्यै नमः।।
ॐ सूर्याय नमः, ॐ चन्द्राय नमः, ॐ भौमाय नमः, ॐ बुधाय नमः, ॐ गुरवे नमः, ॐ भृगवे नमः, ॐ शनिश्चराय नमः, ॐ राहवे नमः, ॐ पुच्छानयकाय नमः, ॐ नव-ग्रह रक्षा कुरू कुरू नमः।।

ॐ मन्येवरं हरिहरादय एव दृष्ट्वा द्रष्टेषु येषु हृदयस्थं त्वयं तोषमेति विविक्षते न भवता भुवि येन नान्य कश्विन्मनो हरति नाथ भवान्तरेऽपि। ॐ नमो मणिभद्रे। जय-विजय-पराजिते ! भद्रे ! लभ्यं कुरू कुरू स्वाहा।।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्-सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।। सर्व विघ्नं शांन्तं कुरू कुरू स्वाहा।।

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक-भैरवाय आपदुद्धारणाय महान्-श्याम-स्वरूपाय दिर्घारिष्ट-विनाशाय नाना प्रकार भोग प्रदाय मम (यजमानस्य वा) सर्वरिष्टं हन हन, पच पच, हर हर, कच कच, राज-द्वारे जयं कुरू कुरू, व्यवहारे लाभं वृद्धिं वृद्धिं, रणे शत्रुन् विनाशय विनाशय, पूर्णा आयुः कुरू कुरू, स्त्री-प्राप्तिं कुरू कुरू, हुम् फट् स्वाहा।।

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः। ॐ नमो भगवते, विश्व-मूर्तये, नारायणाय, श्रीपुरूषोत्तमाय। रक्ष रक्ष, युग्मदधिकं प्रत्यक्षं परोक्षं वा अजीर्णं पच पच, विश्व-मूर्तिकान् हन हन, ऐकाह्निकं द्वाह्निकं त्राह्निकं चतुरह्निकं ज्वरं नाशय नाशय, चतुरग्नि वातान् अष्टादष-क्षयान् रांगान्, अष्टादश-कुष्ठान् हन हन, सर्व दोषं भंजय-भंजय, तत्-सर्वं नाशय-नाशय, शोषय-शोषय, आकर्षय-आकर्षय, मम शत्रुं मारय-मारय, उच्चाटय-उच्चाटय, विद्वेषय-विद्वेषय, स्तम्भय-स्तम्भय, निवारय-निवारय, विघ्नं हन हन, दह दह, पच पच, मथ मथ, विध्वंसय-विध्वंसय, विद्रावय-विद्रावय, चक्रं गृहीत्वा शीघ्रमागच्छागच्छ, चक्रेण हन हन, पा-विद्यां छेदय-छेदय, चौरासी-चेटकान् विस्फोटान् नाशय-नाशय, वात-शुष्क-दृष्टि-सर्प-सिंह-व्याघ्र-द्विपद-चतुष्पद अपरे बाह्यं ताराभिः भव्यन्तरिक्षं अन्यान्य-व्यापि-केचिद् देश-काल-स्थान सर्वान् हन हन, विद्युन्मेघ-नदी-पर्वत, अष्ट-व्याधि, सर्व-स्थानानि, रात्रि-दिनं, चौरान् वशय-वशय, सर्वोपद्रव-नाशनाय, पर-सैन्यं विदारय-विदारय, पर-चक्रं निवारय-निवारय, दह दह, रक्षां कुरू कुरू, ॐ नमो भगवते, ॐ नमो नारायणाय, हुं फट् स्वाहा।।

ठः ठः ॐ ह्रीं ह्रीं। ॐ ह्रीं क्लीं भुवनेश्वर्याः श्रीं ॐ भैरवाय नमः। हरि ॐ उच्छिष्ट-देव्यै नमः। डाकिनी-सुमुखी-देव्यै, महा-पिशाचिनी ॐ ऐं ठः ठः। ॐ चक्रिण्या अहं रक्षां कुरू कुरू, सर्व-व्याधि-हरणी-देव्यै नमो नमः। सर्व प्रकार बाधा शमनमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू फट्। श्रीं ॐ कुब्जिका देव्यै ह्रीं ठः स्वाहा।।
शीघ्रमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू शाम्बरी क्रीं ठः स्वाहा।।

