Tuesday, March 21, 2017

इस आलेख को अन्तिम शब्द तक हर बच्चे, बुढे और जवान को पढना चाहिये.


ये पूरा आलेख दैनिक भास्कर से लिया गया है, तथा इस आलेख को अन्तिम शब्द तक हर बच्चे, बुढे और जवान को पढना चाहिये.   यदि आपने भी उनके अनुभव, विचार, साद्गी और सह्रदयता को अपनाने की कोशिश की तो आप अपना व्यक्तित्व तथा जीवन दोनों बदल सकते है, 


(पूर्व राष्ट्रपति डॉएपीजे अब्दुल कलाम ने अपने किताबों के को-ऑथर  सस्टेनेबल डेवलपमेंट एक्सपर्ट सृजन पाल सिंह के साथ मिलकर यह लेख लिखा था। श्री सिंह ने ही यह लेख दैनिक भास्कर को उपलब्ध कराया था। संभवतयह डॉ.कलाम का अंतिम लेख है।)
हमारे पास वह सब कुछ हैजो हमें ऐसे राष्ट्र में रूपांतरित कर सकता है कि दुनिया के देशों में हम गर्व से सिर उठाकर चल सके। वैभव के शिखर पर जाने का रोडमैप क्या हैशोधडिजाइनविकासउत्पादन और फिर सच्चे अर्थों में भारत में निर्मिति। यही है मैक इन इंडिया को साकार करने का अर्थ। हमारे पास ऐसी बौद्धिक क्षमता है कि जो चीज हमें दूसरे देश नहीं देते हम उन्हें विकसित कर लेते हैं। दुनिया के 15 बड़े निर्यातक देशों में मैन्यूफैक्चरिंग की सबसे कम लागत हमारे यहां है और उद्यमशीलता के मामले में हमारी बराबरी अमेरिका की सिलिकॉन वैली से होती है। जाहिर है नौजवानों के लिए व्यापक अवसर हैं। आइए इन क्षमताओं को विस्तार से जानें।

वर्ष 1975 में इसरो में हमें एक नया डिवाइस विकसित करने के लिए बेरिलियम डायफ्राम चाहिए था। आज आपको यह डायफ्राम ज्यादातर ऊंचे दर्जे के स्पीकर में दिखाई देगालेकिन चार दशक पहले कुछ ही देशों में ऐसे डायफ्राम बनाने की काबिलियत थी। हमने अमेरिका की एक कंपनी से संपर्क किया। कंपनी अच्छा ऑर्डर देखते हुए खुशी-खुशी राजी हो गई और कागजात तैयार कर लिए गए। जब हम लेन-देन पूरा करने ही वाले थे कि उनके एग्ज़ीक्यूटिव का फोन आया कि वे यह सौदा नहीं कर सकते। हमें पता चला कि अमेरिकी सरकार ने बिक्री रोक दी हैक्योंकि वही मटेरियल उनकी मिसाइलों में इस्तेमाल किया जाता था। चूंकि हमें डायफ्राम की बहुत जरूरत थीहमने इसके बारे में जानना शुरू किया।

अमेरिका के बेरिलियम डायफ्राम जापान में बनी बेरिलियम छड़ों से बनते थेजिन्हें प्रशांत महासागर के पार भेजा जाता था। फिर और भी चौंकाने वाली जानकारी मिली। बेरिलियम एक दुर्लभ तत्व है और मुट्ठीभर देशों के पास ही इसका कच्चा माल था। बेरिलियम के शीर्ष चार उत्पादकों में भारत भी था। तथ्य तो यह था कि बेरिलियम छड़ें बनाने वाली जापानी कंपनी ने कच्चा माल भारत से ही आयात किया था। हमें यह जानकर दुख हुआ कि एक ऐसा पदार्थ जिसका कच्चा माल खासतौर पर हमारे पास हैवहीं हमें देने से इनकार कर दिया गया। जल्दी ही शीर्ष चार शोध प्रयोगशालाओं की समिति बनाई गई और उसे बेरिलियम डायफ्राम भारत में बनाने की चुनौती दी गई। चार माह के वक्त में हमें कामयाबी मिल गई।

अगस्त 2014 में बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप ने दुनिया के विभिन्न देशों में उत्पादन की लागत की तुलना कीजिसमें श्रम लागतबिजली और प्राकृतिक गैस जैसे तत्वों का ध्यान रखा गया था। हमने रिपोर्ट का विश्लेषण किया तो चौंकाने वाला ट्रेंड सामने आया। मसलनदुनिया सबसे बड़ा निर्यातक चीन उत्पादन या मैन्यूफेक्चरिंग के लिए निर्यात की दृष्टि से 15वें स्थान पर मौजूद भारत की तुलना में 10 अधिक महंगा था। दूसरे और तीसरे सबसे बड़े निर्यातक क्रमशजर्मनी  अमेरिका मैन्यूफेक्चरिंग के लिए क्रमश: 40 से 15 फीसदी महंगे थे।

वास्तविकता तो यह थी कि वे सभी 14 देश जो भारत से आगे थे उत्पादन के लिए भारत से महंगे थे और शीर्ष 25 निर्यातक देशों में 21वीं पायदान का इंडोनेशिया ही उत्पादन के मामले में भारत से सस्ता था। आदर्श स्थिति तो यही होनी चाहिए थी कि अंग्रेजी बोलने वाले सस्ते श्रम बल के साथ भारत विश्व अर्थव्यवस्था की उत्पादन  निर्यात राजधानी होनी चाहिए। ठीक चीन की तरह और उसी को वैश्विक माल की मात्रा  कीमतें तय करना चाहिए। इसमें तीन बाधाएं हैंपहला तो भारत में बिज़नेस करने में आने वाली प्रक्रियागत कठिनाइयां (142वां स्थान), कमजोर आधारभूत ढांचा खासौतर पर सड़कें ( 59वां स्थानऔर नीतिगत मुद्दे  भ्रष्टाचार (85वां स्थान)

