Thursday, September 15, 2016

गणेशजी के अष्टविनायक मंदिर

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THIS EXCELLENT ARTICLE IS FROM DAINIK BHASKAR DOT COM -


भगवान गणेश हिन्दू धर्म में प्रथम पूजनीय भगवान माने जाते हैं। भगवान गणेश को रिद्धि-सिद्धि और बुद्धि का देवता कहा जाता है। महाराष्ट्र के सबसे बड़े उत्सवों में गणेश उत्सव भी शामिल है। हर साल गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक यह उत्सव मनाया जाता है। महाराष्ट्र की संस्कृति में गणपति का विशेष स्थान है। इस राज्य में भगवान गणेश के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जिनमें गणेशजी के अष्टविनायक मंदिर भी शामिल हैं। जिस प्रकार भगवान शिव के12 ज्योतिर्लिंगों का विशेष महत्व है, ठीक उसी प्रकार गणपति उपासना के लिए महाराष्ट्र के अष्टविनायक का विशेष महत्व है।
इन मंदिरों के संबंध में मान्याता है कि यहां विराजित गणेश प्रतिमाएं खुद प्रकट हुई हैं। ये मूर्तियां मानव निर्मित न होकर प्राकृतिक हैं।
अष्टविनायक के ये सभी आठ मंदिर बहुत पुराने हैं। इन सभी मंदिरों का उल्लेख कई ग्रंथों में में भी मिलता है। इन आठ गणपति धामों की यात्रा अष्टविनायक तीर्थ यात्रा के नाम से जानी जाती है। इन प्रतिमाओं के प्राप्त होने के क्रम के अनुसार ही अष्टविनायक की यात्रा भी की जाती है। मान्यता है कि इन मंदिरों के दर्शन क्रम अनुसार करना चाहिए। जिन लोगों के लिए अष्टविनायक की यात्रा करना संभव नहीं है, वे इनके चित्रों के दर्शन करके भी पुण्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

1. श्री मयूरेश्वर मंदिर


गणपतिजी का यह मंदिर पुणे से 80 किलोमीटर दूरी पर मोरगांव नाम की जगह पर है। मयूरेश्वर मंदिर के चारों कोनों में मीनारें हैं और लंबे पत्थरों की दीवारें हैं। यहां चार द्वार हैं। ये चारों दरवाजे चारों युग सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग के प्रतीक हैं। इस मंदिर के द्वार पर शिवजी के वाहन नंदी बैल की मूर्ति स्थापित है, इसका मुंह भगवान गणेश की मूर्ति की ओर है। नंदी की मूर्ति के संबंध में यह मान्यता प्रचलित है कि प्राचीन काल में शिवजी और नंदी इस मंदिर क्षेत्र में विश्राम के लिए रुके थे, लेकिन बाद में नंदी ने यहां से जाने के लिए मना कर दिया। तभी से नंदी यहीं पर हैं। नंदी और मूषक (चूहा) दोनों ही मंदिर के रक्षक के रूप में रहते हैं। मंदिर में गणेशजी बैठी मुद्रा में विराजमान हैं तथा उनकी सूंड बाएं हाथ की ओर है, उनकी चार भुजाएं और तीन नेत्र हैं।



2. सिद्धिविनायक मंदिर


अष्ट विनायक में दूसरा गणेश मंदिर है सिद्धिविनायक मंदिर। यह मंदिर पुणे से करीब 200 किमी दूरी पर है। इस मंदिर के पास ही भीम नदी है। यह मंदिर पुणे के सबसे पुराने मंदिरों में से एक माना जाता है। सिद्धटेक में सिद्धिविनायक मंदिर बहुत ही सिद्ध स्थान है। मान्यता है कि यहीं पर भगवान विष्णु ने सिद्धियां हासिल की थी। सिद्धिविनायक मंदिर एक पहाड़ की चोटी पर बना हुआ है। जिसका मुख्य द्वार उत्तर दिशा की ओर है। मंदिर की परिक्रमा के लिए पहाड़ी की यात्रा करनी होती है। यहां गणेशजी की मूर्ति 3 फीट ऊंची और ढाई फीट चौड़ी है। मूर्ति का मुंह उत्तर दिशा की ओर है। भगवान गणेश की सूंड सीधे हाथ की ओर है।



3. श्री बल्लालेश्वर मंदिर


अष्टविनायक में  तीसरा मंदिर श्री बल्लालेश्वर मंदिर है। यह मंदिर मुंबई-पुणे हाइवे पर पाली से टोयन में और गोवा राजमार्ग पर नागोथाने से पहले 11किलोमीटर दूरी पर है। इस मंदिर का नाम गणेशजी के भक्त बल्लाल के नाम पर पड़ा है। माना जाता है कि पुराने समय में बल्लाल नाम का एक लड़का था, जो गणेशजी का परमभक्त था। एक दिन उसने पाली गांव में विशेष पूजा का आयोजन किया। पूजन कई दिनों तक चल रहा था, पूजा में शामिल कई बच्चे घर लौटकर नहीं गए और वहीं बैठे रहे। इस कारण उन बच्चों के माता-पिता ने बल्लाल को पीटा और गणेशजी की प्रतिमा के साथ उसे भी जंगल में फेंक दिया। गंभीर हालत में भी बल्लाल गणेशजी के मंत्रों का जप करता रहा। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर गणेशजी ने उसे दर्शन दिए। तब बल्लाल ने गणेशजी से वरदान मांगा कि अब वे इसी स्थान पर निवास करें। गणपति ने उसकी प्रार्थना सुन ली। तभी से गणेशजी बल्लालेश्वर नाम से यहां विराजित हो गए।