शारिका भेदा महामाया पूर्णं आयुः कुरू। हेमवती मूलं रक्षा कुरू। चामुण्डायै देव्यै शीघ्रं विध्नं सर्वं वायु कफ पित्त रक्षां कुरू। मन्त्र तन्त्र यन्त्र कवच ग्रह पीडा नडतर, पूर्व जन्म दोष नडतर, यस्य जन्म दोष नडतर, मातृदोष नडतर, पितृ दोष नडतर, मारण मोहन उच्चाटन वशीकरण स्तम्भन उन्मूलनं भूत प्रेत पिशाच जात जादू टोना शमनं कुरू। सन्ति सरस्वत्यै कण्ठिका देव्यै गल विस्फोटकायै विक्षिप्त शमनं महान् ज्वर क्षयं कुरू स्वाहा।।

सर्व सामग्री भोगं सप्त दिवसं देहि देहि, रक्षां कुरू क्षण क्षण अरिष्ट निवारणं, दिवस प्रति दिवस दुःख हरणं मंगल करणं कार्य सिद्धिं कुरू कुरू। हरि ॐ श्रीरामचन्द्राय नमः। हरि ॐ भूर्भुवः स्वः चन्द्र तारा नव ग्रह शेषनाग पृथ्वी देव्यै आकाशस्य सर्वारिष्ट निवारणं कुरू कुरू स्वाहा।।

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीवासुदेवाय नमः, बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीविष्णु भगवान् मम अपराध क्षमा कुरू कुरू, सर्व विघ्नं विनाशय, मम कामना पूर्णं कुरू कुरू स्वाहा।।

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं ॐ श्रीदुर्गा देवी रूद्राणी सहिता, रूद्र देवता काल भैरव सह, बटुक भैरवाय, हनुमान सह मकर ध्वजाय, आपदुद्धारणाय मम सर्व दोषक्षमाय कुरू कुरू सकल विघ्न विनाशाय मम शुभ मांगलिक कार्य सिद्धिं कुरू कुरू स्वाहा।।

एष विद्या माहात्म्यं च, पुरा मया प्रोक्तं ध्रुवं। शम क्रतो तु हन्त्येतान्, सर्वाश्च बलि दानवाः।। य पुमान् पठते नित्यं, एतत् स्तोत्रं नित्यात्मना। तस्य सर्वान् हि सन्ति, यत्र दृष्टि गतं विषं।। अन्य दृष्टि विषं चैव, न देयं संक्रमे ध्रुवम्। संग्रामे धारयेत्यम्बे, उत्पाता च विसंशयः।। सौभाग्यं जायते तस्य, परमं नात्र संशयः। द्रुतं सद्यं जयस्तस्य, विघ्नस्तस्य न जायते।। किमत्र बहुनोक्तेन, सर्व सौभाग्य सम्पदा। लभते नात्र सन्देहो, नान्यथा वचनं भवेत्।। ग्रहीतो यदि वा यत्नं, बालानां विविधैरपि। शीतं समुष्णतां याति, उष्णः शीत मयो भवेत्।। नान्यथा श्रुतये विद्या, पठति कथितं मया। भोज पत्रे लिखेद् यन्त्रं, गोरोचन मयेन च।। इमां विद्यां शिरो बध्वा, सर्व रक्षा करोतु मे। पुरूषस्याथवा नारी, हस्ते बध्वा विचक्षणः।। विद्रवन्ति प्रणश्यन्ति, धर्मस्तिष्ठति नित्यशः। सर्वशत्रुरधो यान्ति, शीघ्रं ते च पलायनम्।।

‘श्रीभृगु संहिता’ के सर्वारिष्ट निवारण खण्ड में इस अनुभूत स्तोत्र के 40 पाठ करने की विधि बताई गई है। इस पाठ से सभी बाधाओं का निवारण होता है।

किसी भी देवता या देवी की प्रतिमा या यन्त्र के सामने बैठकर धूप दीपादि से पूजन कर इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिये। विशेष लाभ के लिये ‘स्वाहा’ और ‘नमः’ का उच्चारण करते हुए ‘घृत मिश्रित गुग्गुल’ से आहुतियाँ दे सकते हैं।......................................

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