हमारे भीतर की शक्तियाँ
हमारे शरीर में ईश्वर प्रदत्त मुखय रुप से ६ प्रकार की शक्तियाँ होती है। मनुष्य इन शक्तियों का उचित प्रयोग करके जीवन सार्थक कर सकता है। किन्तु अनुचित प्रयोग, मनुष्य को पाप के गर्त में ले जाता है।
१. परा शक्ति - सब शक्तियों का मूल आधार
२. ज्ञान शक्ति - इस शक्ति से मनुष्य की मन, व बुद्धि विकसित होती है। किन्तु साथ् में अहंकार बढ सकता है। ज्ञान शक्ति दूरदृष्टि, अंर्तदृष्टि बढाती है।
३. इच्छा शक्ति - यह शक्ति मनुष्य के मस्तिष्क के स्नायुतंत्र को प्रभावित करके कार्य की ओर प्रेरित करती है।
४. क्रिया शक्ति - इच्छा शक्ति को प्रबल करके हम क्रिया शक्ति को प्रभावशाली बनाते है।
५. कुण्डलिनी शक्ति - यह मनुष्य के भीतर सुषुप्तावस्था में रहती है। योगी पुरुष तपस्या से विधिपूर्वक इस शक्ति के तेज को जाग्रत करके सिद्ध पुरुष बन जाते है। कुण्डलिनी शक्ति से मन के संचालन में नियंत्रण बढता है।
६. मातृका शक्ति - यह शक्ति अक्षर, विद्या, बिजाक्षर, शब्द व वाक्यों की शक्ति है। मंत्रों का प्रभाव इसी मातृका शक्ति के कारण होता है।
प्रत्येक मनुष्य को अपनी जीवनशैली मे इन शक्तियों के बीच अपने सन्तुलन को बनाये रखते हुए कार्य करना चाहिये।
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