4. श्री वरदविनायक


अष्ट विनायक में चौथा मंदिर है श्री वरदविनायक मंदिर। यह मंदिर महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के कोल्हापुर क्षेत्र में है। महाड़ नाम के एक सुन्दर पर्वतीय गांव में श्री वरदविनायक मंदिर है। यहां प्रचलित मान्यता के अनुसार वरदविनायक भक्तों की सभी कामनाओं को पूरा करते है। इस मंदिर में नंददीप नाम का एक दीपक है, जो कई वर्षों में जल रहा है। कहा जाता है कि वरदविनायक का नाम लेने मात्र से ही सभी इच्छाये पूरी हो जाती है  !


5. चिंतामणि गणपति


अष्टविनायक में पांचवां मंदिर  है चिंतामणि गणपति। यह मंदिर पुणे जिले के हवेली क्षेत्र में है। मंदिर के पास ही तीन नदियों भीम, मुला और मुथा का संगम है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि  यदि किसी भक्त का मन बहुत विचलित है और जीवन में दुखों का सामना करना पड़ रहा है तो इस मंदिर में आने पर उसकी सभी समस्याएं दूर हो सकती हैं।  ब्रहमाजी ने अपने विचलित मन को वश में करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी।



6. श्री गिरजात्मज गणपति मंदिर,


अष्टविनायक मंदिरों में छठा मंदिर है श्री गिरजात्मज। यह मंदिर पुणे-नासिक राजमार्ग पर पुणे से करीब 90 किलोमीटर दूरी पर है। क्षेत्र के नारायणगांव से इस मंदिर की दूरी 12 किलोमीटर है। गिरजात्मज का अर्थ है गिरिजा यानी माता पार्वती के पुत्र गणेश। यह मंदिर एक पहाड़ पर बौद्ध गुफाओं के स्थान पर बनाया गया है। यहां लेनयादरी पहाड़ पर 18 बौद्ध गुफाएं हैं और इनमें से 8वीं गुफा में गिरजात्मज विनायक मंदिर है। इन गुफाओं को गणेश गुफा भी कहा जाता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 300 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। यह पूरा मंदिर ही एक बड़े पत्थर को काटकर बनाया गया है।


7. विघ्नेश्वर गणपति मंदिर


अष्टविनायक में सातवें स्थान पर है विघ्नेश्वर गणपति। यह मंदिर पुणे के ओझर जिले में जूनर क्षेत्र में है। यह पुणे-नासिक रोड पर नारायणगावं से जूनर या ओजर होकर करीब 85 किलोमीटर दूरी पर है। कथाओं के अनुसार विघनासुर नामक एक असुर था जो संतों को परेशान करता रहता था। भगवान गणेश ने इसी क्षेत्र में उस असुर का वध किया और सभी को कष्टों से मुक्ति दिलाई थी। तभी से यह मंदिर विघ्नेश्वर, विघ्नहर्ता और विघ्नहार के रूप में जाना जाता है।


8. महागणपति मंदिर


अष्टविनायक मंदिर में आठवां गणेश मंदिर है महागणपति मंदिर। यह मंदिर पुणे के राजणगांव में है। यह पुणे-अहमदनगर राजमार्ग पर 50 किलोमीटर की दूरी पर है। इस मंदिर का इतिहास 9-10वीं सदी के बीच माना जाता है। मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की ओर है जो कि बहुत विशाल और सुन्दर है। भगवान गणपति की मूर्ति को माहोतक नाम से भी जाना जाता है। मान्यता के अनुसार, मंदिर की मूल मूर्ति तहखाने की छिपी हुई है। पुराने समय में जब विदेशियों ने यहां आक्रमण किया था तो उनसे मूर्ति बचाने के लिए मूर्ति को तहखाने में छिपा दिया गया था।



Sunday, September 4, 2016

कल (5 सितंबर, सोमवार) भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि है

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गणेश चतुर्थी के इस शुभ अवसर पर मै आज आपको गणेश जी से संबंधित कुछ आध्यात्मिक विवरण नीचे देरहा हूँ. यह विवरण दैनिक भास्कर से साभार लिया जां रहा है.  सभी चित्र भी दैनिक भास्कर से साभार लिए गए है. दैनिक भास्कर द्वारा पाठकों को यह उपयोगी जानकारी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !!!!! 

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चार संयोगों के साथ आज (5 सितंबर, सोमवार) चतुर्थी पर श्रीगणेश सभी के लिए खुशियां लेकर आएं हैं। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. अमर डिब्बावाला जी के अनुसार रवि योग, शुक्ल योग, चित्रा नक्षत्र और अगस्त तारे का उदय यह चारों संयोग कई साल बाद चतुर्थी पर होंगे।

रवि योग बाजार से आभूषण, वाहन खरीदी, नवीन प्रतिष्ठान उद्घाटन, शुक्ल योग धर्म-आध्यात्म से जुड़े कार्यों की शुरुआत, चित्रा नक्षत्र में सौंदर्य सामग्री की खरीदारी और चातुर्मास में अगस्त तारे का उदय धन-धान्य में वृद्धि करने वाला रहेगा। चतुर्थी पर सूर्योदय के समय सुबह 06.15 से दोपहर 02.45 बजे तक लगभग सारे संयोग बने रहेंगे, जो सभी राशि वालों के लिए समृद्धिकारक होंगे।

