Friday, June 28, 2013

बड़ों को मान-सम्मान देना, सुख और लाभ प।ना है !!

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http://religion.bhaskar.com/dharm/

इंसान के लिए मान-सम्मान की अहमियत प्राणों के बराबर ही मानी गई है। जिस तरह प्राण चले जाने पर शरीर निष्क्रिय हो जाता है। उसी तरह अपमान होने या सम्मान छिन जाने पर जीवित इंसान भी प्राणहीन महसूस करता है। 
यही वजह है कि  हिन्दू धर्म शास्त्रों में सुखी जीवन के लिए मात्र सम्मान बंटोरने के लिये ही कर्म, व्यवहार की सीख नहीं दी गई, बल्कि उससे भी अधिक महत्व सम्मान करने का बताया गया है। 
इसी कड़ी में हिन्दू संस्कृति में बड़ों का सम्मान व सेवा का व्यवहार व संस्कार में बहुत महत्व बताया गया है। तमाम हिन्दू धर्मग्रंथ जैसे रामायण, महाभारत आदि में बड़ों  के सम्मान को सर्वोपरि बताया गया है। इनमें माता-पिता, गुरु, भाई सहित सभी बुजुर्गों के सम्मान के प्रसंगों में बड़ों से मिला आशीर्वाद संकटमोचक तक बताया गया है। 

शास्त्रों में लिखा गया है कि - 
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:। 
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।। 
सरल शब्दों में मतलब है कि जो व्यक्ति हर रोज बड़े-बुजुर्गों के सम्मान में प्रणाम व चरणस्पर्श कर सेवा करता है। उसकी उम्र, विद्या, यश और ताकत बढ़ती जाती है। 
असल में, बड़ों के सम्मान से आयु, यश, बल और विद्या बढऩे के पीछे मनोवैज्ञानिक और व्यावहारिक वजह भी है। चूंकि सम्मान देते समय खुशी का भाव प्रकट होता है, जो देने और लेने वाले के साथ ही आस-पास के माहौल में भी उत्साह, उमंग व ऊर्जा से भरता है। आयु बढ़ाने में प्रसन्नता, ऊर्जा और बेहतर माहौल ही अहम और निर्णायक होते हैं। 
वहीं, सम्मान देना व्यक्ति का गुणी और संस्कारित होने का प्रमाण होने से दूसरे भी उसे सम्मान देते हैं। यही नहीं, ऐसे व्यक्ति को गुणी और ज्ञानी लोगों का संग और आशीर्वाद कई रूपों में प्राप्त होता है। अच्छे और गुणी लोगों का संग जीवन में बहुत बड़ी शक्ति बनकर बेहतर नतीजे तय करता है। 
इस तरह बड़ों का सम्मान आयु, यश, बल और ज्ञान के रूप में बहुत ही सुख और लाभ देता है।
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सोमनाथ मंदिर - सबसे पहला रूद्र ज्योतिर्लिंग

AN INFORMATIVE ARTICLE FROM www.aajtak.com

http://aajtak.intoday.in/story/gujrats-somnath-temple-1-733702.html

हिन्दू धर्म में सोमनाथ का अपना एक अलग ही स्थान है. सोमनाथ मंदिर को 12 ज्योतिर्लिंगों में पहला स्थान प्राप्त है. इतना ही नहीं, कहते हैं महादेव अपने इस दर पर किसी भी भक्त खाली नहीं लौटने देते हैं.
गुजरात के सौराष्ट्र से होकर प्रभास क्षेत्र में कदम रखते ही दूर से ही दिखाई देने लगता है वो ध्वज जो हजारों वर्षों से भगवान सोमनाथ का यशगान करता आ रहा है, जिसे देखकर शिव की शक्ति का, उनकी ख्याति का एहसास होता है. आसमान को स्पर्श करता मंदिर का शिखर देवाधिदेव की महिमा का बखान करता है, जहां अपने भव्य रूप में महादेव भक्तों का कल्याण करते हैं.