नवंबर 2014 की शुरुआत में हम चीन गएजहां हमने उनकी सफलता और उनके लिए भीतर से मौजूद खतरों को समझने का प्रयास कियाखासतौर पर युवा छात्रों के दृष्टिकोण से। तीन चीजें उभरकर सामने आई। पहला  उजला पहलू कि चीन की एडवान्स प्लानिंग बहुत अच्छी है। विज़न केंद्रीय स्तर पर तय किया जाता है और प्रशासन के एकदम निचले स्तर शुरुआत कर माइक्रो प्लान विकसित किए जाते हैं। प्रत्येक प्रशासनिक इकाई को लक्ष्य दिया जाता है और उसी से यह तय होता है कि उन्हें हटाया जाएगा या पदोन्नति मिलेगी। दूसरा थोड़ा अंधेरा पहलू यह है कि चीन उन प्रमुख शहरों में होते पर्यावरण नुकसान के दबाव में परेशान हैजिनकी संख्या बहुत बढ़ गई है।
हाल की आर्थिक दौलत ने उन्हें ऊर्जा की ऊंची खपत और प्रदूषण फैलाने वाला बना दिया है। पिछले दो दशकों की एक बच्चे की नीति भी श्रम बल की कमी के रूप में सामने आई है। श्रम बल की प्रमुखता वाला कोई भी बिज़नेस प्लान सरसरीतौर पर खारिज कर दिया जाता है (चीन में हर बिज़नेस प्लान को सरकारी मंजूरी लगती है) तीसराचीन तथा उसकी कम्युनिस्ट सरकार देख रहे हैं कि इनोवेटिव डिज़ाइनिंग  आइडिया के क्षेत्र में एकदम खालीपन  गया है।
मौजूदा चीजों को चुनौती देने के लिए इनोवेशन तो अपरिहार्य हैलेकिन यह सरकारी की कार्यशैली के ठीक विपरीत होता है। हम जिन युवाओं से मिले उनमें यही प्रमुख चिंता थी। अक्टूबर 2014 में हमारे प्रधानमंत्री ने ‘मेक इन इंडिया’ का आह्वान किया। यह संकल्प और उसे उद्योग जगत से मिले उत्साहवर्द्धक प्रतिसाद के मामले में इसकी तुलना सिर्फ 1990 के दशक में प्रधानमंत्री नरसिंह राव के उदारीकरण के आह्वान से ही की जा सकती है।
भारत विश्व अर्थव्यवस्था की उत्पादन और निर्यात राजधानी होनी चाहिए
तथ्य तो यह था कि बेरिलियम छड़ें बनाने वाली जापानी कंपनी ने कच्चा माल भारत से ही आयात किया था। हमें यह जानकर दुख हुआ कि एक ऐसा पदार्थ जिसका कच्चा माल खासतौर पर हमारे पास हैवही हमें देने से इनकार कर दिया गया। जल्दी ही शीर्ष चार शोध प्रयोगशालाओं की समिति बनाई गई और उसे बेरिलियम डायफ्राम भारत में बनाने की चुनौती दी गई। चार माह के वक्त में हमें कामयाबी मिल गई।हमने रिपोर्ट का विश्लेषण किया तो चौंकाने वाला ट्रेंड सामने आया। मसलनदुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक चीन उत्पादन या मैन्युफेक्चरिंग के लिए निर्यात की दृष्टि से 15वें स्थान पर मौजूद भारत की तुलना में 10 प्रतिशत अधिक महंगा था। दूसरे और तीसरे सबसे बड़े निर्यातक क्रमशजर्मनी  अमेरिका मैन्युफेक्चरिंग के लिए क्रमश: 40  15 फीसदी महंगे थे।
वास्तविकता तो यह थी कि वे सभी 14 देश जो भारत से आगे थेउत्पादन के लिए भारत से महंगे थे और शीर्ष 25 निर्यातक देशों में 21वीं पायदान का इंडोनेशिया ही उत्पादन के मामले में भारत से सस्ता था। आदर्श स्थिति तो यही होनी चाहिए थी कि अंग्रेजी बोलने वाले सस्ते श्रम बल के साथ भारत विश्व अर्थव्यवस्था की उत्पादन  निर्यात राजधानी होनी चाहिए। नवंबर 2014 की शुरुआत में हम चीन गएजहां हमने उनकी सफलता और उनके लिए भीतर से मौजूद खतरों को समझने का प्रयास कियाखासतौर पर युवा छात्रों के दृष्टिकोण से। तीन चीजें उभरकर सामने आईं। पहला  उजला पहलू कि चीन की एडवान्स प्लानिंग बहुत अच्छी है।
विज़न केंद्रीय स्तर पर तय किया जाता है और प्रशासन के एकदम निचले स्तर पर शुरुआत कर माइक्रो प्लान विकसित किए जाते हैं। प्रत्येक प्रशासनिक इकाई को लक्ष्य दिया जाता है और उसी से यह तय होता है कि उन्हें हटाया जाएगा या पदोन्नति मिलेगी। दूसरा थोड़ा अंधेरा पहलू यह है कि चीन उन प्रमुख शहरों में होते पर्यावरण नुकसान के दबाव से परेशान हैजिनकी संख्या बहुत बढ़ गई है। हाल की आर्थिक दौलत ने उन्हें ऊर्जा की ऊंची खपत और प्रदूषण फैलाने वाला बना दिया है। पिछले दो दशकों की एक बच्चे की नीति भी श्रम बल की कमी के रूप में सामने आई है। श्रम बल की प्रमुखता वाला कोई भी बिज़नेस प्लान सरसरीतौर पर खारिज कर दिया जाता है (चीन में हर बिज़नेस प्लान को सरकारी मंजूरी लगती है)
तीसराचीन तथा उसकी कम्युनिस्ट सरकार देख रहे हैं कि इनोवेटिव डिज़ाइनिंग  आइडिया के क्षेत्र में एकदम खालीपन  गया है। अक्टूबर 2014 में हमारे प्रधानमंत्री ने ‘मेक इन इंडिया’ का आह्वान किया। यह संकल्प और उसे उद्योग जगत से मिले उत्साहवर्द्धक प्रतिसाद के मामले में इसकी तुलना सिर्फ 1990 के दशक में प्रधानमंत्री नरसिंह राव के उदारीकरण के आह्वान से ही की जा सकती है। अब महत्वपूर्ण सवाल तो यही है कि मेक इन इंडिया को साकार कैसे करेंइसका रोडमैप क्या होऔर सबसे बड़ी बात मेक इन इंडिया के आगे शोधडिजाइनविकासउत्पादन और फिर सच्चे अर्थों में भारत में निर्मिति कैसे होशेष दुनिया की तुलना में भारत को इसकी 50 करोड़ युवा आबादी का फायदा है। अनुमान है कि 2016 तक कुशल श्रम बल में जोड़ा गया हर चौथा व्यक्ति भारतीय हो सकता हैलेकिन यह अनिवार्य है कि श्रम बल के रोजगार पाने की काबिलियत सुनिश्चित की जाए। जाहिर है नौजवानों के सामने बहुत बड़ा मौका है।

