महादेव शिव शंकर से सम्बंधित अद्भुत शास्त्रोक्त तथ्य
आलेख - आशुतोष जोशी
१. भगवान शंकर को उनके विचित्र स्वभाव व विचित्र अवतरण के कारण त्रिलोचन, महेश्वर, शत्रुहंता, महाकाल, वृषभध्वज, नक्षत्रसाधक, त्रिकालधृष, जटाधर, गंगाधर, नीलकंठ, त्र्यंबकं आदि अनेक नामों से जाना जाता है।
२. शास्त्रों के अनुसार ज्योतिष शास्त्र व वास्तु शास्त्र की उत्पत्ति महादेव के द्वारा ही की गई है।
३. श्री शिव शंकर का निवास स्थान उत्तर में हिमालय पर्वत पर स्थित होने की वजह से उत्तर दिशा को पूर्व दिशा की तरह ही उत्तम माना गया है। उत्तर दिशा को कुबेर की दिशा भी कहा जाता है।
४. शास्त्रों के अनुसार मंत्रो में प्रमुख महामत्युंजय मंत्र, जो भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए है, को अनिष्ट ग्रहों के दुष्प्रभाव को समाप्त करने तथा मृत्यु को टालने के लिए अचूक माना जाता हैं। यह महामंत्र विधि - विधान से यथा शक्ति जपने से साधक अपने जीवन में निरोगी रहकर लंबी आयु की भावना को प्रबल बना सकता है।
५. पौराणिक कथाओं में जिस प्रकार भगवान विष्णु के दस अवतारों की कथा आती हैं, उसी प्रकार भगवान शिव भी समय - समय पर अवतार लीलाऐं करते आए हैं जिनमें प्रमुख है :- नंदिश्वर अवतार, हनुमान अवतार, यक्षावतार, कालभैरव अवतार, दुर्वासा अवतार, तथा पिप्पलाद अवतार। इसके अलावा ऐसी मान्यता हैं कि बाबा बालकनाथ, शिर्डी के सांई बाबा तथा शंकराचार्य भी शिवजी के ही अवतार थे।
६. यहां यह स्पष्ट कर देना लाभदायक होगा कि भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए ग्रहों के अनुसार उपयुक्त नवरत्नों से बने शिवलिंगो की पूजा अर्चना करने से उस संबंधित ग्रह की अनुकूलता बढ जाती है। उदाहरण के लिए यदि बुध ग्रह पत्रिका में कमजोर है, तो पन्ना रत्न से बने शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। यदि रत्नों से निर्मित शिवलिंग उपलब्ध न हो, तो सात या ग्यारह कैरेट के रत्न की शिवपूजा भी लाभदायक रहती है।
७. इसके अलावा दीर्घायु के लिए चंदन से बने शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए तथा रोगनिवारण के लिए मिश्री से बने शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। गुड या किसी भी अन्न से बनाये शिवलिंग की पूजा करने से सुख - समृद्धि व कृषि वृद्धि में लाभ होता है।
८. सोने, चांदी, पारे आदि से बने शिवलिंग की पूजा का भी सुख - समृद्धि व शांति प्राप्ति हेतु विशेष महत्व है।
९. शास्त्रों के अनुसार मोक्ष पाने के लिए आँवलें से बने शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए।
१०. महादेव शिव को पंचमुखी तथा दशभुजाओं से युक्त माना जाता है अर्थात् पंचतत्वों के रुप में पांचों मुखों की अवधारणा मानी गयी हैं। इन्ही पंचतत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) के द्वारा संपूर्ण चराचर संसार का प्रादुर्भाव हुआ माना गया हैं।
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