एक पौराणिक मान्यता के अनुसार सोमनाथ मंदिर में स्थापित ज्योतिर्लिंग ही द्वादश ज्योतिर्लिंगों में स्थापित सबसे पहला रूद्र ज्योतिर्लिंग है, जहां आकर अपना मन भगवान को अर्पण करने वालों की हर मुराद पूरी होती है. उम्मीदों की खाली झोली लिए श्रद्धालु सुबह से ही भगवान सोमनाथ के दर्शनों के लिए उमड़ने लगते हैं. यहां आने वाले हर श्रद्धालु के मन में य़े अटूट विश्वास होता है कि अब उनकी सारी मुशीबतों का अंत हो जाएगा. कोई अपने पापों के प्रायश्चित के लिए आता है, तो कोई अपने सुहाग की लंबी आयु की मन्नत लेकर सोमनाथ रूप भगवान शिव की आराधना करता है, तो कोई अपने नौनिहाल को भगवान के दरबार में इस उम्मीद के साथ लेकर आता कि भगवान से उसे लंबे और निरोगी जीवन का आशीर्वाद मिल सके. देश दुनिया की सीमा से परे हर रोज हजारों श्रद्दालु यहां पहुंचते हैं.

मंदिर में सबसे पहले भक्तों की भेंट भगवान के प्रिय वाहन नंदी से होती है, जिन्हें देखकर ऐसा लगता है मानो नंदी भगवान के हर भक्त की अगुवायी कर रहे हों. मंदिर के अंदर पहुंच कर एक अलग ही दुनिया में होने का एहसास होता है, जिस तरफ भी नजर पड़ती है भगवान के चमत्कार का कोई न कोई रूप नजर आता है. भगवान के अद्भुत रूप के श्रृंगार का साक्षी बनने का मौका कोई भी भक्त गवाना नहीं चाहता.
मस्तक पर चंद्रमा को धारण किए देवों के देव महादेव का सबसे पंचामृत स्नान कराया जाता है. स्नान के बाद बारी आती के उनके भव्य और अलौकिक श्रृंगार की. शिवलिंग पर चदंन से ऊं अंकित किया जाता है और फिर बेलपत्र अर्पित किया जाता है. शिव भक्ति में डूबे भक्त अपने आराध्य का यह अलौकिक रूप देखते ही रह जाते हैं. उन्हें इस बात का एहसास होने लगता है कि यह जीवन धन्य हो गया. भगवान सोमनाथ की पूजा के बाद मंदिर के पुजारी भगवान के हर रूप की आराधना करते हैं, जिसे देखना अपने आप में सौभाग्य की बात है. अंत में उस महासागर की आरती उतारी जाती है जो सुबह सबसे पहले उठकर अपनी लहरों से भगवान के चरणों का अभिषेक करता है, लेकिन जाते जाते भक्त भगवान के वाहन नंदी जी से अपनी मन्नतें भगवान तक पहुंचाने की सिफारिश करना नहीं भूलते, क्योंकि भक्तों का मानना है कि उनके आराध्य तक उनकी हर गुहार नंदी जी ही पहुंचाते हैं.