भद्रा काल में भी कर सकेंगे गणेश स्थापना




चतुर्थी पर इस बार भद्रा का साया रहेगा, लेकिन श्रीगणेश विघ्नहर्ता हैं इसलिए मूर्ति स्थापना में भद्रा काल बाधक नहीं होगा। ज्योतिषाचार्य पं श्यामनारायण जी व्यास ने बताया कि गणेशजी का जन्म भाद्र शुक्ल चतुर्थी पर दोपहर में हुआ था इस कारण भद्रा के दौरान भी श्रद्धालु मूर्ति स्थापना कर सकेंगे। दोपहर में 12.15 से 1 बजे तक अभिजीत मुहूर्त में स्थापना कर पूजन करना सर्वश्रेष्ठ रहेगा।

कल (5 सितंबर, सोमवार) भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इसी दिन भगवान श्रीगणेश का प्राकट्य माना जाता है। इस दिन भगवान श्रीगणेश को प्रसन्न करने के लिए व्रत व पूजन किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस दिन कुछ विशेष उपाय किए जाएं तो भगवान श्रीगणेश अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उनकी हर मनोकामना पूरी करते हैं। 


 शास्त्रों में भगवान श्रीगणेश का अभिषेक करने का विधान बताया गया है। गणेश चतुर्थी पर भगवान श्रीगणेश का अभिषेक करने से विशेष लाभ होता है। इस दिन आप शुद्ध पानी से श्रीगणेश का अभिषेक करें। साथ में गणपति अथर्व शीर्ष का पाठ भी करें। बाद में मावे के लड्डुओं का भोग लगाकर भक्तों में बांट दें।

सोमवार, 5 सितंबर 2016 से दस दिनों तक गणेशजी की भक्ति का खास समय रहेगा। इन दिनों में गणेशजी की विधिवत पूजा करने से घर-परिवार के दुख दूर हो सकते हैं, पैसों की तंगी से मुक्ति मिल सकती है। 

गणेश चतुर्थी की पूजन विधि


सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद अपनी इच्छा के अनुसार सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा स्थापित करें (शास्त्रों में मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमा की स्थापना को ही श्रेष्ठ माना है)। संकल्प मंत्र के बाद षोडशोपचार पूजन व आरती करें। गणेशजी की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाएं। मंत्र बोलते हुए 21 दूर्वा दल चढ़ाएं। 21 लड्डुओं का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डू मूर्ति के पास रखें और 5 ब्राह्मण को दान कर दें। शेष लड्डू प्रसाद रूप में बांट दें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा देने के बाद शाम के समय स्वयं भोजन करें। पूजन के समय यह मंत्र बोलें-
ऊं गं गणपतये नम:
दूर्वा दल चढ़ाने का मंत्र
गणेशजी को 21 दूर्वा दल चढ़ाई जाती है। दूर्वा दल चढ़ाते समय नीचे लिखे मंत्रों का जाप करें-

ऊं गणाधिपतयै नम:
ऊं उमापुत्राय नम:
ऊं विघ्ननाशनाय नम:
ऊं विनायकाय नम:
ऊं ईशपुत्राय नम:
ऊं सर्वसिद्धप्रदाय नम:
ऊं एकदन्ताय नम:
ऊं इभवक्त्राय नम:
ऊं मूषकवाहनाय नम:
ऊं कुमारगुरवे नम:

भगवान श्रीगणेश की आरती


जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकि पार्वती पिता महादेवा।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
एक दन्त दयावंत चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे मूसे की सवारी।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
अन्धन को आंख देत कोढिऩ को काया।
बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
हार चढ़े फुल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डूवन का भोग लगे संत करे सेवा।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
दीनन की लाज रखो, शंभू पुत्र वारी।
मनोरथ को पूरा करो, जय बलिहारी।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकि पार्वती पिता महादेवा।।

इस तरह पूजा करने से भगवान श्रीगणेश अति प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की हर मुराद पूरी करते हैं।










वास्तु शास्त्र में घर के हर हिस्से व कमरे के लिए कुछ विशेष बातें बताई गई हैं। उसी के अंतर्गत पूजा घर के लिए भी कुछ विशेष वास्तु नियम बनाए गए हैं। हिंदू परिवारों में पूजन स्थान या पूजन कक्ष आवश्यक रूप से होता है। घर में पूजन स्थान या पूजा स्थल होने से मन को शांति मिलती है। अगर यह वास्तु के अनुसार हो तो और भी शुभ फल देता है और पूजन कक्ष के माध्यम से किस्मत भी खुल सकती है। घर में पूजन कक्ष या पूजन स्थान बनवाते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए, जो इस प्रकार हैं-

1. पूजा घर रसोई घर के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में भी बनाया जा सकता है, यदि घर में पर्याप्त स्थान न हो तो। पूजन में मूर्तियां अधिक न रखें। इस बात का विशेष ध्यान रहे कि भगवान श्रीगणेश, लक्ष्मी और सरस्वती की मूर्तियां खड़ी स्थिति में न हो।

2. पूजा स्थल पूर्वी या उत्तरी ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में होना चाहिए चूंकि ईश्वरीय शक्ति ईशान कोण से प्रवेश कर नैऋत्य कोण (पश्चिम-दक्षिण) से बाहर निकलती है।

