प्राणियों के प्राणदाता - भोले शंकर
आलेख - आशुतोष जोशी
गिरीशम गणेशम गले नीलवर्णम्
गजेंद्राधिरुढं गणातीत रुपम।
भवं भास्करं भस्मनां भूषितांगम्
भवानी कलत्रं भजे पंचवक्त्रम्।
अर्थात् जो कैलाशनाथ है, गणनाथ है, नीलकंठ है, वृषभ पर बैठे हैं, अगणित रुप वाले हैं, संसार के आदिकारण हैं, प्रकाश स्वरुप है, शरीर में भस्म लगाए हुए और मां शक्ति जगद्जननी जिनकी अर्द्धांगिनी है, उन पंचमुखी महादेव विश्वनाथ का मैं स्मरण करता हूँ।
देवों के देव महादेव ही ऐसे अद्भूत तथा विलक्षण देव हैं, जो ब्रह्माण्ड में निहित उर्जा का स्त्रोंत हैं तथा अन्य देवताओं के संकट के क्षणों में महादेव ही रुद्र रुप धरकर संकट निवारण करते आये हैं। भोले शंकर महादेव का एक और अद्भूत स्वभाव हैं, कि वे अपने भक्तों के प्रति अपार प्रेम रखते हुये तुलनात्मक रुप से जल्दी संतुष्ट व प्रसन्न हो जाते है। इसलिये महादेव का दूसरा नाम आशुतोष हैं।
शास्त्रों के अनुसार हर प्रकार की दुविधा या संकट के समय भगवान भोलेनाथ की पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास के साथ पूजा अर्चना करने से वे प्रसन्न होते हैं तथा अपने भक्तों की सहायता करते हैं। महादेव का स्वभाव बहुत सरल व कृपालु हैं इसलिये विधि - विधान से पूजा करने वाले भक्तों के अलावा मस्तमौला औघड बाबा जो कई दिनों तक स्नान तक नहीं करते तथा मांस मदिरा, जिनका भोजन होता हैं, वे भी भगवान शिव के द्वारा लाभ प्राप्त करते हैं।
यदि भगवान शिव के विभिन्न स्वरुपों की भावार्थ के साथ व्याखया करें तो हम देखते हैं कि मस्तक पर विराजमान चन्द्रमा और गंगाजल की धारा शीतलता का प्रतीक मानी जाती है। भगवान शिव के नीलकंठ में विराजमान नाग, भयमुक्त वातावरण का प्रतीक है। समुद्र मंथन के द्वारा प्राप्त विषपान करने का अर्थ हैं, कि हमें संसार में निहित सभी दुर्गुणों रुपी विष को पचाकर पूरे विश्व में अमृत रुपी सद्गुणों का प्रचार करना चाहिए।
शिवजी के परिवार में सभी जीव - जंतु (शेर, चीता, भालू, बैल, मोर, चूहा आदि) एक साथ रहकर सद्भाव का परिचय देते हैं। भगवान शिव जहां एक ओर उत्तर में हिमालय पर्वत पर विराजमान हैं वहीं उनका एक स्वरुप शमशान में भी निहित हैं अर्थात् कोई भी कार्य अच्छा या बुरा नहीं होता और मंदिर हो या शमशान आपकी पवित्र भावना तथा श्रद्धा आपको जीवन में सफल बनाती है।
महादेव को भोलेशंकर या भोलेनाथ इसलिये कहा हैं क्योंकि वे आकार एवं निराकार स्वरुप में सर्वोच्च पद पर आसीन सर्वशक्तिमान होते हुये भी अहंकार से दूर अपने सच्चे भक्तों को प्रेम व शरण देते है। इसी वजह से भूतप्रेत, राक्षस, पशु - पक्षी, देवता, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, मनुष्य आदि सभी प्राणियों के लिए भोलेनाथ एक समान है।
महादेव के मस्तक स्थित तीसरा नेत्र एक अद्भूत शक्ति का प्रतीक है। जिसका प्रयोग केवल घोर संकट में किया जाता है। अर्थात् हर प्राणी में एक अद्भूत शक्ति होती है, जिसको महसूस करके या जाग्रत करके संकट के समय उपयोग की जा सकती है।
आदिगुरु शंकराचार्य जी ने भगवान भोले शंकर की स्तुति करते हुये मानव समाज को यह संदेश दिया हैं कि हर मनुष्य को अपनी पशुता को नष्ट करके मानवता का सद्व्यवहार करते हुये अपना अमूल्य जीवन बिताना चाहिए।
शंभो महेश करुणामय शूलपाणे,
गौरीपते पशुपते पशुपाशनासिन्।
No comments:
Post a Comment