सोमनाथ मंदिर की बनावट और मंदिर की दीवारों पर की गई शिल्पकारी शिव भक्ति का उत्कृष्ठ नमूना है. सोमनाथ मंदिर का इतिहास बताता है कि समय-समय पर मंदिर पर कई आक्रमण हुए तोड़-फोड़ की गयी. मंदिर पर कुल 17 बार आक्रमण हुए और हर बार मंदिर का जीर्णोंद्धार कराया गया, लेकिन मंदिर पर किसी भी कालखंड का कोई प्रभाव देखने को नहीं मिलता. कहते हैं सृष्टि की रचना के समय भी यह शिवलिंग मौजूद था ऋग्वेद में भी इसके महत्व का बखान किया गया है. धर्म ग्रन्थों के अनुसार श्राप से मुक्ति पाने के लिए चंद्रमा ने यहां शिव जी की आराधना की थी इसलिए चंद्रमा यानी सोम के नाम पर ही इस मंदिर का नाम पड़ा सोमनाथ.
शिव पुराण के अनुसार प्रचीन काल में राजा दक्ष की 27 कन्याएं थी, जिनका विवाह राजा दक्ष ने चंद्रमा से कर दिया, लेकिन चंद्रमा ने 27 कन्याओं में से केवल एक रोहिणी को ही पत्नी का दर्जा दिया. दक्ष ने दामाद को बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन जब उन्होंने दक्ष की बात नहीं मानी तो उन्होंने चंद्रमा को क्षय रोगी होने का श्राप दे दिया और चंद्रदेव की कांति धूमिल पड़ने लगनी. परेशान होकर चंद्रमा ब्रह्मदेव के पास पहुंचे. चांद यानी सोम की समस्या सुन ब्रह्मा ने उनसे कहा कि उन्हें कुष्ठ रोग से सिर्फ महादेव ही मुक्ति दिला सकते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें सरस्वती के मुहाने पर स्थित अगरब सागर में स्नान कर भगवान शिव की उपासना करनी होगी.

निरोग होने के लिए चंद्रमा ने कठोर तपस्या की, जिससे खुश होकर महादेव ने उन्हें श्राप से मुक्त कर दिया. शिवभक्त चंद्रदेव ने यहां शिव जी का स्वर्ण मंदिर बनवाया और उसमें जो ज्योतिर्लिंग स्थापित हुआ उसका नाम चंद्रमा के स्वामी यानी सोमनाथ पड़ गया. चंद्रमा ने इसी स्थान पर अपनी कांति वापस पायी थी, इसलिए इस क्षेत्र को प्रभास पाटन कहा जाने लगा. यह तीर्थ पितृगणों के श्राद्ध कर्मो के लिए भी प्रसिद्ध है. चैत्र, भाद्र, कार्तिक माह में यहां श्राद्ध करने का विशेष महत्व माना गया है. इन तीन महीनों में यहां श्रद्धालुओं की बडी भीड़ लगती है. इसके अलावा यहां तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है. इस त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्व है.

Thursday, June 27, 2013

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Friday, June 14, 2013

वास्तु शास्त्र -कौन सा समय / दिशा किस काम के लिए होता है शुभ?

BY ASTROLOGER SHRI DAYANAND JI SHASTRI " VISHAL" ON FACEBOOK
अष्ट दिशा एवं गृह वास्तु छः श्लोकी संपूर्ण गृह वास्तु के श्लोकों में कहा गया है:------ 

षोडशदिशा ग्रह वास्तु : ईशान कोण में देवता का गृह, 
पूर्व दिशा में स्नान गृह, अग्नि कोण में रसोई का गृह, 
उत्तर में भंडार गृह, 
अग्निकोण और पूर्व दिशा के बीच में दूध-दही मथने का गृह, 
अग्नि कोण और दक्षिण दिशा के मध्य में घी का गृह, 
दक्षिण दिशा और र्नैत्य कोण के मध्य शौच गृह, 
र्नैत्य कोण व पश्चिम दिशा के मध्य में विद्याभ्यास गृह, 
पश्चिम और वायव्य कोण के मध्य में रति गृह, उत्तर दिशा और ईशान के मध्य में औषधि गृह,
र्नैत्य कोण में सूतिका प्रसव गृह बनाना चाहिए। 
यह सूतिका गृह प्रसव के आसन्न मास में बनाना चाहिए। ऐसा शास्त्र में निश्चित है।
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वास्तु टिप्स: कौन सा समय किस काम के लिए होता है शुभ?