3. पूजा करने वाले का मुंह पश्चिम में हो तो अति शुभ रहता है, इसके लिए पूजा स्थल का द्वार पूर्व की ओर होना चाहिए। शौचालय तथा पूजा घर पास-पास नहीं होना चाहिए।

4. पूजा स्थल के नीचे कोई भी अग्नि संबंधी वस्तु जैसे इन्वर्टर या विद्युत मोटर नहीं होना चाहिए। इस स्थान का उपयोग पूजन सामग्री, धार्मिक पुस्तकें, शुभ वस्तुएं रखने में किया जाना चाहिए।

5. पूजा स्थल के समक्ष थोड़ा स्थान खुला होना चाहिए, जहां आसानी से बैठा जा सके। पूजा स्थल के ऊपर यदि टाण्ड न बनाएं और यदि हो भी तो उसे साफ-सुथरी रखें। कोई कपड़ा या गंदी वस्तुएं वहां न रखें।

6. पूजा स्थल का उपयोग ध्यान, संध्या या योग के लिए भी किया जा सकता है। इस स्थान को शांत रखें। धीमी रोशनी वाले बल्ब लगाएं। अंधेरा व सीलन न हो। जब भी आपका मन अशांत हो, यहां आकर आप नई ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं।

7. यदि पूजा स्थल के लिए पर्याप्त स्थान नहीं हो तो किसी भी दीवार के सहारे ढाई-तीन फीट की ऊंचाई पर सादा पत्थर रखकर वहां पूजा स्थल बना लें। हो सके तो इसे सादे पर्दे से ढंक दें।

8. घर में पूजा स्थल होना शुभता का परिचायक है, इससे घर में पॉजीटिव एनर्जी का संचार होता है। घर की पवित्रता भी बनी रहती है। वहीं अगरबत्ती आदि के धुएं से वातावरण सुगंधित रहता है। विषाणु व कीटाणु घर में प्रवेश नहीं करते।

9. पूजा घर में पीले रंग के बल्व का उपयोग करना शुभ होता है तथा शेष कक्ष में दूधिया बल्व का इस्तेमाल करना चाहिए। ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और व्यापार-व्यवसाय में तरक्की होती है।
10. वास्तु के अनुसार, शाम के समय पूजन स्थान पर इष्ट देव के सामने प्रकाश का उचित प्रबंध होना चाहिए, इसके लिए घी का दीया जलाना अत्यंत उत्तम है। इस समय घर में धन की देवी लक्ष्मी का प्रवेश होता है। यदि इस समय घर में अंधेरा होता है तो लक्ष्मी अपना मार्ग बदल लेती है और बाहर की नकारात्मक ऊर्जा घर में प्रवेश कर जाती है। ऐसी अशुभ ऊर्जा को रोकने तथा घर में लक्ष्मी के वास के लिए गोधूलि बेला के समय घर में तथा पूजा स्थान पर उत्तम रोशनी होनी चाहिए।

यह विवरण दैनिक भास्कर से साभार लिया जां रहा है.  सभी चित्र भी दैनिक भास्कर से साभार लिए गए है. दैनिक भास्कर द्वारा पाठकों को यह उपयोगी जानकारी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !!!!! 

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Wednesday, July 27, 2016

भगवान शिव को प्रसन्न करने के उपाय


मित्रों, श्रावण महीना देवो के देव महादेव शिव-शंकर भगवान की विशेष आराधना का महीना होता है. आज हम दैनिक भास्कर डॉट कॉम से साभार लिया गया आलेख यहा दे रहे है जो हम सबके लिए अत्यंत लाभकारी हो सकता है--- 





भगवान शिव बहुत भोले हैं, यदि कोई भक्त सच्ची श्रद्धा से उन्हें सिर्फ 

एक लोटा पानी भी अर्पित करे तो भी वे प्रसन्न हो जाते हैं। इसीलिए उन्हें 


भोलेनाथ भी कहा जाता है। सावन में शिव भक्त भगवान भोलेनाथ को 


प्रसन्न करने के लिए अनेक उपाय करते हैं।



कुछ ऐसे ही छोटे और अचूक उपायों के बारे शिवपुराण में भी लिखा है। ये 

उपाय इतने सरल हैं कि इन्हें बड़ी ही आसानी से किया जा सकता है। हर 


समस्या के समाधान के लिए शिवपुराण में एक अलग उपाय बताया गया 


है। सावन में ये उपाय विधि-विधान पूर्वक करने से भक्तों की हर इच्छा 


पूरी हो सकती है। ये उपाय इस प्रकार हैं-


शिवपुराण के अनुसार, भगवान शिव को प्रसन्न करने के उपाय इस प्रकार हैं-

1. भगवान शिव को चावल चढ़ाने से धन की प्राप्ति होती है।

2. तिल चढ़ाने से पापों का नाश हो जाता है।

3. जौ अर्पित करने से सुख में वृद्धि होती है।



4. गेहूं चढ़ाने से संतान वृद्धि होती है।

यह सभी अन्न भगवान को अर्पण करने के बाद गरीबों में बांट देना 

चाहिए।

शिवपुराण के अनुसार, जानिए भगवान शिव को कौन-सा रस (द्रव्य) 


