प्रवेश द्वार की वास्तु
प्राचीन वास्तुकारों ने मकान की आकृति तथा मकान में प्रवेश हेतू बनाये गये मुखय द्वार की वास्तु अनुरुप व्याखया निम्न प्रकार से की है।
१. प्रवेश द्वार अत्यन्त मजबूत एवं सुंदर होना चाहिये।
२. प्रवेश द्वारा बनवाते समय कितना स्थान छोडना चाहिये, किस दिद्गाा में पल्ला बंद या खुलना चाहिये इसका विशेष ध्यान रखना चाहिये।
३. प्रवेश द्वार खोलते या बंद करते समय किसी प्रकार की आवाज या अडचन नहीं होना चाहिये।
४. प्रवेश द्वार को मांगलिक प्रतीक चिन्हों जैसे :- गणेद्गा जी चित्र, स्वस्तिक, ऊँ, शुभ - लाभ, कलश चित्र आदि से सजाए रखना चाहिये।
५. घर में यदि मांगलिक कार्य हो तो प्रवेश द्वार को विशेष रुप से विभिन्न प्रकार की पुष्प मालाओं, आम के पत्ते की मालाओं से सजाना चाहिये।
६. प्रवेश द्वार की प्रतिदिन साफ - सफाई व उचित रोशनी का प्रबंध होना चाहिये।
७. सामान्यतः मकान में एक ही मुखय द्वार शुभ माना गया है। यदि एक से अधिक द्वार हो, तो उत्तर या उत्तर - पश्चिम द्वार का प्रयोग करना चाहिये।
८. पूर्वमुखी भवन का प्रवेश द्वार पूर्व या उत्तर या उत्तर - पूर्व (ईशान कोण) में होना चाहिये।
९. मुखय द्वार का आकार घर के अन्य दरवाजों से बडा होना चाहिये।
१०. प्रवेश द्वार कभी भी मध्य में नही होना चाहिये।
११. मकान के प्रवेश द्वार के ठीक सामने पेड, बिजली का खंभा, अस्पताल या मंदिर होना अशुभ माना गया है। इसके अलावा प्रवेश द्वार के ठीक सामने कूडा - कचरा इकट्ठा बिल्कुल नही होना चाहिये।
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Article by -Ashutosh Joshi (Vastu Consultant)
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