नई दिल्ली. पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम 83 साल की उम्र में भी एकदम एक्टिव थे। जीवन में सादगी का सिद्धांत भी उन्होंने अंतिम वक् तक निभाया। सोमवार को अंतिम सफर पर भी वह गुवाहाटी से शिलांग कार में गए। पहाड़ी रास्तों पर 110 किलोमीटर का यह सफर उन्होंने दोपहर 2.30 बजे शुरू किया था और शाम 5.45 बजे वह‍ शिलांग में आईआईएम के गेस् हाउस पहुंचे थे। (डॉकलाम के आखिरी शब् क्या थेयहां पढ़ें)
जवान से आखिरी मुलाकात
शिलांग में डॉकलाम ने एक जवान से मिलने की इच्छा जताई थी। वह जवान उनकी पायलट व्हीकल पर ड्यूटी पर था। रास्ते में वह कलाम की सिक्युरिटी में ढाई घंटे तक खड़ा था। डॉएपीजे अब्दुल कलाम के ट्विटर अकाउंट से इस मुलाकात की जानकारी दी गई है और फोटो भी शेयर की गई है। In memoryof Dr.Kalam ‏@APJAbdulKalam ने ट्वीट किया, ''पायलट व्हीकल में करीब ढाई घंटे तक खड़े रहने वाले इस जवान से डॉकलाम ने मिलना चाहा था। यह उनकी अंतिम मुलाकात थी।'' बता दें कि सोमवार को शिलांग में लेक्चर देते हुए डॉ कलाम को दिल का दौरा पड़ा था जिसके बाद अस्पताल में उनका निधन हो गया।
क्यों जवान से मिलना चाहते थे डॉकलाम
कलाम के सहयोगी सृजन पाल सिंह ने अपने फेसबुक पोस्ट में इस पूरी घटना का जिक्र किया है। उनके मुताबिक, '' गुवाहाटी से शिलांग जाते हुए हमारे काफिले में 6-7 कारें थीं। हम दूसरे नंबर की कार में थे। हमारे आगे एक ओपेन जिप्सी चल रही थी जिसमें तीन जवान थे। उसमें से दो जवान अगल-बगल बैठे थे लेकिन तीसरा हाथ में बंदूक लिए खड़ा था। एक घंटे की यात्रा के बाद डॉकलाम ने कहावह खड़ा क्यों हैवह थक जाएगा। यह तो एक सजा जैसी है। क्या आप वायरलेस से उसे बैठने का संदेश दे सकते हैं।'' सृजन ने लिखा है कि उसके बाद उन्होंने रेडियो ट्रांसमिशन से मैजेस देने की कोशिश की लेकिन संपर्क नहीं हो पाया। पोस्ट के मुताबिक, ''अगले डेढ़ घंटे तक वे (कलाममुझे तीन बार उस जवान को बैठने के लिए रिमाइंड कराते रहे। इसके बाद भी जब हम जवान को बैठाने में सफल नहीं हुए तो उन्होंने अंतिम में मुझे कहा कि वह जवान से मुलाकात कर के उसका शुक्रिया अदा करना चाहते हैं।'' इसी के बाद जब वे आईआईएम शिलांग पहुंचे तो मैंने उस जवान से मुलाकात कराई। डॉकलाम ने उस जवान से हाथ मिलाते हुए पूछा था, ''आप थक गए होंगेक्या कुछ खाना चाहेंगे। मुझे माफ करनाआपको अतनी देर तक मेरे कारण खड़ा रहना पड़ा।'' यह सुन कर जवान सरप्राइज रह गया और उसने केवल इतना कहासरआपके लिए तो 6 घंटे तक भी खड़े रहेंगे।
शिलांग में सोमवार को अस्पताल में डॉकलाम के निधन के बाद खबर मिलते ही हजारों लोग हॉस्पिटल पहुंच गए। जैसे ही उनका पार्थिव शरीर हॉस्पिटल के बाहर लाया गयालोगों की आंखों से आंसू झलक पड़े। लोगों ने 'कलाम जिंदाबाद',‘कलाम अमर रहे’ के नारे लगाए। पार्थिव शरीर को हॉस्पिटल से बाहर ला रहे सेना के जवानों और अफसरों की आंखें भी नम थीं। देर रात तक शिलांग में लोग हॉस्पिटल के बाहर कलाम के प्रति अपनी श्रद्धांजलि देने के लिए जुटे रहे।
मंगलवार की सुबह उनका पार्थिव शरीर शिलांग से गुवाहाटी लाया गया तो अंतिम दर्शन के लिए हजारों की संख्या में लोग मौजूद थे। दिल्ली में भी उनका पार्थिव शरीर उनके घर पहुंचने से पहले ही वहां हजारों की संख्या में लोग जमा हो गए। (पढ़ें ताजा अपडेट्स)