चढ़ाने से क्या फल मिलता है-


1. बुखार होने पर भगवान शिव को जल चढ़ाने से शीघ्र लाभ मिलता है। 

सुख व संतान की वृद्धि के लिए भी जल द्वारा शिव की पूजा उत्तम बताई 


गई है।


2. तेज दिमाग के लिए शक्कर मिला दूध भगवान शिव को चढ़ाएं। 


3. शिवलिंग पर गन्ने का रस चढ़ाया जाए तो सभी आनंदों की प्राप्ति 

होती है। 


4. शिव को गंगा जल चढ़ाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।

5. शहद से भगवान शिव का अभिषेक करने से टीबी रोग में आराम 


मिलता है।

6. यदि शारीरिक रूप से कमजोर कोई व्यक्ति भगवान शिव का अभिषेक 


गाय के शुद्ध घी से करे तो उसकी कमजोरी दूर हो सकती है।

शिवपुराण के अनुसार, जानिए भगवान शिव को कौन-सा फूल चढ़ाने से 


क्या फल मिलता है-


1. लाल व सफेद आंकड़े के फूल से भगवान शिव का पूजन करने पर 

मोक्ष की प्राप्ति होती है।


2. भगवान शिव की पूजा चमेली के फूल से करने पर वाहन सुख मिलता 

है। 



3. अलसी के फूलों से शिव की पूजा करने पर मनुष्य भगवान विष्णु को 

प्रिय होता है। 



4. शमी वृक्ष के पत्तों से पूजन करने पर मोक्ष प्राप्त होता है। 

5. बेला के फूल से पूजा करने पर सुंदर व सुशील पत्नी मिलती है।

6. जूही के फूल से भगवान शिव की पूजा करें तो घर में कभी अन्न की 

कमी नहीं होती।


7. कनेर के फूलों से भगवान शिव की पूजा करने से नए वस्त्र मिलते हैं। 

8. हरसिंगार के फूलों से पूजन करने पर सुख-सम्पत्ति में वृद्धि होती है।

9. धतूरे के फूल से पूजन करने पर भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशन करता है।

10. लाल डंठलवाला धतूरा शिव पूजा में शुभ माना गया है। 

11. दूर्वा से भगवान शिव की पूजा करने पर उम्र बढ़ती है।

इन उपायों से प्रसन्न होते हैं भगवान शिव


1. सावन में रोज 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से ऊं नम: शिवाय लिखकर 

शिवलिंग पर चढ़ाएं। इससे आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं।



2. अगर आपके घर में किसी भी प्रकार की परेशानी हो तो सावन में रोज 

सुबह घर में गोमूत्र का छिड़काव करें तथा गुग्गुल का धूप दें।




3. यदि आपके विवाह में अड़चन आ रही है तो सावन में रोज शिवलिंग 

पर केसर मिला हुआ दूध चढ़ाएं। इससे जल्दी ही आपके विवाह के योग 


बन सकते हैं।



4. सावन में रोज नंदी (बैल) को हरा चारा खिलाएं। इससे जीवन में सुख-

समृद्धि आएगी और मन प्रसन्न रहेगा।


5. सावन में गरीबों को भोजन कराएं, इससे आपके घर में कभी अन्न की कमी नहीं होगी तथा पितरों की आत्मा को शांति मिलेगी।

6. सावन में रोज सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निपट कर समीप स्थित किसी शिव मंदिर में जाएं और भगवान शिव का जल से अभिषेक करें और उन्हें काले तिल अर्पण करें। इसके बाद मंदिर में कुछ देर बैठकर मन ही मन में ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करें। इससे मन को शांति मिलेगी।

7. सावन में किसी नदी या तालाब जाकर आटे की गोलियां मछलियों को 

खिलाएं। जब तक यह काम करें मन ही मन में भगवान शिव का ध्यान 


करते रहें। यह धन प्राप्ति का बहुत ही सरल उपाय है।



आमदनी बढ़ाने के लिए


सावन के महीने में किसी भी दिन घर में पारद शिवलिंग की स्थापना करें 

और उसकी यथा विधि पूजन करें। इसके बाद नीचे लिखे मंत्र का 108 


बार जप करें-


ऐं ह्रीं श्रीं ऊं नम: शिवाय: श्रीं ह्रीं ऐं

प्रत्येक मंत्र के साथ बिल्वपत्र पारद शिवलिंग पर चढ़ाएं। बिल्वपत्र के 

तीनों दलों पर लाल चंदन से क्रमश: ऐं, ह्री, श्रीं लिखें। अंतिम 108 वां 


बिल्वपत्र को शिवलिंग पर चढ़ाने के बाद निकाल लें तथा उसे अपने 


पूजन स्थान पर रखकर प्रतिदिन उसकी पूजा करें। माना जाता है ऐसा 


करने से व्यक्ति की आमदानी में इजाफा होता है।


संतान प्राप्ति के लिए उपाय


सावन में किसी भी दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद 

भगवान शिव का पूजन करें। इसके पश्चात गेहूं के आटे से 11 शिवलिंग 


बनाएं। अब प्रत्येक शिवलिंग का शिव महिम्न स्त्रोत से जलाभिषेक करें। 


इस प्रकार 11 बार जलाभिषेक करें। उस जल का कुछ भाग प्रसाद के रूप 


में ग्रहण करें। यह प्रयोग लगातार 21 दिन तक करें। गर्भ की रक्षा के 


लिए और संतान प्राप्ति के लिए गर्भ गौरी रुद्राक्ष भी धारण करें। इसे 


किसी शुभ दिन शुभ मुहूर्त देखकर धारण करें।


बीमारी ठीक करने के लिए उपाय


सावन में किसी सोमवार को पानी में दूध व काले तिल डालकर शिवलिंग 

का अभिषेक करें। अभिषेक के लिए तांबे के बर्तन को छोड़कर किसी 


अन्य धातु के बर्तन का उपयोग करें। अभिषेक करते समय ऊं जूं स: मंत्र 


का जाप करते रहें।


इसके बाद भगवान शिव से रोग निवारण के लिए प्रार्थना करें और प्रत्येक 

सोमवार को रात में सवा नौ बजे के बाद गाय के सवा पाव कच्चे दूध से 

शिवलिंग का अभिषेक करने का संकल्प लें। इस उपाय से बीमारी ठीक 

होने में लाभ मिलता है।

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Wednesday, July 20, 2016

WHATS APP COLLECTION -

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Must Read* 
*☘17 points that you must  always keep in your mind☘*