सूर्य, वास्तु शास्त्र को प्रभावित करता है इसलिए जरूरी है कि सूर्य के अनुसार ही हम भवन निर्माण करें तथा अपनी दिनचर्या भी सूर्य के अनुसार ही निर्धारित करें।

1- सूर्योदय से पहले रात्रि 3 से सुबह 6 बजे का समय ब्रह्म मुहूर्त होता है। इस समय सूर्य घर के उत्तर-पूर्वी भाग में होता है। यह समय चिंतन-मनन व अध्ययन के लिए बेहतर होता है।

2- सुबह 6 से 9 बजे तक सूर्य घर के पूर्वी हिस्से में रहता है इसीलिए घर ऐसा बनाएं कि सूर्य की पर्याप्त रौशनी घर में आ सके। 

3- प्रात: 9 से दोपहर 12 बजे तक सूर्य घर के दक्षिण-पूर्व में होता है। यह समय भोजन पकाने के लिए उत्तम है। रसोई घर व स्नानघर गीले होते हैं। ये ऐसी जगह होने चाहिए, जहां सूर्य की रोशनी मिले, तभी वे सुखे और स्वास्थ्यकर हो सकते हैं। 

4- दोपहर 12 से 3 बजे तक विश्रांति काल(आराम का समय) होता है। सूर्य अब दक्षिण में होता है, अत: शयन कक्ष इसी दिशा में बनाना चाहिए।

5- दोपहर 3 से सायं 6 बजे तक अध्ययन और कार्य का समय होता है और सूर्य दक्षिण-पश्चिम भाग में होता है। अत: यह स्थान अध्ययन कक्ष या पुस्तकालय के लिए उत्तम है।

6- सायं 6 से रात 9 तक का समय खाने, बैठने और पढऩे का होता है इसलिए घर का पश्चिमी कोना भोजन या बैठक कक्ष के लिए उत्तम होता है।

7- सायं 9 से मध्य रात्रि के समय सूर्य घर के उत्तर-पश्चिम में होता है। यह स्थान शयन कक्ष के लिए भी उपयोगी है।

8- मध्य रात्रि से तड़के 3 बजे तक सूर्य घर के उत्तरी भाग में होता है। यह समय अत्यंत गोपनीय होता है यह दिशा व समय कीमती वस्तुओं या जेवरात आदि को रखने के लिए उत्तम है।
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वास्तु शास्त्र के अनुसार भवन में सबसे पहले दीवारों की ओर ध्यान देना चाहिए। दीवारें सीधी और एक आकृति वाली होनी चाहिए। कहीं से मोटी और कहीं से पतली दीवार होने पर अशुभ हो सकता है और गृह स्वामी अथवा गृह स्वामी का परिवार कष्ट में रह सकता है। 

अपने-अपने घर से सभी को बेहद लगाव होता है। घर में हमें सुख-शांति, मान-सम्मान और धन-वैभव सहित सभी सुविधाएं प्राप्त होती हैं। किसी भी मकान को घर बनाने के लिए कई प्रयास करने होते हैं, मकान बनने के बाद उससे सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि सही मुहूर्त में गृह प्रवेश किया जाए।

आकाश, वायु, जल, पृथ्वी और अग्नि इन पाॅच तत्वों से मनुष्य ही नहीं समस्त चराचरों का निर्माण हुआ है। हर तत्व की प्रगति को गहनता से समझकर कोटि-कोटि वास्तु सिद्धान्त प्रतिपादित किए गए। समाज में हर तबके के व्यक्ति के लिए मकान की लम्बाई, चैड़ाई, गहराई, ऊँचाई निकटवर्ती वनस्पति, पर्यावरण, देवस्थान, मिट्टी का रंग, गंध विभिन्न कई बिन्दुओं को दृष्टिगत रखते हुए सतत् अनुकरणीय सिद्धान्तों की रचनाएं की ताकि समाज में निम्न, मध्यम और उच्च सभी वर्गों के व्यक्ति स्वस्थ रहते हुए शतायु हो सके। 