शिलांग. पूर्व राष्ट्रपति डॉएपीजे अब्दुल कलाम का पार्थिव शरीर मंगलवार दोपहर गुवाहाटी से दिल्ली एयरपोर्ट पहुंच गया। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें एयरपोर्ट पर श्रद्धांजलि दी। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और तीनों सेनाओं के चीफ ने भी श्रद्धांजलि दी। इसके बादउनका पार्थिव शरीर 10 राजाजी मार्ग स्थित उनके सरकारी आवास ले जाया गया। शाम चार बजे से लोग यहां उनके अंतिम दर्शन कर सकेंगे। कलाम के पार्थिव शरीर को जब उनके आधिकारिक आवास ले जाया जा रहा था तो रास्ते में बड़ी संख्या में स्कूली बच्चों ने उनको अंतिम विदाई दी। बता दें कि कलाम का का अंतिम संस्कार उनके गृह नगर रामेश्वरम में होगा। सोमवार शाम मेघालय की राजधानी शिलांग में लेक्चर देते वक् मंच पर ही दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया था।
कलाम का पार्थिव शरीर 10 राजाजी मार्ग स्थित उनके सरकारी आवास पहुंचा।
स्कूली बच्चे सड़कों पर नजर आए। कलाम को आखिरी विदाई दी।
एयरपोर्ट से राजाजी मार्ग के सरकारी आवास पर ले जाया जा रहा है पार्थिव शरीर। आम लोग 4 बजे से कर सकेंगे अंतिम दर्शन।
पीएम नरेंद्र मोदी ने दी श्रद्धांजलि।
रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने एयरपोर्ट पर डॉकलाम को श्रद्धांजलि दी।
एयरपोर्ट पर दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवालएलजी नजीब जंग ने भी दी श्रद्धांजलि।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भी पहुंच रहे हैं एयरपोर्ट।
रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर एयरपोर्ट पहुंचे।
कुछ ही देर में दिल्ली एयरपोर्ट पर लैंड करेगा डॉकलाम का पार्थिव शरीर ले कर  रहा एयरफोर्स का प्लेन (C-130 J Super Hercules)
मंगलवार को संसद शुरू होते ही दोनों सदनों में डॉकलाम को श्रद्धांजिल दी गई। श्रद्धांजलि देने के बाद संसद की कार्यवाही को 30 जुलाई तक के लिए स्थगित कर दी गई।
गृह नगर रामेश्वरम में डॉकलाम का कल अंतिम संस्कार किया जाएगा।
राष्ट्रीय अविष्कार अभियान से जुड़ेगा डॉकलाम का नाम। एचआरडी मिनिस्टर स्मृति ईरानी ने किया एलान। इस अभियान की शुरुआत कुछ दिन पहले डॉकलम ने ही की थी।
बीजेपी के पार्लियमेंट्री बोर्ड की बैठक दी गई डॉकलाम को श्रद्धांजलि।
* दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहादेश के आम नागरिक के प्रेसिडेंट थे कलाम। उनके निधन से भारी क्षति।
* रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और तीनों सेनाओं के चीफ भी पहुंचेगे एयरपोर्ट
* 12.30 बजे एयरपोर्ट पर लैंड करेगा एयरफोर्स का प्लेन।
दिल्ली के 10 राजाजी मार्ग पर रखा जाएगा डॉकलाम का पार्थिव शरीरघर के बाहर बढ़ाई गई सुरक्षा। पहुंचे सेना के जवान।
* संसद में दी जाएगी डॉकलाम को श्रद्धांजलि।
कैबिनेट के साथ पीएम करेंगे बैठक।
गुवाहाटी में सीएम तरुण गोगोई ने दी श्रद्धांजलि।
देश में सात दिनों का राष्ट्रीय शोक पर मंगलवार को खुले रहेंगे सारे सरकारी ऑफिस।
कैसे हुआ निधन
सोमवार शाम 83 साल के डॉकलाम इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंटशिलांग में 'पृथ्वी को रहने लायक कैसे बेहतर बनाया जाएटॉपिक पर लेक्चर दे रहे थे। उन्होंने लेक्चर शुरू ही किया था कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा। उन्हें बेथनी अस्पताल में भर्ती कराया गया। लेकिन शाम 7.45 बजे अस्पताल के डायरेक्टर डॉजॉन ने बताया कि डॉकलाम नहीं रहे। डॉजॉन ने बताया कि 7 बजे उन्हें अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराया गया था। (डॉकलाम के 11 सिद्धान्तजिससे सीखा पूरे देश ने)
सात दिन का राष्ट्रीय शोक
गृह मंत्रालय के अनुसार कलाम के सम्मान में 27 जुलाई से 02 अगस्त 2015 तक राष्ट्रीय शोक रहेगा। इस दौरान देशभर में सभी भवनों पर राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा। इस दौरान सरकारी स्तर पर किसी भी तरह के मनोरंजन कार्यक्रम या समारोह का आयोजन नहीं किया जाएगा। (वैज्ञानिक बनने से पहले टूटा था एयरफोर्स में जाने का डॉकलाम का सपना)
पृथ्वी पर लेक्चर देने गए थे शिलांग
IIM, शिलॉन्ग में डॉकलाम लिवेबल प्लैनेट अर्थ सब्जेक्ट पर लेक्चर दे रहे थे। इस बारे में उन्होंने ट्वीट भी किया थाजो उनका आखिरी ट्वीट साबित हुआ। उनका ट्वीट ये था-
@APJAbdulKalam 
Going to Shillong.. to take course on Livable Planet earth at iim.
With @srijanpalsingh and Sharma.
कौन थे कलाम
15 अक्टूबर, 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में जन्मे कलाम ने 2002 में देश के 11 वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी। वे मिसाइलमैन के रूप में भी मशहूर रहे। (देखिएडॉकलाम के RARE PHOTOS)
डॉकलाम लम्बे समय तक डीआरडीओ से जुड़े रहे।
देश के पहले स्वदेशी उपग्रह पीएसएलवी-3 के विकास में अहम योगदान दिया था।
पृथ्वी और अग्नि जैसी मिसाइलें बनाने में बड़ा रोल।
- 1998 के पोकरण परमाणु परीक्षण को लीड किया।
- 1997 में देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजे गए।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वैज्ञानिक सलाहकार रहे।
सोशल मीडिया पर सक्रिय थे।