*👉1) जो आपसे दिल से बात करता है उसे कभी दिमाग से जवाब मत देना।*
*👉2) एक साल मे 50 मित्र बनाना आम बात है 50 साल तक एक मित्र से मित्रता निभाना खास बात है।*
*👉3) एक वक्त था जब हम सोचते थे कि  हमारा भी वक्त आएगा और एक ये वक्त है कि हम सोचते है कि हम सोचते है कि वो भी क्या वक्त था।*
*👉4) एक मिनट मे जिन्दगी नही बदलती पर एक मिनट सोच कर लिखा फैसला पूरी जिन्दगी बदल देता है।*
*👉5) आप जीवन मे कितने भी ऊॅचे क्यो न उठ जाए पर अपनी गरीबी और कठिनाई को कभी मत भूलिए।*
*👉6) वाणी मे भी अजीब शक्ति होती है  कङवा बोलने वाले का शहद भी नही बिकता और मीठा बोलने वाले की मिर्ची भी बिक जाती है।*
*👉7) जीवन मे सबसे बङी खुशी उस काम को करने मे है जिसे लोग कहते है कि तुम नही कर सकते हो।*
*👉8) इसांन एक दुकान है और जुबान उसका ताला।* *ताला खुलता है, तभी मालूम होता है कि*
*दुकान सोने की है या कोयले की।*
*👉9) कामयाब होने के लिए जिन्दगी मे कुछ ऐसा काम करो कि लोग आपका नाम Face book पे नही Google पे सर्च करे।*
*👉10) दुनिया विरोध करे तुम ङरो मत क्योकि जिस पेङ पर फल लगते है दुनिया उसे ही पत्थर मारती है।*
*👉11) जीत और हार आपकी सोच पर ही निर्भर है मान लो तो हार होगी और ठान लो तो जीत होगी।*
*👉12) दुनिया की सबसे सस्ती चीज है सलाह एक से मांगो हजारो से मिलती है सहयोग हजारो से मांगो एक से मिलता है।*
*👉13) मैने धन से कहा कि तुम एक कागज के टुकङे हो धन मुस्कराया और बोला बिल्कुल मै एक कागज का टुकङा हूॅ लेकिन मैने आज तक जिन्दगी मे कूङेदान का मुहॅ नही देखा।*
*👉14) आंधियो ने लाख बढाया हौसला धूल का, दो बूंद बारिश ने औकात बता दी!*
*👉15) जब एक रोटी के चार टुकङे हो और खाने वाले पांच हो तब मुझे भूख नही है ऐसा कहने वाला कौन है सिर्फ "माँ"*
*👉16) जब लोग आपकी नकल करने लगे तो समझ लेना चाहिए कि आप जीवन मे सफल हो रहे है।*
*👉17) मत फेंक पत्थर पानी मे उसे भी कोई पीता है। मत रहो यू उदास जिन्दगी मे तुम्हे देखकर भी कोई जीता है*।


*Some Positive Thoughts*.
*Must Read*
✍🏻 *सुनने* की आदत डालो क्योंकि ताने मारने वालों की कमी नहीं हैं।
✍🏻 *मुस्कराने* की आदत डालो क्योंकि रुलाने वालों की कमी नहीं हैं
✍🏻 *ऊपर उठने* की आदत डालो क्योंकि टांग खींचने वालों की कमी नहीं है।
✍🏻 *प्रोत्साहित* करने की आदत डालो क्योंकि हतोत्साहित करने वालों की कमी नहीं है!!
✍🏻 *सच्चा व्यक्ति* ना तो नास्तिक होता है ना ही आस्तिक होता है ।
सच्चा व्यक्ति हर समय वास्तविक होता है....✍🏻 *छोटी छोटी बातें दिल* में रखने से
बड़े बड़े रिश्ते कमजोर हो जाते हैं"✍🏻 *कभी पीठ पीछे आपकी बात चले*
तो घबराना मत ... बात तो "उन्हीं की होती है"..जिनमें कोई " बात " होती है
✍🏻 *"निंदा"* उसी की होती है जो"जिंदा" हैँ मरने के बाद तो सिर्फ "तारीफ" होती है।
*Be Positive..*✍✍