अतः जब भी आपका इरादा भवन निर्माण का हो, तो यह शुभ कार्य करने से पहले वास्तु शास्त्र के अनुसार, उसके सभी पहलुओं पर विचार करना उत्तम होता है। जैसे शिलान्यास के लिए मुहूर्त्त काल, स्थिति, लग्न, कोण आदि। उसके बाद मकान में निर्मित किए जाने वाले कक्षों की माप, आंगन, रसोई घर, बैडरूम, कॉमन रूम, गुसलखाना, बॉलकनी आदि की स्थिति पर वास्तु के अनुरूप विचार करके ही भवन निर्माण करना चाहिए।

जीवन के है बस तीन निशान रोटी, कपड़ा और मकान यानि की जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में मकान 33 प्रतिशत पर काबिज है। आदि मानव के सतत् सक्रिय मस्तिष्क की शाश्वत चिंतन प्रक्रियाओं के परिणाम स्वरूप ही विभिन्न प्रकार के विषयों में उसका दैनिक अनुभव जन्य ज्ञान दिनोंदिन परिष्कृत परिमार्जित एवं नैसर्गिंक अभिवृद्धि करता हुआ चन्द्रकालाओं की भाॅति अब तक प्रतिक्षण प्रगतिशील रहा एवं रहेगा।

आजकल चूंकि लोगों के घर छोटे-छोटे होते हैं, पैसे और समय की कमी होती है, इसलिए लोगों के लिए अपने घर को वास्तु के हिसाब से बनवाना संभव नहीं होता। 

जैसा घर मिला, उसकी में गुजारा करना पडता है। अपने घर के वास्तु दोष आप इस तरह ठीक कर सकती हैं-घर की दीवारों पर मल्टीकलर ना कराएं। खसकर लाल और काले रंग को कम से कम यूज में लाएं। 

घर के बडों का कमरा अगर साउथ-वेस्ट में ना हो, तो वे अपना कमरा बदल लें। अगर ऎसा करना संभव ना हो, तो उन्हें अपना बेड इस दिशा में खिसका लेना चाहिए। 

नए घर में प्रवेश से पहले वास्तु शांति अर्थात यज्ञादि धार्मिक कार्य अवश्य करवाने चाहिए। वास्तु शांति कराने से भवन की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है तभी घर शुभ प्रभाव देता है। जिससे जीवन में खुशी व सुख-समृद्धि आती है।

वास्तु शास्त्र के अनुसार मंगलाचरण सहित वाद्य ध्वनि करते हुए कुलदेव की पूजा व वृद्धों का सम्मान करके व ब्राह्मणों को प्रसन्न करके गृह प्रवेश करना चाहिए। 

गृह प्रवेश के पूर्व वास्तु शांति कराना शुभ होता है। इसके लिए शुभ नक्षत्र वार एवं तिथि इस प्रकार हैं-

शुभ वार- सोमवार, बुधवार, गुरुवार, व शुक्रवार शुभ हैं।

शुभ तिथि- शुक्लपक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी एवं त्रयोदशी। 

शुभ नक्षत्र- अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, उत्ताफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, रेवती, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, स्वाति, अनुराधा एवं मघा। 

अन्य विचार- चंद्रबल, लग्न शुद्धि एवं भद्रादि का विचार कर लेना चाहिए। 
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वैवाहिक सुख के लिए विशेष वास्तु उपाय----

किसी ने ठीक ही कहा है कि आपकी प्यारी भारी लाइफ कितनी सफल है इसका अंदाजा आपके बेडरूम को देखकर लगाया जा सकता है। आपकी खुशहाल लाइफ को ज्यादा रोमांचक बनाने में बेडरूम का अपनी ही जगह है। 
बेडबेडरूम यानी आपका पर्सनल रूम सही मायनों में वो जगह है जहां पर पति-पत्नी अपना ज्यादातर वक्त एक-दूसरे के साथ बिताते हैं। बेडरूम ही उनके प्यार, दुलार, लडाई, झगडों जैसी खट्टी-मीठी यादों को सहेज कर रखता है। 

बेडरूम के MIRROR में नहीं दिखना चाहिए पति-पत्नी के निजी काम, क्योंकि...