खाली समय में संगीत सुनने का शौक था।
बचपन में पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए अखबार तक बेचा।
ताउम्र अविवाहित रहे।
एक सपना रह गया अधूरा
डॉकलाम का एक सपना अधूरा रह गया। वह इन दिनों एक किताब लिख रहे थे। किताब के सह लेखक व्ही पोनराज ने बताया कि कलाम तमिल भाषा में एक किताब लिख रहे थे। इस किताब के सात अध्याय लिखे जा चुके हैं। इस किताब को विजन 2020 का सामानांतर संस्करण है। इसमें तमिलनाडु के विकास पर विस्तार से बताया गया है। सह लेखक पोनराज कहते हैं कि कलाम से उनकी किताब के संबंध में 23 जुलाई को अंतिम बार बातचीत हुई थी।
नई दिल्ली. डॉएपीजे अब्दुल कलाम आईआईएम शिलॉन्ग के स्टूडेंट्स से अपने लेक्चर के बाद एक सवाल पूछ पातेइससे पहले ही वे बेहोश हो गए और फिर स्टूडेंट्स के बीच नहीं लौट सके। पूर्व राष्ट्रपति डॉकलाम के सोमवार को अचानक यूं चले जाने के बाद छह साल से उनके पर्सनल असिस्टेंट रह सृजन पाल सिंह सोमवार की रात बेचैन रहे। उन्होंने फेसबुक पर एक पोस्ट लिखी। इसमें उन्होंने डॉकलाम के आखिरी दिन का ब्योरा दिया और आठ किस्से बताए। साथ ही वह सवाल भी बताया जो डॉकलाम के मन में था और जिसे वे आईआईएम स्टूडेंट्स से पूछना चाहते थे। पढ़ें सृजनपाल सिंह का दिया पूरा ब्योरा-
वह आखिरी सूट...
‘‘ कई घंटे बीत चुके हैंहमने एकदूसरे से बात नहीं की है। ...नींद कोसों दूर है। यादें रह-रहकर  रही हैं। बीच-बीच में आंसू भी। 27 जुलाई को हमारा दिन दोपहर 12 बजे शुरू हुआ था। हमने गुवाहाटी की फ्लाइट ली। डॉकलाम 1 अौर मैं 1सी सीट पर था। वे डार्क कॉलर वाला कलाम सूट पहने हुए थे। मैंने उन्हें कॉम्प्लीमेंट किया। कहानाइस कलरमुझे क्या पता था कि डॉकलाम को मैं इस सूट में दोबारा नहीं देख पाऊंगा। ’’
‘‘ मानसून की बारिश के बीच हम ढाई घंटे में गुवाहाटी पहुंचे। खराब मौसम के कारण जब प्लेन झटका खाता था और मैं भी कांपने लगता था तो डॉकलाम विंडो गिरा देते थे और कहते थेअब तुम्हें डर नहीं लगेगा। गुवाहाटी पहुंचने के बाद भी ढाई घंटे का सफर तय कर हम शिलॉन्ग पहुंचे। पांच घंटे के इस सफर के दौरान हम कई मुद्दों पर बात कीडिस्कस कियाडिबेट किया। हमने बीते छह साल में कितने ही सैकड़ों घंटों की फ्लाइट और ड्राइव एकसाथ की थी। हर सफर की तरह यह भी खास था। ’’
किस्सा 1 : ऐसे तो 30 साल में रहने लायक भी नहीं बचेगी ये धरती...
‘‘ इस सफर में हमने तीन मुद्दों पर चर्चा की। सबसे पहलेडॉकलाम पंजाब में हुए हमलों को लेकर काफी फिक्रमंद थे। बेकसूरों की जान जाने की वजह से वे दुखी थे। आईआईएम शिलॉन्ग में उनके लेक्चर का टॉपिक थाक्रिएटिंग  लिवेबल प्लेनेट अर्थ। उन्होंने इसे पंजाब में हुए हमलों से जोड़कर सोचा और कहाऐसा लगता है कि पॉल्यूशन की तरह इंसान भी इस धरती पर मौजूद जीवन के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गए हैं। हमने डिस्कस किया कि कैसे हिंसापॉल्यूशन और इंसानों की बेलगाम हरकतों के कारण एक दिन यह पृथ्वी हमसे छूट जाएगी। डॉकलाम ने कहाशायद 30 साल में यह रहने लायक नहीं बचेगी। तुम लोगों को इस बारे में कुछ करना चाहिए। आखिर इसमें तुम्हारा ही फ्यूचर छुपा है। ’’
किस्सा 2 : स्टूडेंट्स से वह आखिरी सवाल जो डॉकलाम पूछ ही  सके...
‘‘ दूसरा टॉपिक नेशनल था। डॉकलाम बीते दो दिन से इस बात को लेकर फिक्रमंद थे कि पार्लियामेंट में बार-बार हंगामा हो रहा है। उन्होंने कहामैंने अपने टेन्योर में दो अलग-अलग सरकारें देखीं। इसके बाद का भी वक्त देखा। यह हंगामा लगातार होता है। यह सही नहीं है। मैं वाकई में ऐसा तरीका ढूंढना चाहता हूं जिससे पार्लियामेंट सिर्फ डेवलपमेंटल पॉलिटिक्स पर ही काम करे। इसके बाद उन्होंने मुझसे आईआईएम शिलॉन्ग के स्टूडेंट्स के लिए सरप्राइज असाइनमेंट क्वेश्चन तैयार करने को कहा। यह सवाल वे अपने लेक्चर के बाद स्टूडेंट्स से पूछना चाहते थे। वे चाहते थे कि स्टूडेंट्स ही ये सुझाएं कि पार्लियामेंट को ज्यादा प्रोडक्टिव और वाइब्रेंट बनाने के क्या इनोवेटिक तरीके हो सकते हैंलेकिन इसके बाद वे फिर मुद्दे पर लौटे। बोलेमैं उनसे कैसे सॉल्यूशन मांग सकता हूं। जब खुद मेरे पास ही सॉल्यूशन ही नहीं है। अगले एक घंटे तक हम इस बारे में कई ऑप्शंस पर चर्चा करते रहे। वे चाहते थे कि यह सवाल-जवाब और डिस्क्शन उनकी अगली बुक ‘एडवांटेज इंडिया’ में भी आए। ’’
किस्सा : 3 इतने विनम्र की तीन बार कमांडो से बैठने को कहा...
‘‘ डॉकलाम के साथ आखिरी सफर में तीसरा किस्सा उनकी विनम्रता का है। हम 6 से 7 कारों के काफिले में चल रहे थे। डॉकलाम और मैं दूसरे नंबर की कार में थे। हमारे आगे एक ओपन जिप्सी चल रही थी। उसमें तीन जवान थे। दो जवान बैठे थे। एकजवान हाथ में गन लेकर खड़ा था। एक घंटे के सफर के बाद डॉकलाम ने सवाल कियावह खड़ा क्यों हैवह थक जाएगा। ऐसा करना तो सजा जैसा है। क्या तुम वायरलेस पर मैसेज भेजकर उससे बैठने को कहोगेमैंने डॉकलाम से कहा कि शायद उस जवान को सिक्युरिटी के मद्देनजर खड़े ही रहने को कहा गया होगा। लेकिन वे नहीं माने। फिर मैंने रेडियो मैसेज भेजने की कोशिश की। लेकिन मैसेज नहीं पहुंचा। अगले डेढ़ घंटे तक डॉकलाम ने तीन बार मुझे याद दिलाकर कहा कि मैं हाथ से इशारा कर उसे बैठने को कहूं। आखिरकार जब बात नहीं बनी तो उन्होंने कहा कि मैं उससे मिलकर शुक्रिया अदा करना चाहता हूं। ’’
