"वासुकि नाग-पूजा"
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम !
शंखपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं च कालियं तथा !!
एतानि नव नामानि नागानां च महत्मानाम !
सांयकाले पठेनित्यम प्रातः विशेषत: !!
तस्य विष भयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत् !
सर्व कार्य फल प्राप्ति प्रचछन्नम च धनं लभेत !!
ॐ नमोअस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वी !
म्न्वन्त्रिक्षे ये दिवि तेभ्यः वासुकाद्यष्ट कुल नागेभ्योः नमः !!
सभी वैज्ञानिकों के द्वारा और ऋषि मुनियों के द्वारा भी कहा जाता है
की सर्प इस पृथ्वी पर सभी जगह मिलते हैं ! ये आज हजारों की संख्या
में अलग अलग प्रजातियों के हैं किन्तु मूलतः इनकी उपरोक्त नौ
प्रजातियाँ ही हैं और इन्हें महात्मा का स्थान भी प्राप्त है ! इनका
स्मरण दोनों संध्याओं पर करने से व्यक्ति को कभी विष का भय नहीं
होता , सभी जगह विजय-श्री भी प्राप्त होती है और पृथ्वी के नीचे रहने
के कारण या गढ़े खजाने पर यक्ष बन बैठने के कारण इनके प्रसन्न
होने पर साधक को ये प्रसन्न हो खजाना भी दे देते है !