--शायद ही ऐसा कोई घर होगा जहां आइना या मिरर न हो लेकिन यदि मिरर बेडरूम में भी है तो कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है। यदि पति-पत्नी मिरर के संबंध में लापरवाही बरतते हैं तो यह उनके वैवाहिक सुख के लिए अच्छा नहीं है।
---पति-पत्नी का जीवन सुखी और प्यारभरा हो इसलिए कई उपयोगी टिप्स बताई गई हैं। इन बातों को अपनाने से वैवाहिक जीवन में खुशियां और संपन्नता बनी रहती है। पति-पत्नी अपने बीच किसी तीसरे व्यक्ति को हरगिज बर्दाश्त नहीं कर सकते लेकिन कुछ लोगों को ऐसी परिस्थिति का भी सामना करना पड़ जाता है।
----वास्तु के अनुसार ऐसी परिस्थिति उत्पन्न न हो इसके लिए एक महत्वपूर्ण टिप्स दी गई है। पति-पत्नी के रिश्तों पर बेडरूम की व्यवस्था का गहरा प्रभाव पड़ता है। बेडरूम की हर वस्तु दोनों के रिश्तों को प्रभावित करती है।


-----यदि पति-पत्नी के कमरे में कोई अशुभ प्रभाव देने वाली वस्तु रखी है तो इनके बीच तनाव उत्पन्न होना स्वाभाविक ही है। किसी के भी बेडरूम में यदि कोई दर्पण लगा है और उस दर्पण में बेड या पलंग का प्रतिबिंब दिखता है तो यह रिश्तों में खटास पैदा कर सकता है।


----वैवाहिक जीवन को सुखी बनाए रखने के लिए बेडरूम में सोते समय दर्पण को ढंककर रखना चाहिए। इसके अलावा बेडरूम में कहीं भी कोई शीशा अस्पष्ट या टूटा हुआ या चटका हुआ नहीं होना चाहिए। यह भी पति-पत्नी के रिश्तों में दरार पैदा कर सकता है।


----बेड के सामने यदि कोई दर्पण हो तो पति-पत्नी को चाहिए कि रात को सोते समय उस शीशे को ढंक दें, उस पर कोई पर्दा डालकर रखें। वास्तु के अनुसार सोते समय दर्पण में पति-पत्नी का प्रतिबिंब दिखाई देने से उनके जीवन में कई प्रकार की परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं। 


----ऐसे दर्पण के प्रभाव से दोनों के बीच तनाव इतना बढ़ जाता है कि वे घर के बाहर शांति तलाशने लगते हैं और ऐसे में पति-पत्नी के बीच किसी अन्य व्यक्ति का प्रवेश होने की संभावनाएं काफी बढ़ जाती हैं।


----जोड़े में मछलियां रखना भी बहुत अच्छा उपाय है। इससे ऐसी सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है जिससे पति-पत्नी में आकर्षण बढ़ता है और दांपत्य जीवन में सामंजस्य बना रहता है।


इस उपाय से तलाक जैसी सभी संभावनाएं समाप्त हो जात है। पति-पत्नी के बीच आपसी तालमेल बना रहता है। इसे भोजन करने वाली जगह पर रखना चाहिए।


----वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की हर चीज का प्रभाव हमारी सोच-विचार पर पड़ता है। ऐसे में घर में वहीं वस्तुएं रखना चाहिए जिनसे घर के सदस्यों के विचार शुद्ध रहे और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त हो।


टूटी-फूटी और बेकार तस्वीर या मूर्तियां नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करती है जिससे घर का वातावरण भी वैसा ही हो जाता है। सदस्यों का मन अशांत रहता है और घर में परेशानियां पैदा होती हैं। परिवार में क्लेश, पति-पत्नी के रिश्ते में तनाव भी उत्पन्न हो जाता है। साथ ही घर में धन के प्रवाह में रुकावट
आती है।

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