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या देवी सर्व भूतेषु बुद्धि रूपेण संस्थिता
नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं नमो नम: ।।
नवरात्रि के नौ दिनों में नौ ग्रहों की शान्ति पूजा की जाती है.
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प्रतिपदा के दिन मंगल ग्रह की शान्ति हेतू पूजा की जाती है. द्वितीया तिथि के दिन राहू ग्रह की शान्ति पूजा की जाती है. तृ्तिया के दिन बृ्हस्पति के दिन, चतुर्थी के दिन शनि ग्रह, पंचमी के दिन बुध, षष्ठी के दिन केतु, सप्तमी के दिन शुक्र, अष्टमी के दिन सूर्य व नवमी के दिन चन्द्र देव की शान्ति पूजा की जाती है.
यह शान्ति क्रिया शुरु करने से पहले कलश की स्थापना और माता की पूजा करनी चाहिए. पूजा के बाद लाल वस्त्र पर एक यंत्र बनाया जाता है. इस यंत्र में नौ खाने बनाये जाते है. पहले तीन खानों में उसमें बुध, शुक्र, चन्द्र, बीच में गुरु, सुर्य, मंगल और नीचे के खानों में केतु, शनि, राहू को स्थान दिया जाता है.
इसके बाद नवग्रह बीच मंत्र की पूजा की जाती है. इसके बाद नवग्रह शात्नि संकल्प लिया जाता है. इसके बाद दिन अनुसार ग्रह के मंत्र का जा किया जाता है.
ग्रहों के मंत्र इस प्रकार है.
प्रतिपदा के दिन मंगल ग्रह की शान्ति हेतू पूजा की जाती है. द्वितीया तिथि के दिन राहू ग्रह की शान्ति पूजा की जाती है. तृ्तिया के दिन बृ्हस्पति के दिन, चतुर्थी के दिन शनि ग्रह, पंचमी के दिन बुध, षष्ठी के दिन केतु, सप्तमी के दिन शुक्र, अष्टमी के दिन सूर्य व नवमी के दिन चन्द्र देव की शान्ति पूजा की जाती है.
यह शान्ति क्रिया शुरु करने से पहले कलश की स्थापना और माता की पूजा करनी चाहिए. पूजा के बाद लाल वस्त्र पर एक यंत्र बनाया जाता है. इस यंत्र में नौ खाने बनाये जाते है. पहले तीन खानों में उसमें बुध, शुक्र, चन्द्र, बीच में गुरु, सुर्य, मंगल और नीचे के खानों में केतु, शनि, राहू को स्थान दिया जाता है.
इसके बाद नवग्रह बीच मंत्र की पूजा की जाती है. इसके बाद नवग्रह शात्नि संकल्प लिया जाता है. इसके बाद दिन अनुसार ग्रह के मंत्र का जा किया जाता है.
ग्रहों के मंत्र इस प्रकार है.
सूर्य बीज मंत्र - ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:
चन्द्र बीज मंत्र - ऊँ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्रमसे नम:
मंगल बीज मंत्र- ऊँ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:
बुध बीज मंत्र - उँ ब्रां ब्रीं ब्रौ स: बुधाय नम:
गुरु बीज मंत्र - ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:
शुक्र बीज मंत्र - ऊँ द्रां द्रीं द्रौ स: शुक्राय नम:
शनि बीज मंत्र - ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:
राहू बीज मंत्र - उँ भ्रां भ्रीं भौं स: राहुवे नम:
केतु बीज मंत्र - उँ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम:
दुर्गासप्तशती में सात सौ महामंत्र होने से इसे सप्तशती कहते है. सप्तशती उपासना से असाध्य रोग दूर होते है. और आराधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है.
दुर्गासप्तशती में सात सौ महामंत्र होने से इसे सप्तशती कहते है. सप्तशती उपासना से असाध्य रोग दूर होते है. और आराधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है.
नवरात्रों में ध्यान देने योग्य बातें
नवरात्रों की पूजा करते समय ध्यान देने योग्य यह विशेष बात है कि एक ही घर में तीन शक्तियों की पूजा नहीं करनी चाहिए. देगी को कनेर और सुगन्धित फूल प्रिय है. इसलिये पूजा के लिये इन्ही फूलों का प्रयोग करें, कलश स्थापना दिन में ही करें, मां की प्रतिमा को लाल वस्त्रों से ही सजायें. साधना करने वाले को लाल वस्त्र या गर्म आसन पर बैठकर पूजा करनी चाहिए.
नवरात्रों की पूजा करते समय ध्यान देने योग्य यह विशेष बात है कि एक ही घर में तीन शक्तियों की पूजा नहीं करनी चाहिए. देगी को कनेर और सुगन्धित फूल प्रिय है. इसलिये पूजा के लिये इन्ही फूलों का प्रयोग करें, कलश स्थापना दिन में ही करें, मां की प्रतिमा को लाल वस्त्रों से ही सजायें. साधना करने वाले को लाल वस्त्र या गर्म आसन पर बैठकर पूजा करनी चाहिए.
उपवासक को क्या नहीं करना चाहिए
नवरात्रों का व्रत करने वाले उपवासक को दिन में केवल एक बार सात्विक भोजन करना चाहिए. मांस, मदिरा का त्याग करना चाहिए. इसके अतिरिक्त नवरात्रों में बाल कटवाना, नाखून काटना आदि कार्य भी नहीं करने चाहिए. ब्रह्मचार्य का पूर्णत: पालन करना चाहिए. नवरात्रे की अष्टमी या नवमी के दिन दस साल से कम उम्र की नौ कन्याओं और एक लडके को भोजन करा कर साथ ही दक्षिणा देनी चाहिए.
लडके को भैरव का रुप माना जाता है. कंजनों को भोजन करवाने से एक दिन पूर्व रात्रि को हवन कराना विशेष शुभ माना जाता है. कंजकों को भोजन करवाने के बाद उगे हुए जौ और रेत को जल में विसर्जित कर दिया जाता है. कुछ जौं को जड सहित उखाडकर समृ्द्धि हेतू घर की तिजौरी या धन रखने के स्थान पर रखना चाहिए.
कलश के पानी को पूरे घर में छिडक देना चाहिए. इससे घर से नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है. और नारियल को माता दुर्गा के प्रसाद स्वरुप खा लिया जाता है.
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नवरात्रों का व्रत करने वाले उपवासक को दिन में केवल एक बार सात्विक भोजन करना चाहिए. मांस, मदिरा का त्याग करना चाहिए. इसके अतिरिक्त नवरात्रों में बाल कटवाना, नाखून काटना आदि कार्य भी नहीं करने चाहिए. ब्रह्मचार्य का पूर्णत: पालन करना चाहिए. नवरात्रे की अष्टमी या नवमी के दिन दस साल से कम उम्र की नौ कन्याओं और एक लडके को भोजन करा कर साथ ही दक्षिणा देनी चाहिए.
लडके को भैरव का रुप माना जाता है. कंजनों को भोजन करवाने से एक दिन पूर्व रात्रि को हवन कराना विशेष शुभ माना जाता है. कंजकों को भोजन करवाने के बाद उगे हुए जौ और रेत को जल में विसर्जित कर दिया जाता है. कुछ जौं को जड सहित उखाडकर समृ्द्धि हेतू घर की तिजौरी या धन रखने के स्थान पर रखना चाहिए.
कलश के पानी को पूरे घर में छिडक देना चाहिए. इससे घर से नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है. और नारियल को माता दुर्गा के प्रसाद स्वरुप खा लिया जाता है.
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