‘‘ बाद में जब हम आईआईएम शिलॉन्ग पहुंचे तो मैंने सिक्युरिटी स्टाफ से पूछा और उस जवान को बुलाया। उसे मैं डॉकलाम के कमरे में ले गया। डॉकलाम ने जवान से हाथ मिलाया और शुक्रिया कहा। उन्होंने जवान से पूछाक्या तुम थक गए होक्या तुम कुछ खाना चाहाेगेमैं माफी चाहता हूं कि तुम्हें मेरी वजह से इतनी देर खड़े रहना पड़ा। ...इस बात से जवान को काफी ताज्जुब हुआ। वह कुछ बोल नहीं पाया। उसने इतना ही कहासरआपके लिए तो 6 घंटे भी खड़े रहेंगे। ’’
किस्सा : 4. स्टूडेंट्स को कभी इंतजार मत कराओ...
इसके बाद हम लेक्चर हॉल गए। कलाम लेक्चर के लिए लेट नहीं होना चाहते थे। वो हमेशा कहते थे, “स्टूडेंट्स को इंतजार मत कराओ मैंने जल्दी से उनका माइक सेट किया और लेक्चर के बारे में स्डूडेंट्स को थोड़ी जानकारी दी और वापस आकर अपने कंप्यूटर को संभाल लिया। जब मैंने उनके माइक को सेट किया तो वे मेरी तरफ देखकर मुस्कराए और बोले, “Funny guy-क्या तुमने सही कर दिया।” कलाम ने जब Funny guy कहा तो उनकी बात के कई मतलब थे लेकिन ये मतलब आपकी सोच और उनकी टोन से ही समझे जा सकते थे। हो सकता है इसका एक मतलब यह हो कि तुमने सबकुछ सही किया है या ये कि तुमने कुछ गड़बड़ कर दी। कुल मिलाकर आप उनकी बात सुनकर उसका मतलब निकाल सकते थेइससे यह अंदाजा भी लग जाता था कि उन्होंने कोई बात सामान्य तौर पर कही है या फिर खुश होकर वे कुछ कह रहे हैं। पिछले छह सालों में Funny guy शब्द तो मेरे लिए बहुत पहचाना सा हो गया थाहां सोमवार को कहा गया उनका Funny guy मेरे लिए आखिरी शब्द बन गया। जब उन्होंने मुझसे पूछा- Funny guy क्या तुम सही कर रहे हो। मैंने मुस्कराते हुए जवाब दियायस। ये आखिरी शब्द थे। वो दो मिनट बोले और मैं उनके पीछे बैठे था। मैंने एक उनके द्वारा बोली गई एक लाइन सुनी-जिसमें कुछ शब्दों के बाद लंबा विराम (pause) था। मैंने उनकी तरफ देखा लेकिन वे गिर गए। हमने उन्हें उठाया। इतने में डॉक्टर भी कलाम की तरफ भागे। हम जो कर सकते थेकिया।
किस्सा : 5 हम अगले जन्म में फिर मिलेंगे....
मैं उन पलों को कभी नहीं भूल सकता जब उनकी आंखें लगभग बंद हुईं और उनका सिर मेरी गोद में था। उनका मुड़ा हुआ हाथ मेरी उंगलियों के बीच था। उनके चेहरे पर कोई हरकत नहीं थी और उनकी वो बोलने वाली इंटेलीजेंट आंखें भी लगभग स्थिर हो चुकी थीं। वे एक शब्द भी नहीं बोले और  उन्होंने दर्द की शिकायत की। चेहरे से केवल पर्पज जाहिर होता था। पांच मिनट में हम हॉस्पिटल पहुंच गए। अगले कुछ मिनट में यह भी तय हो गया कि मिसाइल मैन हमसे दूर जा चुका है। आखिरी बार मैंने उनके पैर छुए और कहाअलविदा मेरे बुजुर्ग दोस्त मेरे ग्रांड मेंटर। मैं आपको अपने थॉट्स में याद रखूंगाहम अगले जन्म में फिर मिलेंगे।
किस्सा : 6. उनका सवाल उन्हीं से..........लेकिन चुप मुझे हो जाना पड़ा
पीछे मुड़कर देखता हूं तो कई बातें याद आती हैं। वो अकसर मुझसे कहते थे, “तुम यंग हो-तय करो कि दुनिया तुम कैसे याद रखेगी।” उनके इस सवाल का जवाब देने के लिए मैं अकसर कोई ऐसा आन्सर खोजा करता था जो उन्हें इम्प्रेस कर सके। लेकिन जब ऐसा नहीं कर सका तो मैंने उनका सवाल उनसे ही पूछ लिया। मैंने कहा, “पहले आप बताइए कि आप किस तरह याद किया जाना पसंद करेंगे। प्रेसिडेंटसाइंटिस्टराइटरमिसाइल मैनइंडिया 2020, टारगेट 3 बिलियन या कुछ और...” मुझे लगा कि मैंने ऑप्शंस देकर उनका काम आसान कर दिया है। लेकिन उनके जवाब ने उलटा मुझे ही चुप करा दिया। जानते हैं उन्होंने क्या जवाब दिया। उन्होंने कहा, “टीचरमैं टीचर के रूप में याद किया जाना पसंद करूंगा।
किस्सा : 7 दो काम बुजुर्ग  करें....और उन्होंने भी नहीं किए
कुछ हफ्तों पहले हम उनके मिसाइल टाइम के दोस्तों की बात कर रहे थे। तब उन्होंने कहा, “बच्चों को अपने पैरेंट्स की केयर करनी चाहिए। लेकिन ये बहुत दुख की बात है कि ऐसा हो नहीं रहा है। बड़ों को भी दो चीजें जरूर करनी चाहिए। मरने से पहले पैसा नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि इससे फैमिली में झगड़े होते हैं। दूसरीमौत काम करते-करते ही हो जाना चाहिए। यह तो आर्शीवाद ही है कि आपकी काम करते-करते ही मौत हो जाए। गुडबाय का टाइम हमेशा कम और बहुत कम होना चाहिए।
किस्सा : 8 जो कहा वो खुद भी किया......मैं मिस करूंगा उन्हें तब जब.........
आज जब मैं पीछे मुढ़कर देखता हूं तो महसूस होता है कि वो अपनी फाइनल जर्नी पर चले गए और वो करते-करते ही चले गए जिसके लिए वे चाहते थे कि लोग उन्हें याद रखें यानी टीचर के रूप में। काम ही तो करते-करते चले गए वोहम सब को छोड़कर। जैसा मैंने ऊपर कहा कि वो खाली हाथ जाने की सलाह देते थेखुद भी खाली हाथ ही गए। उनके खाते में केवल करोड़ों विशेज और प्यार है। वो जिंदगी के आखिरी पलों में भी सक्सेफुल ही रहे।
मैं उनके साथ किए गए लंच और डिनर को हमेशा मिस करूंगामैं मिस करूंगा कि मैंने उनके साथ क्यूरोसिटी को शांत करने के तरीके कैसे सीखे। मैं ये भी मिस करूंगा कि जिंदगी के थॉट्स को हकीकत में कैसे बदला जा सकता है। मैं मिस करूंगा कि कैसे हम फ्लाइट पकड़ने के लिए कोशिश करते थे और कैसे उस दौरान बहस करते थे।
और चलते-चलते...

