Tuesday, July 31, 2012

द्वादशज्योतिर्लिंगस्तोत्रम् ( अर्थ सहित )

BY SHREE SURENDRA SINGH JI RAWAT - ON FACE BOOK

यदि श्रावन के महीने में शिव जी की पूजा न हो पाई हो तो कल राखी  के त्यौहार पर पूर्णिमा के दिन भी शिव जी की मन्दिर में पूजा करने से पूर्ण फल मिलता है. 

सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम्।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये।।1।।

जो भगवान् शंकर अपनी भक्ति प्रदान करने के लिए परम रमणीय व स्वच्छ सौराष्ट्र प्रदेश गुजरात में कृपा करके अवतीर्ण हुए हैं, मैं उन्हीं ज्योतिर्मयलिंगस्वरूप, चन्द्रकला को आभूषण बनाये हुए भगवान् श्री सोमनाथ की शरण में जाता हूं।

श्रीशैलशृंगे विबुधातिसंगे तुलाद्रितुंगेऽपि मुदा वसन्तम्।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं नमामि संसारसमुद्रसेतुम्।।2।।

ऊंचाई की तुलना में जो अन्य पर्वतों से ऊंचा है, जिसमें देवताओं का समागम होता रहता है, ऐसे श्रीशैलश्रृंग में जो प्रसन्नतापूर्वक निवास करते हैं, और जो संसार सागर को पार करने के लिए सेतु के समान हैं, उन्हीं एकमात्र श्री मल्लिकार्जुन भगवान् को मैं नमस्कार करता हूँ।

अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम्।।3।।

जो भगवान् शंकर संतजनों को मोक्ष प्रदान करने के लिए अवन्तिकापुरी उज्जैन में अवतार धारण किए हैं, अकाल मृत्यु से बचने के लिए उन देवों के भी देव महाकाल नाम से विख्यात महादेव जी को मैं नमस्कार करता हूं।

कावेरिकानर्मदयो: पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय।
सदैव मान्धातृपुरे वसन्तमोंकारमीशं शिवमेकमीडे।।4।।

जो भगवान् शंकर सज्जनों को इस संसार सागर से पार उतारने के लिए कावेरी और नर्मदा के पवित्र संगम में स्थित मान्धता नगरी में सदा निवास करते हैं, उन्हीं अद्वितीय ‘ओंकारेश्वर’ नाम से प्रसिद्ध श्री शिव की मैं स्तुति करता हूं

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