सुंदरकाणड  सें  जुङी  5  अहम  बातें  जो  कोई  नहीं  जानता !
1 :-  सुंदरकाणड  का  नाम सुंदरकाणड  क्यों  रखा गया ?
हनुमानजी,  सीताजी 
की  खोज  में  लंका  गए  थें  और  लंका  त्रिकुटाचल  पर्वत  पर  बसी  हुई  थी ! त्रिकुटाचल  पर्वत  यानी  यहां  3 पर्वत  थें ! पहला  सुबैल पर्वत, जहां  कें  मैदान  में  युद्ध  हुआ  था !
दुसरा नील  पर्वत, जहां  राक्षसों  कें  महल  बसें  हुए  थें ! और  तीसरे पर्वत  का  नाम  है  सुंदर  पर्वत, जहां  अशोक  वाटिका  नीर्मित थी !  इसी  वाटिका  में  हनुमानजी  और  सीताजी  की  भेंट  हुई  थी !
इस  काण्ड  की  यहीं  सबसें  प्रमुख  घटना  थी , इसलिए  इसका  नाम  सुंदरकाणड  रखा  गया  है !
2 :-  शुभ  अवसरों  पर  ही  सुंदरकाणड  का  पाठ  क्यों ?
शुभ  अवसरों  पर  गोस्वामी  तुलसीदासजी  द्वारा  रचित  श्रीरामचरितमानस  कें  सुंदरकाणड  का  पाठ  किया  जाता  हैं !  शुभ  कार्यों  की  शुरूआत  सें  पहलें  सुंदरकाणड  का  पाठ  करनें  का  विशेष  महत्व   माना  गया  है !
जबकि  किसी  व्यक्ति  कें  जीवन  में ज्यादा  परेशानीयाँ  हो , कोई  काम  नहीं  बन  पा  रहा  हैं,  आत्मविश्वास  की  कमी  हो  या  कोई  और  समस्या  हो , सुंदरकाणड  कें  पाठ  सें  शुभ  फल  प्राप्त  होने  लग जाते  है, कई  ज्योतिषी  या  संत  भी  विपरित  परिस्थितियों  में  सुंदरकाणड  करनें  की  सलाह  देते  हैं !
3 :-  जानिए  सुंदरकाणड  का  पाठ  विषेश  रूप  सें  क्यों  किया  जाता  हैं ?
माना  जाता  हैं  कि  सुंदरकाणड  कें  पाठ  सें  हनुमानजी  प्रशन्न होतें  है !
सुंदरकाणड  कें  पाठ  में  बजरंगबली  की  कृपा  बहुत  ही  जल्द  प्राप्त हो  जाती  हैं !
जो  लोग  नियमित  रूप  सें  सुंदरकाणड  का  पाठ  करतें  हैं ,  उनके  सभी  दुख  दुर  हो  जातें हैं , इस  काण्ड  में  हनुमानजी  नें  अपनी  बुद्धि  और  बल  सें  सीता  की  खोज  की  हैं !
इसी  वजह  सें  सुंदरकाणड  को  हनुमानजी  की  सफलता  के  लिए  याद  किया  जाता  हैं !
4 :-  सुंदरकाणड  सें  मिलता  हैं  मनोवैज्ञानिक  लाभ ?
वास्तव  में  श्रीरामचरितमानस  कें  सुंदरकाणड  की  कथा  सबसे  अलग  हैं , संपूर्ण  श्रीरामचरितमानस  भगवान  श्रीराम  कें  गुणों  और  उनके   पुरूषार्थ  को  दर्शाती  हैं , सुंदरकाणड  ऐक मात्र  ऐसा  अध्याय  हैं  जो  श्रीराम  कें  भक्त  हनुमान  की  विजय  का  काण्ड  हैं !
मनोवैज्ञानिक  नजरिए  सें  देखा  जाए  तो  यह  आत्मविश्वास  और  इच्छाशक्ति   बढ़ाने  वाला  काण्ड  हैं , सुंदरकाणड  कें  पाठ  सें  व्यक्ति  को  मानसिक  शक्ति  प्राप्त  होती  हैं , किसी  भी  कार्य  को  पुर्ण  करनें  कें  लिए  आत्मविश्वास  मिलता  हैं !
5 :- सुंदरकाणड  सें  मिलता  है  धार्मिक  लाभ  ?
सुंदरकाणड  कें  लाम  सें  मिलता  हैं  धार्मिक  लाभ  हनुमानजी  की  पूजा  सभी  मनोकामनाओं  को  पुर्ण  करनें  वालीं  मानी  गई  हैं ,  बजरंगबली बहुत  जल्दी  प्रशन्न  होने  वालें  देवता  हैं , शास्त्रों  में  इनकी कृपा  पाने  के  कई  उपाय  बताएं  गए  हैं ,  इन्हीं  उपायों  में  सें  ऐक  उपाय  सुंदरकाणड  का  पाठ  करना  हैं , सुंदरकाणड  कें  पाठ  सें  हनुमानजी  कें  साथ  ही  श्रीराम  की  भी  विषेश  कृपा  प्राप्त  होती  हैं !
किसी  भी  प्रकार  की  परेशानी  हो  सुंदरकाणड  कें  पाठ  सें  दुर  हो  जाती  हैं , यह  ऐक  श्रेष्ठ  और  सरल  उपाय  है ,  इसी  वजह  सें  काफी  लोग  सुंदरकाणड  का  पाठ  नियमित  रूप  सें  करते  हैं , हनुमानजी  जो  कि  वानर  थें , वे  समुद्र  को  लांघकर  लंका  पहुंच  गए  वहां  सीता  की  खोज  की , लंका  को  जलाया  सीता  का  संदेश  लेकर  श्रीराम  के  पास  लौट  आए ,  यह  ऐक  भक्त   की  जीत  का  काण्ड  हैं ,  जो अपनी  इच्छाशक्ति  के  बल  पर  इतना  बड़ा  चमत्कार  कर  सकता  है , सुंदरकाणड  में  जीवन  की सफलता  के  महत्वपूर्ण  सूत्र   भी  दिए  गए  हैं  ,  इसलिए  पुरी  रामायण  में  सुंदरकाणड  को  सबसें  श्रेष्ठ  माना  जाता  हैं , क्योंकि  यह  व्यक्ति  में  आत्मविश्वास  बढ़ाता  हैं ,  इसी  वजह  सें सुंदरकाणड  का  पाठ  विषेश  रूप  सें  किया  जाता  हैं  !!