कलाम सरआपने मुझे असंभव को भी साकार करने के सपने दिए। सपनों को साकार करने के लिए कोई समझौता  करने और खुद पर भरोसा रखने का तरीका सिखाया। वो चले गए लेकिन उनका मिशन जिंदा रहेगा। आप अमर रहें कलाम सर।

नई दिल्ली. बिहार सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को श्रद्धांजलि देते हुए राज्य के किशनंगज एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी का नाम अब डॉ कलाम एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी कर दिया गया है। वहींकलाम के करीबी लोगों ने फैसला किया है कि कलाम का टि्वटर अकाउंट पहले की तरह ही एक्टिव रहेगा। बस उसका नाम बदलकर In memory of Dr Kalam कर दिया गया है।
कलाम की सोच को आगे बढ़ाएगा उनका टि्वटर अकाउंट 
कलाम के करीबी सृजन पाल सिंह ने एक ट्वीट में लिखा, ''कलाम के अमर हो चुकी यादों को समर्पित। उनका यह अकाउंट अब उनके विचारोंशिक्षाओं और मिशन को जाहिर करेगा। मिस यू सर।'' सिंह अब उनके टि्वटर अकाउंट के एडमिनिस्ट्रेटर के तौर पर काम करेंगे। अकाउंट के जरिए कलाम की स्पीच और उनकी किताब विंग्स ऑफ फायरइंडिया 2020 और इग्नाइटेड माइंड्स के अंशों को शेयर करेंगे।

