शास्त्रों के अनुसार इस सृष्टि के पालनहार श्रीहरि यानि भगवान विष्णु हैं और उनकी पूजा से देवी लक्ष्मी के साथ ही सभी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त हो जाती है। क्या आप जानते हैं कि श्रीहरि भी प्रतिवर्ष कुछ निश्चित समय के लिए विश्राम करते हैं, शेषनाग की शय्या पर शयन करते हैं।
जी हां, यह सत्य है कि भगवान विष्णु भी आराम करते हैं। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि भगवान श्रीहरि चार माह के लिए क्षीरसागर में शयन करते हैं।
हिन्दी पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से भगवान विष्णु शयन करते हैं। इसी वजह से इस एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इसके बाद वे कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी से पुन: नींद त्यागकर उठ जाते हैं। इसी कारण इस एकादशी को देवउठनी एकादशी कहते हैं।
इस वर्ष 2013 में देवशयनी एकादशी 19 जुलाई शुक्रवार को आ रही है। अत: 19 जुलाई के दिन और इस दिन के बाद कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार खान-पान और दैनिक कार्यों में भी कई प्रकार के बदलाव इन चार माह में किए जाने चाहिए। इन बदलावों से हमारी सेहत तो ठीक रहेगी साथ ही धन संबंधी मामलों में भी लाभ मिलेगा।
देवशयन एकादशी के दिन से कार्तिक शुक्ल दशमी तक किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य करना वर्जित किए गए हैं। मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, विवाह, मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा, यज्ञ-हवन, किसी भी प्रकार के संस्कार आदि।
इन सभी कार्यों में भगवान श्रीहरि की विशेष उपस्थिति अनिवार्य होती है। ऐसे में जब भगवान के शयन का समय होता है तब वे इन कार्यों में उपस्थित नहीं होते हैं। इसी वजह से इन चार माह में मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए।
एक वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं और इन दिनों में उपवास या व्रत रखने की परंपरा है। देवशयनी एकादशी पर व्रत रखा जाता है। व्रत रखने के साथ कुछ और भी नियम हैं जिनका पालन करना चाहिए।
वर्तमान में वर्षा ऋतु चल रही है और इस समय में स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां अधिक होती हैं। क्योंकि हम खान-पान में सावधानी नहीं रखते हैं।
देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक चार माह होते हैं। इन चार माह को चातुर्मास कहा जाता है।
चातुर्मास में खाने-पीने की कई चीजें स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती हैं। अत: आगे जानिए इस समय में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए।
बारिश के दिनों में पत्तेदार सब्जियां हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती हैं। अत: इन सब्जियों का त्याग करना चाहिए। इन दिनों बारिश की वजह से सूर्य और चंद्रमा दोनों के ही दर्शन नहीं हो पाते हैं। ना ही इनसे मिलने वाली ऊर्जा हम तक पहुंच पाती है। इसी वजह से बारिश के दिनों में हमारी पाचन शक्ति बहुत कम हो जाती है। सूर्य और चंद्र से मिलने वाली ऊर्जा हमारे पाचन तंत्र को मजबूती प्रदान करती है।
इसके साथ ही वर्षा के कारण हम अधिक शारीरिक श्रम भी नहीं कर पाते हैं। जिससे भोजन ठीक से पच नहीं पाता है। जो कि स्वास्थ्य के हानिकारक है। इसी वजह से इन दिनों में व्रत-उपवास का काफी महत्व है। ऐसा खाना न खाएं जो आसानी से पचता नहीं है।
देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए। पूजन के लिए श्रीहरि की प्रतिमा को सुंदर वस्त्रों से सजाएं। गादी एवं तकिए पर श्रीविष्णु की प्रतिमा को शयन करवाएं। इस दिन भक्त व्रत रखना चाहिए। जो भी व्यक्ति इस एकादशी पर व्रत रखता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। महालक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक हमें मधुर स्वर के लिये गुड़, लंबी उम्र एवं संतान प्राप्ति के लिये तेल, शत्रु बाधा से मुक्ति के लिये कड़वे तेल, सौभाग्य के लिये मीठा तेल आदि का त्याग करना चाहिए। इसी प्रकार वंश वृद्धि के लिये दूध का और बुरे कर्म के अशुभ फल से मुक्ति के लिये उपवास करना चाहिए।
देवशयनी एकादशी के संबंध में शास्त्रों में कई कथाएं बताई गई हैं। यहां जानिए उन्हीं कथाओं में से एक कथा। यह काफी प्रचलित है। कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु ने वामन रूप में दैत्यराज बलि से तीन पग धरती मांगी थी। तब राजा बलि ने उन्हें तीन पग जमीन देने का वचन दिया।
वामन अवतार ने एक पग में पृथ्वी, दूसरे पग में आकाश और सभी दिशाओं को नाप लिया। तब राजा बलि ने तीसरा पग रखने के लिए स्वयं का शीश आगे कर दिया। इससे श्रीहरि प्रसन्न हो गए। तब उन्होंने राजा से वरदान मांगने को कहा। राजा बली ने वरदान में श्रीहरि को ही मांग लिया और कहा अब आप मेरे यहां निवास करेंगे। तब महालक्ष्मी ने अपने पति श्रीहरि को बलि के बंधन से मुक्त करवाने के लिए राजा के हाथ पर रक्षासूत्र बांधा और उसे भाई बना लिया। महालक्ष्मी ने राजा को भाई बनाकर निवेदन किया कि वे भगवान विष्णु को उनके वचन से मुक्त करें।
राजा बलि ने श्रीहरि को मुक्त कर दिया लेकिन उनसे चार माह तक सुतल लोक में रहने का वचन ले लिया।
तभी से भगवान विष्णु के साथ ही ब्रह्मा और शिव भी इस वचन का पालन करते हैं। मान्यताओं के अनुसार विष्णु के बाद महादेव महाशिवरात्रि तक और ब्रह्मा शिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक, चार-चार माह सुतल यानी भूमि के अंदर निवास करते हैं।
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