ज्योतिष का अच्छा ज्ञान हो तो आदमी अपनी कुंडली के आधार पर अपने पिछले तथा अगले जन्मों के बारे में भी जान सकता है। हालांकि यह पद्धति थोड़ी जटिल दिखाई देती है परन्तु करने में बहुत सरल है। यह पद्धति केवल योगियों तथा साधुओं को ही ज्ञात है और उन्हीं के माध्यम से ज्योतिषीयों तक पहुंचती है।

ऐसे जाने पिछले जन्म के बारे में

पिछले जन्म के लिए जन्मकुंडली से नेगेटिव कुंडली बनानी होती है जबकि अगले जन्म के लिए पॉजिटिव। अर्थात् पिछले जन्म की कुंडली बनाने के लिए वर्तमान जन्मकुंडली के लग्न में मौजूद ग्रह, राशि को 12 वें में रखा जाता है, दूसरे खाने को 11वे, तीसरे खाने को 10वे, चौथे खाने को 9वे, पांचवे को 8वे, छठे को 7वे, सातवे को 6ठे, आठवे को 5वे, नौवे को चौथे, दसवें को तीसरे, 11वे को दूसरे तथा 12वे घर को लग्न में बदल दिया जाता है। इसी तरीके से नवमांश कुंडली को भी बदल दिया जाता है। अब आपके पास पिछले जन्म की होरोस्कॉप बन जाती है जिससे आप अपने पिछले जीवन के बारे में सब कुछ जान सकते हैं।

ऐसे जानें अगले जन्म के बारे में

अगले जन्म के बारे में जानने के लिए पिछले जन्म के उलट पॉजिटीव कुंडली बनानी होती है। इसके लिए 12वें खाने की राशि तथा ग्रहों को लग्न स्थान पर 11वें खाने को दूसरे, 10वे को तीसरे, 9वे को चौथे, 8वे को पांचवे, 7वे को छठे, छठे को सातवे, 5वे को आठवे, चौथे को नवे, तीसरे को दसवे, दूसरे को 11वे तथा लग्न स्थान को 12वे स्थान पर रखना होता है। ठीक इसी तरह नवमांश कुंडली को भी बदल लिया जाता है। अब इन दोनों कुंडलियों के आधार पर आपको अपने अगले जन्म में क्या मिलने वाला है, आसानी से जान सकते हैं।

पाप कहाँ कहा तक जाता है ?
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एक बार एक ऋषि ने सोचा कि लोग गंगा में पाप धोने जाते है, तो इसका मतलब हुआ कि सारे पाप गंगा में समा गए और गंगा भी पापी हो गयी !
अब यह जानने के लिए तपस्या की, कि पाप कहाँ जाता है ?
तपस्या करने के फलस्वरूप देवता प्रकट हुए , ऋषि ने पूछा कि
भगवन जो पाप गंगा में धोया जाता है वह पाप कहाँ जाता है ?
भगवन ने जहा कि चलो गंगा से ही पूछते है, दोनों लोग गंगा के पास गए और कहा कि "हे गंगे ! जो लोग तुम्हारे यहाँ पाप धोते है तो इसका मतलब आप भी पापी हुई !"
गंगा ने कहा "मैं क्यों पापी हुई, मैं तो सारे पापों को ले जाकर समुद्र को अर्पित कर देती हूँ !"
अब वे लोग समुद्र के पास गए, "हे सागर ! गंगा जो पाप आपको अर्पित कर देती है तो इसका मतलब आप भी पापी हुए !" 

समुद्र ने कहा "मैं क्यों पापी हुआ, मैं तो सारे पापों को लेकर भाप बना कर बादल बना देता हूँ !"
अब वे लोग बादल के पास गए और कहा "हे बादलो ! समुद्र जो पापों को भाप बनाकर बादल बना देते है,
तो इसका मतलब आप पापी हुए !"
बादलों ने कहा "मैं क्यों पापी हुआ,
मैं तो सारे पापों को वापस पानी बरसा कर धरती पर भेज देता हूँ , जिससे अन्न उपजता है, जिसको मानव खाता है, उस अन्न में जो अन्न जिस मानसिक स्थिति से उगाया जाता है और जिस वृत्ति से प्राप्त किया जाता है, जिस मानसिक अवस्था में खाया जाता है ,
उसी अनुसार मानव की मानसिकता बनती है !"

शायद इसीलिये कहते हैं ..”जैसा खाए अन्न, वैसा बनता मन”

अन्न को जिस वृत्ति ( कमाई ) से प्राप्त किया जाता है और जिस मानसिक अवस्था में खाया जाता है, वैसे ही विचार मानव के बन जाते है !

इसीलिये सदैव भोजन सिमरन और शांत अवस्था मे करना चाहिए और कम से कम अन्न जिस धन से
खरीदा जाए वह धन ईमानदारी एवं श्रम का होना चाहिए !

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