मौत से एक दिन पहले घरवालों को किया था फोन 
पूर्व राष्ट्रपति ने अपनी मौत से एक दिन पहले शिलॉन्ग से अपने परिवार को फोन किया था। उन्होंने अपने घरवालों से 99 साल के भाई मोहम्मद मुथू मीरा लीबाई मरायकर का हालचाल जाना था। कलाम के परपोते सलीम ने बताया कि उनका फोन 26 जुलाई की शाम को आया था। उन्होंने बताया था कि शिलॉन्ग में काफी ठंड है। शिलॉन्ग में ही कलाम ने आखिरी सांसे ली थीं। पूर्व राष्ट्रपति कलाम 83 साल की उम्र में भी एकदम एक्टिव थे। जीवन में सादगी का सिद्धांत भी उन्होंने अंतिम वक् तक निभाया। सोमवार को अंतिम सफर पर भी वह गुवाहाटी से शिलांग कार में गए। पहाड़ी रास्तों पर 110 किलोमीटर का यह सफर उन्होंने दोपहर 2.30 बजे शुरू किया था और शाम 5.45 बजे वह‍ शिलांग में आईआईएम के गेस् हाउस पहुंचे थे। (डॉकलाम के आखिरी शब् क्या थेयहां पढ़ें)

शव दफनाने के लिए जमीन की तलाश पूरी 
कलाम को उनके गृहनगर रामेश्वरम में ही सुपुर्द  खाक किया जाएग। इसके लिए स्थानीय अधिकारियों ने रेलवे स्टेशन के करीब स्थित एक मस्जिद के करीब की जगह का इंस्पेक्शन किया। कलाम के चचेरे भाई कासिम मोहम्मद ने बताया कि रामेश्वर में उनकी याद में एक मेमोरियल भी बनाया जाएगा।

रामेश्वर में दुकानें बंदमछुआरों ने कामकाज रोका 
कलाम की याद में रामेश्वरम की सभी दुकानों को मंगलवार को बंद रखा गया। मछुआरों ने एलान किया कि वे अगले तीन दिन तक समुद्र में मछली पकड़ने नहीं जाएंगे।
दोपहर तीन बजे हम दिल्ली से गुवाहाटी पहुंचे। वहां से कार से शिलांग के लिए निकले। ढाई घंटे लगे पहुंचने में। आमतौर पर कलाम कार में सो जाया करते थे। लेकिन इस बार बातें करते रहे। शिलांग में खाना खाकर हम आईआईएम पहुंचे। वे लेक्चर देने स्टेज पर गए। मैं पीछे ही खड़ा था। उन्होंने मुझसे पूछाऑल फिटमैंने कहाजी साहब।

दो सेंटेंस ही बोले होंगे कि गिर पड़े। मैंने ही उन्हें बांहों में उठाया। उन्हें हॉस्पिटल ले आए। पर बचा नहीं सके। साहब हमेशा कहते थे कि मैं टीचर के रूप में ही याद किया जाना चाहता हूं। और पढ़ाते-पढ़ाते ही चले गए। उन्होंने आखिरी लाइन कही थी कि धरती को जीने लायक कैसे बनाया जाएशिलांग के रास्ते में कह रहे थे कि संसद का डेडलॉक कैसे खत्म किया जाएफिर कहने लगे कि आईआईएम के स्टूडेंट्स से ही पूछूंगा। -सृजन पाल सिंह ( कलाम के सहयोगी)

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